असम के अखिल आदिवासी छात्र संघ ने राज्य में पंचायत चुनावों के मद्देनजर चाय बागानों में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.
यह घोषणा छात्र संघ के अध्यक्ष प्रदीप नाग ने फुलबारी चाय बागान के खेल के मैदान में एक सार्वजनिक विरोध सभा के दौरान की, जहां उन्होंने कहा कि मूल निवासी समुदाय को एक स्टैंड लेने की जरूरत है.
इस सभा में काफी भीड़ जुटी, जिसने असम में आदिवासी समुदाय की सामूहिक शक्ति और एकता को प्रदर्शित किया.
प्रदीप नाग ने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए आदिवासी समुदाय को अपनी पहचान और अधिकारों का दावा करने की तत्काल जरूरत है. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि समुदाय वर्तमान राजनीतिक शासन के तहत हाशिए पर महसूस करता है और अपनी संस्कृति, भूमि और आजीविका की रक्षा के लिए मूल निवासी समूहों के बीच एकजुटता के महत्व पर प्रकाश डाला.
साथ ही नाग ने मूल निवासी लोगों को कथित रूप से हाशिए पर रखने के लिए भाजपा सरकार की आलोचना की. उन्होंने दावा किया कि उन्हें बागानों से व्यवस्थित रूप से बाहर निकाला जा रहा है.
उन्होंने कहा, “पंचायत चुनावों के दौरान मूल निवासी लोग निष्क्रिय नहीं रहेंगे. भाजपा हमें एसटी का दर्जा देने में विफल होकर हमारे खिलाफ एक राजनीतिक तंत्र बना रही है.”
आदिवासी छात्र संघ ने समुदाय को उनके अधिकारों और उनके जीवन को प्रभावित करने वाली राजनीतिक प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए और अधिक सार्वजनिक बैठकें और जागरूकता अभियान आयोजित करने की योजना बनाई है.
समूह का उद्देश्य आदिवासी युवाओं में सशक्तिकरण की भावना को बढ़ावा देना और उन्हें राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना है.
इसके अलावा इस कार्यक्रम के दौरान कई पुरानी मांगों को दोहराया गया, जिनमें शामिल हैं:
1. संविधान संशोधन विधेयक संख्या 125, 2019 के अनुसार अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देना.
2. मूल निवासी आबादी के लिए एक सैटेलाइट स्वायत्त परिषद की स्थापना करना.
3. असम भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1886 की धारा 10 के तहत स्थानीय लोगों को भूमि पट्टे प्रदान करना.
4. स्थानीय लोगों को उनकी संबंधित जनजातियों या उप-जनजातियों के नाम पर जातीय पहचान प्रमाण पत्र जारी करना.
5. स्थानीय चाय श्रमिकों की दैनिक मजदूरी बढ़ाकर 551 रुपये प्रति माह करना.
चाय बागानों में भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध की घोषणा असम में विभिन्न समुदायों और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच बढ़ते तनाव के बीच की गई है. चाय बागानों में काम करने वाले कई आदिवासी लोगों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी और उनके मुद्दों की कथित उपेक्षा के बारे में अपनी शिकायतें व्यक्त की हैं.
आदिवासी समुदाय ने ऐतिहासिक रूप से असम के चाय उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इन्होंने राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. हालांकि, इस समुदाय के कई सदस्यों को लगता है कि उनके योगदान को मान्यता नहीं दी गई है, जिससे असंतोष और की भावनाएं पैदा हुई हैं.
आदिवासी छात्र संघ की इस घोषणा ने पूरे असम में चर्चाओं को जन्म दिया है. कुछ लोग इसे आदिवासी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखते हैं, जिसे अक्सर मुख्यधारा की राजनीति में अनदेखा किया जाता है.
वहीं कुछ लोग आगाह करते हैं कि बढ़ते तनाव से असम में समुदायों के बीच और अधिक ध्रुवीकरण हो सकता है, उन्होंने बातचीत और सुलह की आवश्यकता पर जोर दिया.
वहीं घोषणा के जवाब में, असम में भाजपा नेताओं ने कहा है कि वे विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्होंने आदिवासी समुदाय से विरोधात्मक रुख अपनाने के बजाय बातचीत में शामिल होने का आग्रह किया है.
उनका तर्क है कि पार्टी ने असम में आदिवासियों सहित विभिन्न समुदायों की चिंताओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं.