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गुजरात : गांव में नहीं थी सड़क, एंबुलेंस तक पहुंचने से पहले ही गर्भवती महिला की मौत

ग्रामीणों का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है. प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण के लिए पहला टेंडर जारी किए पांच साल हो गए हैं. लेकिन करीब सात किलोमीटर में से उन्होंने सिर्फ़ तीन किलोमीटर सड़क बनाई है.

गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के एक दूरदराज आदिवासी गांव तुरखेड़ा में एक गर्भवती महिला की प्रसव पीड़ा के दौरान मौत हो गई.

मंगलवार को सुबह 5 बजे, जब किशन भील की गर्भवती पत्नी कविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो छोटा उदयपुर जिले के कवंत तालुका के सुदूर आदिवासी गांव तुरखेड़ा के बसकारिया फलिया के पूरे मोहल्ले के लोग उसे कपड़े के स्ट्रेचर पर ले जाने में मदद करने के लिए इकट्ठा हुए.

उन्हें पिक-अप पॉइंट तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी, जहां 108 एम्बुलेंस सेवा आ सकती थी और उसे प्रसव के लिए करीब 25 किलोमीटर दूर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जा सकती थी.

लेकिन ये लोग चट्टानी इलाके में सिर्फ एक किलोमीटर ही चले थे कि कविता को प्रसव पीड़ा हुई, उसने एक बच्ची को जन्म दिया और उसकी मृत्यु हो. शव को अंतिम संस्कार के लिए कपड़े के स्ट्रेचर पर उसके घर वापस लाया गया.

जब किशन गमगीन था तो उसके रिश्तेदार जामसिंह राठवा ने कहा कि कई सालों से हम सरकार से गांव में सड़क बनाने का अनुरोध कर रहे हैं ताकि पहली एम्बुलेंस सेवा तक पहुंचना आसान हो सके. लेकिन कोई विकास नहीं हुआ.

उन्होंने बताया कि आस-पास कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है और बिजली की आपूर्ति भी अनियमित है. क्योंकि हम एक सुदूर गांव में रहते हैं इसलिए हमें भुला दिया जाता है और हमें इंसान नहीं माना जाता. अगर सड़क बन जाती तो हम अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं खोते.

कविता की यह तीसरी गर्भावस्था थी. उनके परिवार ने बताया कि किशन एक किसान है और एक नवजात शिशु के अलावा उनके दो और बच्चे हैं, जिनकी उम्र पांच साल से कम है. वहीं नवजात शिशु की हालत भी गंभीर है.

किशन कविता को करीब 25 किलोमीटर दूर कवंत के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाना चाहता था.

छोटा उदयपुर में नर्मदा नदी के किनारे बसे इस गांव में इस घटना से गहरा शोक है और सड़क निर्माण में हो रही देरी को लेकर भी लोग आक्रोशित हैं. जिससे स्थानीय लोगों के दरवाजे तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच सकती थीं.

ग्रामीणों का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है. गांव के निवासी नागिन राठवा ने बताया कि प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण के लिए पहला टेंडर जारी किए पांच साल हो गए हैं. लेकिन करीब सात किलोमीटर में से उन्होंने सिर्फ़ तीन किलोमीटर सड़क बनाई है. हमें मरीज़ों को कपड़े के अस्थायी स्ट्रेचर पर ले जाकर उस जगह तक ले जाना पड़ता है जहां एम्बुलेंस आ सकती है.

राठवा ने बताया कि ऐसी आपात स्थिति में समय नहीं होता और पैदल चलना जोखिम भरा होता है. कविता से पहले तीन अन्य महिलाओं का भी यही हश्र हुआ. इस घटना ने हमें झकझोर कर रख दिया है. हम नाराज़ हैं.

संपर्क करने पर भाजपा सांसद जशु राठवा ने कहा कि भले ही उनकी पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का लक्ष्य “हर कोने में कालीन वाली सड़कें” बिछाना है लेकिन तुरखेड़ा जैसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में यह संभव नहीं था.

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह घटना दुखद है और हम इस खबर से दुखी हैं… हालांकि, मेरे निर्वाचन क्षेत्र के आदिवासी जिले के दूरदराज के इलाकों में लगभग तीन या चार किलोमीटर पैदल चलना आम बात है. ऐसा नहीं है कि सड़कें नहीं बनाई जानी चाहिए. भाजपा सरकार हर कोने में कालीन वाली सड़कें बिछाने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन ये इलाके चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि गाँव बिखरे हुए हैं और पहाड़ी इलाकों में हैं. हालांकि, मैंने जांच की है और गाँव में इस विशेष फालिया (गली) के लिए एक निविदा है जहाँ से परिवार को कपड़े के स्ट्रेचर पर उसके साथ चलना पड़ा और इसे जल्द ही बनाया जाएगा.”

छोटा उदयपुर के प्रभारी जिला विकास अधिकारी एसडी गोकलानी ने बताया कि सरकार को सात किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का प्रस्ताव मिला है.

उन्होंने बताया, “हमें सूचना मिली है कि तुरखेड़ा गांव के बसकारिया फलिया की एक महिला की प्रसव पीड़ा के बाद रास्ते में ही मौत हो गई. गांव पहाड़ी इलाके में स्थित है और वहां 11 करोड़ रुपये की लागत से 7 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का प्रस्ताव मिला है. इस पर जल्द ही काम शुरू होने की उम्मीद है.”

आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य और एंबुलेंस सेवाओं की कमी के अलावा खराब सड़के जानलेवा साबित होते हैं.

आदिवासी क्षेत्रों में एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है, जिसके कारण यहां के आदिवासी खुद ही बीमार और गर्भवती मरीजों को डोली के सहारे कई किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करके अस्पाताल तक ले जाते हैं.

लेकिन अफसोस की लगातार इस मुद्दे पर मीडिया रिपोर्टिंग के बावजूद प्रशासन कोई कदम नहीं उठाता है.

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