HomeAdivasi Dailyमणिपुर के सेनापति ज़िले में चार दिवसीय 'नागा कॉन्क्लेव-2' का आयोजन

मणिपुर के सेनापति ज़िले में चार दिवसीय ‘नागा कॉन्क्लेव-2’ का आयोजन

वर्ष 2025 में यह आयोजन "स्थापित कहानियों की आलोचना" विषय पर केंद्रित है. इसका उद्देश्य उन ऐतिहासिक और राजनीतिक धारणाओं पर सवाल उठाना है जो दशकों से नागा समुदाय के सामने बनी हुई हैं और जिनकी समीक्षा करने की ज़रूरत महसूस की जाती है.

मणिपुर के सेनापति ज़िले में आज यानि 7 मई से चार दिवसीय ‘नागा कॉन्क्लेव-2’ का आयोजन शुरू हुआ.

यह कार्यक्रम यूनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी) द्वारा आयोजित किया गया है और इसमें नागा समुदाय के पारंपरिक अधिकारों, राजनीतिक संघर्षों और संवैधानिक मुद्दों पर गहन चर्चा की जा रही है.

इस आयोजन में नागा महिला संघ और अखिल नागा छात्र संघ मणिपुर का भी सहयोग है.

वर्ष 2025 में यह आयोजन “स्थापित कहानियों की आलोचना” विषय पर केंद्रित है. इसका उद्देश्य उन ऐतिहासिक और राजनीतिक धारणाओं पर सवाल उठाना है जो दशकों से नागा समुदाय के सामने बनी हुई हैं और जिनकी समीक्षा करने की ज़रूरत महसूस की जाती है.

यह आयोजन न केवल एक प्लेटफॉर्म है बल्कि यह नागा समाज के सामने आने वाली समस्याओं और उनके समाधान के लिए एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने का अवसर भी है.

कॉन्क्लेव की शुरुआत यूनाइटेड नागा काउंसिल के अध्यक्ष एन. जी. लोरहो के भाषण से हुई. उन्होंने इस मंच पर अपने  विचार साझा करते हुए कहा कि यह आयोजन नागा समाज के लिए एकजुटता, आत्ममूल्यांकन और संवाद की आवश्यकता को दर्शाता है.

उन्होंने इस मंच को केवल बहस के रूप में नहीं बल्कि एक साझा दृष्टिकोण बनाने का अवसर बताया जिससे नागा समाज अपने भविष्य को लेकर सकारात्मक कदम उठा सके.

कार्यक्रम के चार दिनों में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र-छात्राएं हिस्सा ले रहे हैं.

इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य यह है कि किस प्रकार नागा समाज को ऐतिहासिक रूप से एक उपनिवेशवादी नज़रिये से देखा गया और किस तरह उसकी पहचान और परंपराओं को चुनौती दी गई.

मंच पर यह सवाल भी उठाए जा रहे हैं कि आज़ाद भारत में आदिवासी समुदायों को कितना संवैधानिक सुरक्षा मिली है और क्या ये सुरक्षा ज़मीनी स्तर पर प्रभावी हो पाई है. विशेष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 – C के तहत मिलने वाले विशेष प्रावधानों पर विभिन्न विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा करेंगे.

सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी लोक्हो पुनी ने “आज के विकास के रास्ते को नव-उपनिवेशवादी नजरिये से देखना” विषय पर अपने विचार रखे.

पूर्व में उत्तर-पूर्व परिषद (NEC) के मानव संसाधन विकास निदेशक रह चुके के. सिले एंथनी ने “विकास के ढांचे पर एक संदर्भ आधारित बातचीत” विषय पर चर्चा की.

कॉन्क्लेव के एक सत्र में नागा समुदाय की पारंपरिक न्याय व्यवस्था और सामाजिक संरचनाओं पर भी चर्चा हुई. वक्ताओं का कहना है कि बाहरी नीतियों और तथाकथित विकास योजनाओं ने समुदाय की पारंपरिक प्रणाली को नुकसान पहुँचाया है.

इस विषय पर बात करते हुए कई वक्ताओं ने यह भी बताया कि आदिवासी क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यों में स्थानीय लोगों की सहभागिता बेहद कम है, जो चिंता का विषय है.

उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में विकास कार्यों को एक नए दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए जिसमें स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को महत्व दिया जाए.

कॉन्क्लेव के अंतिम दिन, ग्लोबल नागा मंच से जुड़ी वरिष्ठ हस्तियाँ प्रोफेसर रोज़मेरी द्ज़ीविचु और चुबा ओजुकुम नागा राजनीतिक आंदोलन की यात्रा और भविष्य की दिशा पर अपने विचार रखेंगी.  

इसके अलावा, नागा मानवाधिकार आंदोलन से जुड़े नेता नेइंगुलो क्रोमे की अगुवाई में एक खुली परिचर्चा भी आयोजित की जाएगी जिसमें सभी मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया जाएगा.

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