HomeAdivasi Dailyओडिशा में द्रौपदी मुर्मू की जीत का जश्न

ओडिशा में द्रौपदी मुर्मू की जीत का जश्न

मतगणना के दौरान ही मुर्मू के गृह नगर रायरंगपुर में सामूहिक वितरण के लिए 10 क्विंटल लड्डू तैयार किए गए थे. इस छोटे से शहर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया और पूरा शहर इस ‘मिट्टी की बेटी’ को बधाई देने वाले बैनरों से सराबोर हो गया.

राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत के बाद आदिवासी गढ़ ओडिशा के मयूरभंज ज़िले में लोगों ने जमकर जश्न मनाया. मुर्मू के गृह राज्य ओडिशा के हर कोने में, नेताओं और लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी और मिठाई खिलाई.

यहां तक कि ओडिशा विधानसभा, जिसका सत्र चल रहा है, वो भी अचानक जश्न में डूब गई क्योंकि बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने एक-दूसरे को और स्टाफ सदस्यों के बीच मिठाई बांटी. पारंपरिक पोशाक में कई आदिवासी विधायक द्रौपदी मुर्मू की जीत पर खुशी मनाने के लिए सड़कों पर नाचते देखे गए.

ओडिशा-झारखंड सीमा पर तिरिंग के रहने वाले गोपाल बेसरा ने मीडिया से कहा, “यह ओडिशा में आदिवासी या गैर-आदिवासी दोनों के जीवन का एक ऐतिहासिक पल है. हमें द्रौपदी मुर्मू पर गर्व है जो भारत के इस सुदूर हिस्से से आती हैं. यह उपलब्धि की एक अद्भुत भावना है. उत्सव एक दिन में खत्म नहीं होने वाला है. यह महीनों और एक साल तक भी खिंच सकता है.”

मुर्मू के पैतृक गांव उपरबेड़ा और उनके पति के गांव पहाड़पुर में आदिवासियों ने ढोल की थाप पर पारंपरिक नृत्य किया. नर्तक गोलाकार या अर्ध-गोलाकार संरचनाओं में हथियारों को आपस में जोड़े हुए घूम रहे थे. नर्तकों के पैरों की गति सामंजस्य में थी.

मतगणना के दौरान ही मुर्मू के गृह नगर रायरंगपुर में सामूहिक वितरण के लिए 10 क्विंटल लड्डू तैयार किए गए थे. इस छोटे से शहर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया और पूरा शहर इस ‘मिट्टी की बेटी’ को बधाई देने वाले बैनरों से सराबोर हो गया.

सुबह से ही श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, रायरंगपुर के छात्र, जहां मुर्मू ने बहुत कम अवधि के लिए एक शिक्षक के रूप में काम किया, वहीं उपरबेड़ा और भुवनेश्वर के स्कूल, जहां उन्होंने पढ़ाई की थी, इस पल को संजोने के लिए तैयारी में थे.

इंस्टीट्यूट के मैनेजमेंट कमेटी के सदस्य रवींद्र पटनायक ने कहा, “उनके भारत की राष्ट्रपति बनने के साथ, हर संस्थान जिसकी वह अपने जीवनकाल में हिस्सा थीं, वो विशेष हो गया है और इतिहास की किताबों में प्रवेश कर गया. छात्रों, शिक्षकों और सभी कर्मचारियों के बीच उत्साह को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है.”

मुर्मू के भतीजे ब्रज मोहन मुर्मू ने कहा, “वह मेरी आंटी है. हम उनके लिए बहुत गर्व और खुशी महसूस करते हैं. उनकी पहचान अब पहाड़पुर या उपरबेड़ा से नहीं जुड़ी है. बल्कि यह भारत से भी आगे निकल गई है. पूरी दुनिया में उन्हें भारत के राष्ट्रपति के रूप में जाना जाएगा.”

वहीं द्रौपदी मुर्मू की शिक्षिका बासुदेव बेहरा ने कहा, “मैं एक शिक्षक के रूप में भाग्यशाली हूं कि मैंने द्रौपदी को पढ़ाई से जोड़ने में एक भूमिका निभाई. वह बहुत शानदार थीं. हम उनके बचपन के दिनों से ही उनके नेतृत्व की गुणवत्ता को पहचान गए थे. उनके पिता ग्राम प्रधान हुआ करते थे और उन्होंने अपने पैतृक स्थान पर स्कूल की स्थापना की. वह निश्चित रूप से भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर खुद को साबित करेंगी.”

मयूरभंज जिले के सुदूर उपरबेड़ा गाँव में जन्मी, द्रौपदी मुर्मू ने उच्च शिक्षा के लिए भुवनेश्वर जाने से पहले गाँव में ही अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की. उन्होंने अपने अकादमिक करियर को ऐसे समय में आगे बढ़ाया जब लड़कियों की शिक्षा को वर्जित किया जाता था.

स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह भुवनेश्वर में एक क्लर्क के रूप में राज्य सरकार में शामिल हो गईं. उस दौर में मुर्मू सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं. बाद के सालों में वह शिक्षक भी रहीं. मुर्मू ने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया.

1998 में, उन्हें शहरी स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए राजी किया गया. उन्होंने न सिर्फ पार्षद पद जीता, बल्कि रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद की उपाध्यक्ष भी बनीं. इसके बाद, उन्होंने 2000 और 2004 में रायरंगपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीता. उन्होंने 2009 में मयूरभंज से लोकसभा चुनाव लड़ा और 2014 में रायरंगपुर विधानसभा चुनाव हार गईं.

व्यक्तिगत त्रासदी

जैसे चुनावी झटके काफी नहीं थे, द्रौपदी मुर्मू को एक के बाद एक व्यक्तिगत त्रासदियों का भी सामना करना पड़ा. 2009 और 2014 के बीच, उन्होंने अपने दो बेटों को दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में खो दिया और बाद में उन्होंने अपने पति और मां को भी खो दिया.

उनकी सबसे बड़ी बेटी की भी शादी के कुछ साल बाद ही मौत हो गई थी. उनकी अब एक ही बेटी बची है. हालांकि, निर्वाचित राष्ट्रपति इन मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकलीं और झारखंड के सबसे सफल राज्यपालों में से एक के रूप में अपनी पहचान को आगे बढ़ाया. बाकी अब जो है वो पूरी दुनिया के सामने है.

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने कुल 6,76,803 मतों के साथ जीत दर्ज की. वहीं विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को कुल 3,80,177 वोट मिले. चौथे चरण की मतगणना के बाद निर्वाचन अधिकारी पी. सी. मोदी ने मुर्मू के 64.03 फीसदी मतों के साथ चुनाव जीतने की आधिकारिक घोषणा की.

यशवंत सिन्हा को कुल वैध मतों के 36 फीसदी वोट मिले. मुर्मू को 540 सांसदों सहित कुल 2824 मतदाताओं के वोट मिले जबकि यशवंत सिन्हा को 208 सांसदों सहित 1,877 मतदाताओं के वोट मिले. 

(Image Credit: The Hindu and @BJP4Odisha)

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