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छत्तीसगढ़: आदिवासी बहुल बस्तर के गांव में धर्मांतरण रोकने के लिए जारी हुआ फरमान

बस्तर जिले के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि प्रस्ताव का कोई कानूनी आधार नहीं है. अगर धर्म के आधार पर कोई भेदभाव होता है तो हम कार्रवाई करेंगे. ऐसा लगता है कि संकल्प धर्मांतरण के उद्देश्य से है.

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आदिवासी बहुल बस्तर (Bastar) जिले में धर्मांतरण (conversion) के खिलाफ अब ग्रामीण लामबंद होने लगे हैं. साथ ही बस्तर के ग्रामीण अंचलों में धर्म परिवर्तन करा रहे लोगों को रोकने के लिए गांव में विशेष ग्राम सभा भी आयोजित कर कई महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं.

ऐसे ही बस्तर के एक ग्राम सभा ने “बाहर के त्योहारों” को मनाने पर रोक लगाने और किसी भी धार्मिक गतिविधि के लिए इसकी अनुमति लेने को अनिवार्य करने का प्रस्ताव पारित किया है. जिले के तोकापाल ब्लॉक के रानसर्गीपाल गांव (Ransargipal village) की ग्राम सभा द्वारा पारित प्रस्ताव आदिवासियों को हिंदुओं और ईसाइयों के खेतों में काम नहीं करने का भी निर्देश देता है.

15 मार्च को पारित किए गए प्रस्ताव में दावा किया गया है कि हिंदू और ईसाई उपदेशकों के कारण आदिवासी लोग धर्मांतरित हो रहे हैं. साथ ही आदिवासी परंपराएं, संस्कृति और पहनावे को खो रहे हैं.

प्रस्ताव में कहा गया है कि किसी भी धार्मिक गतिविधि, सरकारी विकास परियोजना या व्यापारिक गतिविधि के लिए अनुमति की आवश्यकता होगी. ग्राम सभा किसी भी बाहरी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है जो किसी भी धर्म का प्रचार करता है. बच्चे का नामकरण, विवाह और प्रार्थना जैसी सभी महत्वपूर्ण गतिविधियां गांव के अधिकारियों जैसे कि गयता (Gaita) जो आदिवासी अनुष्ठान करते हैं के अनुसार की जाएंगी.

निर्देश के मुताबिक ईसाई अपने मृतकों को गांव में नहीं दफना सकते. इसके अलावा प्रस्ताव में कहा गया है कि नियम तोड़ने वालों को गांव से बाहर कर दिया जाएगा.

बस्तर जिले के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “प्रस्ताव का कोई कानूनी आधार नहीं है. अगर धर्म के आधार पर कोई भेदभाव होता है तो हम कार्रवाई करेंगे. ऐसा लगता है कि संकल्प धर्मांतरण के उद्देश्य से है.”

छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने कहा, ”कहां है उनकी धर्म की आजादी? क्या PESA (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act, 1996) कानून संविधान से बड़ा है?”

बस्तर के आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा, “इस तरह के संघर्ष इसलिए हो रहे हैं क्योंकि आदिवासी लंबे समय से सरकार से निराश हैं. हमने 1996 में पेसा कानून बनाने के लिए बहुत प्रयास किए, जो आज आदिवासियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण कानून है. लेकिन इसे कभी ईमानदारी से लागू नहीं किया गया इसलिए यह प्रतिक्रिया हुई. धर्मांतरण का मुद्दा गरमा रहा है क्योंकि पिछली सभी सरकारें स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने में विफल रही हैं. वहीं (ईसाई) मिशनरी आदिवासियों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं. धर्मांतरण सभी तीन राजनीतिक दलों – कांग्रेस, भाजपा और वाम दलों की अज्ञानता के साथ-साथ आदिवासियों में गरीबी और अशिक्षा के कारण होता है.”

लेकिन सर्व आदिवासी समाज, जो बहुसंख्यक आदिवासियों का प्रतिनिधत्व करता है वो इस प्रस्ताव के समर्थन में आया है. सर्व आदिवासी समाज के सचिव विनोद नागवंशी ने कहा, “ग्रामीण भारतीय संविधान द्वारा उन्हें दिए गए अधिकारों की सीमा के भीतर अपनी पहचान की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में राजनीतिक शक्तियों को प्रस्ताव के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले आदिवासी संस्कृति और पहचान की रक्षा के मुद्दे पर विचार करना होगा.”

वहीं बीजेपी के पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा, “मैंने प्रस्ताव पढ़ा. कांग्रेस मिशनरियों का समर्थन कर रही है और जब हमारे समाज के लोग इस मुद्दे पर विरोध करते हैं और कोई घटना हो जाती है तो हमारे लोगों को जेल भेज दिया जाता है. इसलिए डर पैदा हो रहा है क्योंकि कांग्रेस सरकार ने आदिवासी पहचान को कुचल दिया है और इसलिए आप ईसाइयों के साथ-साथ हिंदुओं के खिलाफ भी इस तरह का प्रस्ताव देखते हैं.”

यह पूछे जाने पर कि आदिवासी भी अपने संकल्प में हिंदुओं से दूरी क्यों बना रहे हैं?  इस पर केदार कश्यप ने कहा, “नहीं, वे खुद को हिंदुओं से दूर नहीं कर रहे हैं. बल्कि अभी ये अपनी पहचान बचाने की कोशिश कर रहे हैं. पहले, वे धर्मांतरण से छुटकारा चाहते हैं फिर वे हिंदू (समाज) या किसी अन्य समाज के बारे में सोच सकते हैं.”

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा गरमाया हुआ है. जनवरी में नारायणपुर जिला ईसाइयों के खिलाफ हिंसा से हिल गया था, जिसके बाद बघेल सरकार ने सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) का उपयोग करने का निर्देश दिया था.

वहीं बीजेपी भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार पर राज्य में ईसाई धर्म के लिए “धर्मांतरण अभियान” पर आंख मूंदने का आरोप लगाया है.

बीजेपी आक्रामक , सरकार सहमी

बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में आदिवासियों में धर्म परिवर्तन के मुद्दे को उछाल के आदिवासी समाज में एक बँटवारा पैदा कर रही है.

इनमें से मध्य प्रदेश और कर्नाटक में बीजेपी की ही सरकारें हैं, इसलिए वहाँ की सरकारों का इस तरह के मुद्दों को समर्थन समझ में आता है. लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ में ग़ैर बीजेपी सरकारें इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं.

क्योंकि उन्हें डर है कि इस तरह के मुद्दों पर सक्रियता उनके आदिवासी आधार को हिला सकती है. उसकी यह चुप्पी लगातार आदिवासी इलाक़ों में सांप्रदायिक ताक़तों को मज़बूत कर रही है.

इसका परिणाम ये है कि जिन आदिवासियों को एक हो कर अपने क़ानूनी और संवैधानिक हक़ों की लड़ाई लड़नी थी, वे धर्मांतरण की लड़ाई में उलझ गए हैं.

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