HomeAdivasi Dailyमध्य प्रदेश में विस्थापित आदिवासियों ने राज्यपाल को कर्तव्य याद दिलाया

मध्य प्रदेश में विस्थापित आदिवासियों ने राज्यपाल को कर्तव्य याद दिलाया

बरगी बांध के लिए सिवनी, मंडला और जबलपुर के 162 आदिवासी बहुल गांव विस्थापित हुए थे. उस समय प्रदेश में कोई पुनर्वास नीति मौजूद नहीं थी. इसलिए उस समय विस्थापित हुए आदिवासियों के पुनर्वास की कोई ठोस योजना या नीति नहीं बनी.

आज 9 जून 2023 यानि बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर मध्य प्रदेश में बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने चुटका परमाणु परियोजना को निरस्त करने की मांग के लिए रैली निकाली. इस रैली में शामिल लोगों ने बरगी विस्थापितों की लंबित मांगों के समाधान की मांग भी उठाई.

इस रैली में शामिल लोगों ने घंसौर एसडीएम के माध्यम से राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी दिया. इस ज्ञापन में राज्यपाल को याद दिलाया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 244 में यह व्यवस्था है कि अनुसूचित क्षेत्रों में राज्यों की कार्यपालन शक्ति को पांचवी अनुसूचि के प्रावधानों (धारा 2) में शिथिल किया गया है. 

पांचवी अनुसूचि की धारा 5(1) राज्यपाल को विधायिका की शक्ति प्रदान करता है और यह शक्ति संविधान के किसी भी प्रावधान से मुक्त है. जल-जंगल-ज़मीन आदिवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है. इसके खत्म होने से आदिवासियों में पलायन और भुखमरी दोनों बढ़ती हैं.

बरगी बांध के लिए सिवनी, मंडला और जबलपुर के 162 आदिवासी बहुल गांव विस्थापित हुए थे. उस समय प्रदेश में कोई पुनर्वास नीति मौजूद नहीं थी. इसलिए उस समय विस्थापित हुए आदिवासियों के पुनर्वास की कोई ठोस योजना या नीति नहीं बनी. 

विस्थापित आदिवासियों के लंबे संघर्ष के बाद राज्य में पुनर्वास के लिए कुछ नीतिगत बातें तय की गई थीं. लेकिन अभी भी विस्थापितों के कई मामले लंबित हैं. इस इलाके में वन अधिकार के तहत सामुदायिक पट्टे एक महत्वपूर्ण मसला है. 

चुटका परमाणु बिजली परियोजना धूमामाल पंचायत के सामने 3 किलोमीटर पर प्रस्तावित है. साल 2009 से स्थानीय आदिवासी इस प्रस्तावित बिजली परियोजना का विरोध कर रहे हैं. इस परियोजना के खिलाफ ग्रामसभाओं ने प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेजे हैं. 

यहां के आदिवासी कार्यकर्ताओं और नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि सरकार सविंधान के प्रावधानों और पेसा कानून दोनों का उल्लंघन कर रही है. 

चुटका बिजली परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चुटका परमाणु संयंत्र की अनुमानित लागत 25 हजार करोङ रुपए और माही परमाणु संयंत्र की 50 हजार करोङ रुपए होगी.  

भारत के सबसे बङे बिजली उत्पादक एनटीपीसी का लक्ष्य 2032 तक 2000 मेगावाट, 2035 तक 4200 मेगावाट और 2050 तक 20 हजार मेगावाट परमाणु उर्जा उत्पादन शुरू करना है. 

एनटीपीसी अभी तक ताप विद्युत और सौर उर्जा उत्पादन क्षेत्र में ही काम कर रहा था।परमाणु उर्जा क्षेत्र में यह उसका पहला प्रयास है. 

देश के कुल बिजली आपूर्ति में 1964 से गठित परमाणु उर्जा कार्यक्रम की हिस्सेदारी अबतक मात्र 6780 मेगावाट है. जो कि कुल विद्युत उत्पादन का मात्र 2 प्रतिशत है. 

इस परियोजना का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस संयत्र से एक मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 18 करोङ रुपए आएगी.

वर्ष 2014 से 2020 तक प्रदेश की विधुत कम्पनियों का घाटा 36 हजार 812 करोङ रुपए और कर्ज 50 हजार करोङ रुपए तक हो गया है. इस कारण प्रदेश के हर बिजली उपभोक्ताओ पर 25 हजार का कर्ज है. 

उनका कहना है कि किसी भी लिहाज़ से इस परियोजना को लगाने में लाभ नहीं होगा.

मध्य प्रदेश का मंडला ज़िला आदिवासी बहुल है और यहां पर गोंड आदिवासियों की जनसंख्या सबसे अधिक है. पांचवी अनुसूचि क्षेत्र होने के नाते यहां पर आदिवासी समुदायों को कई विशेष अधिकार मिलते हैं.

इसके अलावा वर्ष 1996 के पेसा कानून के अनुसार जब तक ग्राम सभा किसी परियोजना के लिए सहमति नहीं देती है, वह परियोजना आदिवासी बहुल इलाकों में शुरू नहीं हो सकती है. चुटका बिजली परियोजना के लिए ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ ग्रामसभा ने कई प्रस्ताव पास किये हैं. 

इसके बावजूद सरकार ने यहां पर परमाणु बिजली संयंत्र के लिए ज़मीन लेने का फैसला किया है. यहां के ग्रामीणों ने MBB से बातचीत में कहा कि सरकार सभी कानूनों और संविधान की अनुसूची पांच के प्रावधानों को नज़रअंदाज कर उनकी ज़मीन लूट रही है.

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