केरल के कोल्लम की बाल रोग विशेषज्ञ लोला पॉलोज़ हर साल कुछ समय निकालकर अपने छात्रों के साथ चिन्नार वाइल्ड लाइफ सैन्चुरी जाकर आदिवासी समुदायों के लोगों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती हैं.
मुख्य रूप से वे कुपोषण, एनीमिया और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूंझ रहे आदिवासी बच्चों को अपनी सुविधाएं प्रदान करती हैं.
इसके लिए वे अपनी टीम के साथ मरयूर से 18 किलोमीटर दूर जाती हैं. इसके लिए उनको 3 किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करना पड़ता है.
कब और कैसे हुई इस मुफ़्त कैंप की शुरुआत?
सेंट जॉन कॉलेज में ज़ूलॉजी के प्रोफेसर जोसिन सी कुरियन ने साल 2016 में अपने एक शोध के दौरान इस इलाके के आदिवासी बच्चों के बीच कुपोषण को एक गंभीर समस्या पाया.
उन्होंने इसका ज़िक्र अपनी पत्नी लोला पॉलोज़ से किया, जो कोल्लाम में बच्चों की डॉक्टर हैं. इसके बाद दोनों ने मिलकर इन बच्चों के लिए मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाने का फैसला किया.
इसके बाद उन्हें ये कैंप लगाने के लिए वन विभाग से अनुमति लेना ज़रूरी था क्योंकि चिन्नार तमिलनाडू की सीमा के पास पड़ने वाला एक आरक्षित वन क्षेत्र है.
वन विभाग से सहयोग मिलने के बाद उन्होंने 2016 में पहली बार ये कैंप लगाया. तब से हर साल लोला और उनकी टीम इन बच्चों के लिए निशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर लगाती हैं जिसमें उनके पति भी उनका साथ देते हैं.
5 दिन तक चलने वाले इस कैंप में बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है और उन्हें ज़रूरी दवाइयां और विटामिन दिए जाते हैं.
इन कैंपों के लिए दवाइयों और उपकरणों की व्यवस्था प्रायोजकों की मदद से की जाती है. इसके अलावा जो भी खर्चा होता है उसे लोला और उनके पति अपने वेतन से करते हैं.
लोला के अनुसार 2016 में उनके पहले कैंप के दौरान, ज़्यादातर बच्चे एनीमिया से पीडित थे और उनके मैडिकल कैंप में उन्होंने बच्चों के बदलते खान-पान को इसकी वजह बताया था.
उनके सुझाव के परिणामस्वरूप वन विभाग ने ‘पुनरजीवनम’ नाम की एक योजना शुरू की जिसमें आदिवासियों को फिर से बाजरे की खेती करने के लिए प्रेरित किया गया जो उनके पारंपरिक भोजन का हिस्सा है.
चिन्नार के आदिवासी समुदायों की स्वास्थ्य समस्याएँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि भारत के दूरदराज और वन क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत कमजोर हैं.
रिपोर्ट्स के अनुसार केरल के आदिवासी इलाकों में कुपोषण, एनीमिया और शिशु मृत्यु दर काफी अधिक है और इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है.
2016 से डॉ. लोला पॉलोज़ नि:शुल्क चिकित्सा शिविर चला रही हैं लेकिन इन क्षेत्रों में नियमित और संगठित स्वास्थ्य सेवाएँ अब भी पर्याप्त नहीं हैं.
जब तक सरकार आर्थिक मदद और बेहतर स्वास्थ्य योजनाएँ लागू नहीं करती तब तक इन समुदायों की स्थिति में बड़ा सुधार आना मुश्किल है.
इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए कदम उठाने की सख्त ज़रूरत है.
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