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NCST ने ओडिशा सरकार से कहा- सीमावर्ती क्षेत्रों में आदिवासियों के मूल अधिकार सुनिश्चित करें

राधाकांत त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि सबसे ज्यादा गांवों को लेकर ओडिशा का आंध्र प्रदेश के साथ सीमा विवाद है. राज्य में लगभग 38 गांव हैं जिनमें से अधिकांश बालासोर और मयूरभंज जिलों में हैं जो पश्चिम बंगाल के साथ सीमा साझा करते हैं.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) ने ओडिशा (Odisha) सरकार से पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे 45 से अधिक गांवों में रहने वाले आदिवासियों के लिए बुनियादी मानवाधिकार (Basic human rights) और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कहा है.

सुप्रीम कोर्ट के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी द्वारा पिछले साल नवंबर में दायर एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए आदिवासी अधिकारों के शीर्ष पैनल यानि एनसीएसटी ने मुख्य सचिव प्रदीप कुमार जेना को नोटिस जारी कर 15 दिनों के भीतर विस्तृत जवाब मांगा है.

अगर जेना इस समयसीमा तक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते हैं तो आयोग व्यक्तिगत रूप से या उसके समक्ष किसी प्रतिनिधि द्वारा पेश होने के लिए समन जारी कर सकता है.

राधाकांत त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार की लापरवाही के कारण 45 गांवों के 10 हजार से अधिक आदिवासी बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित हैं.

त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि सबसे ज्यादा गांवों को लेकर ओडिशा का आंध्र प्रदेश के साथ सीमा विवाद है. राज्य में लगभग 38 गांव हैं जिनमें से अधिकांश बालासोर और मयूरभंज जिलों में हैं जो पश्चिम बंगाल के साथ सीमा साझा करते हैं. इसके अलावा सात गांवों का छत्तीसगढ़ और झारखंड से विवाद है.

याचिकाकर्ता त्रिपाठी ने कहा, “राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि उसके 100 से अधिक गांवों की सीमाएं निर्धारित नहीं की जा सकीं. उसके पास विवादित गांवों का कोई उचित रिकॉर्ड नहीं है. इसे देखते हुए मैंने एनसीएसटी से इस मामले को गंभीरता से लेने और समयबद्ध तरीके से जांच कराने का अनुरोध किया है. ताकि वंचित लोगों को राहत मिले.”

उन्होंने कहा कि आदिवासी पीने योग्य पेयजल, संचार सुविधाओं, सामाजिक कल्याण योजनाओं के लाभ, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

क्या है मामला?

दरअसल, ओडिशा अपने 30 जिलों में से आठ में फैले चार पड़ोसी राज्यों के साथ अनसुलझे सीमा विवादों से जूझ रहा है. 30 में से 14 जिले आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड के साथ सीमा साझा करते हैं.

ओडिशा का पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के साथ 42 गांवों को लेकर सीमा विवाद है. इसके बाद पश्चिम बंगाल में 14 गांवों, झारखंड में 13 और छत्तीसगढ़ में पांच गांवों को लेकर सीमा विवाद है. साथ ही सरकार ने स्वीकार किया था कि राज्य की सीमा पर 100 से अधिक गांवों की सीमाएं निर्धारित नहीं की जा सकी है.

ओडिशा का आंध्र प्रदेश के साथ गंजम जिले के 21, गजपति के 16 और रायगढ़ के पांच गांवों को लेकर विवाद है. वहीं पश्चिम बंगाल के साथ बालासोर में छह से अधिक और मयूरभंज में आठ गांवों को लेकर विवाद है..तो झारखंड के साथ मयूरभंज में दो, क्योंझर में पांच और सुंदरगढ़ में छह गांवों को लेकर विवाद है. जबकि छत्तीसगढ़ के साथ नबरंगपुर जिले में चार और झारसुगुड़ा में एक गांव को लेकर विवाद है.

इस तरह के विवाद दो राज्यों के बीच तनाव और प्रतिष्ठा और काफ़ी हद तक राजनीतिक नफ़े नुक़सान का कारण बन जाते हैं. लेकिन इन विवादों की वजह से आदिवासियों और वंचित तबके के लोगों की ज़िंदगी बेहद मुश्किल हो जाती है.

क्योंकि उन्हें कई बार जीवन के लिए ज़रूरी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ता है क्योंकि उन्हें इनके लिए ज़रूरी दस्तावेज़ हासिल करने के लिए पहले अपने स्थानीय नागरिक होने का प्रमाण देने पड़ता है.

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