HomeAdivasi Dailyनहीं रहे आदिवासी लोक नृत्य गुस्सादी उस्ताद कनक राजू

नहीं रहे आदिवासी लोक नृत्य गुस्सादी उस्ताद कनक राजू

पद्मश्री अवॉर्ड मिलने पर कनक राजू ने कहा था, "यह पुरस्कार मुझे क्यों मिला नहीं पता लेकिन मैं खुश हूं कि दिल्ली में मेरे नाम पर विचार किया गया. मुझे बहुत खुशी होगी कि अगर सरकार मेरी बाकी बची जिंदगी के लिए आश्रय और भोजन की व्यवस्था कर सकें. अगर यह पुरस्कार मुझे खुशहाल जिंदगी जीने में मदद करेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी."

आदिवासी नृत्य शैली गुस्सादी को आगे बढ़ाने वाले पद्मश्री से सम्मानित कनक राजू का शुक्रवार (25 अक्टूबर 2024) को उनके पैतृक गांव मरलावई में आयु संबंधी समस्याओं के निधन हो गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.

पीएम मोदी ने सोशल मीएक्स पर लिखा- “गुस्सादी नृत्य को संरक्षित करने में उनका समृद्ध योगदान आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करेगा. उनके समर्पण और जुनून ने सुनिश्चित किया कि सांस्कृतिक विरासत के महत्वपूर्ण पहलू अपने प्रामाणिक रूप में पनप सकें। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना.”

पूर्व आदिलाबाद जिले के विधायकों, सांसदों और प्रभारी मंत्री सीथक्का ने कनक राजू के निधन पर उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की.

उन्होंने गुस्सादी नृत्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान और अनूठी आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए उनकी प्रशंसा की.

कनक राजू को पारंपरिक आदिवासी नृत्य गुस्सादी में उनके योगदान और अनूठी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से पद्म श्री पुरस्कार मिला था.

पद्मश्री अवॉर्ड मिलने पर कनक राजू ने कहा था, “यह पुरस्कार मुझे क्यों मिला नहीं पता लेकिन मैं खुश हूं कि दिल्ली में मेरे नाम पर विचार किया गया. मुझे बहुत खुशी होगी कि अगर सरकार मेरी बाकी बची जिंदगी के लिए आश्रय और भोजन की व्यवस्था कर सकें. अगर यह पुरस्कार मुझे खुशहाल जिंदगी जीने में मदद करेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी.”

इस अद्भुत परंपरा को संरक्षित रखने के लिए उन्होंने 40 साल से अधिक समय तक मेहनत की और युवा पीढ़ी को इस कला का प्रशिक्षण देते रहे. पिछले 43 वर्षों में उन्होंने सैकड़ों आदिवासी किशोरों और युवाओं को गुस्सादी नृत्य में प्रशिक्षित किया.

पिछले साल तक कनक राजू उत्नूर में एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) द्वारा संचालित आदिवासी कल्याण स्कूलों में पढ़ने वाले इच्छुक आदिवासी छात्रों का मार्गदर्शन करते थे.

कनक राजू का गुस्सादी नृत्य से पुराना जुड़ाव था और उन्होंने गुस्सादी सांस्कृतिक मंडली का नेतृत्व दिल्ली में भी किया था, जहां उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति जैल सिंह के सामने प्रदर्शन किया था.

पद्मश्री कनक राजू

तेलंगाना के कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के जैनूर मंडल के मारलवाई गांव निवासी राजू ने छह दशकों से अधिक का समय गुस्सादी का अभ्यास करने में बिताया है, जो आमतौर पर उनकी राज गोंड जनजाति का पारपंरिक नृत्य है.

इस लोक नृत्य की परंपरा को बचाए रखने के अपने अथक प्रयासों के तहत वह पिछले 40 से अधिक सालों से युवा पीढ़ी को सिखा रहे हैं और इसे जीवित रखने के लिए सरकारी समर्थन की जरूरत बताते हैं.

गुस्सादी में केवल आदिवासी पुरुष हिस्सा लेते हैं. एक स्थानीय देवता से जुड़ा यह नृत्य डंडारी उत्सव के दौरान आयोजित होता है, जो आमतौर पर दीपावली के बाद शुरू होता है और 10 दिनों तक चलता है.

नर्तक करीब 1,500 मोर पंखों से बनी टोपी पहनते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में मल बूरा कहा जाता है और अपनी कमर पर जानवरों की खाल लपेटते हैं.

गुस्सादी का प्रदर्शन दरअसल युवा पुरुष महिलाओं को प्रभावित करने और एक संभावित जीवनसाथी खोजने के लिए करते हैं.

अपने पिता से यह नृत्य सीखने वाले राजू बताते थे कि वो बहुत गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं. बचपन में उनके पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं होते थे. जब तक वो आठ साल के नहीं होते थे तब तक ज्यादातार निर्वस्त्र ही रहते थे.

कनक राजू बताते थे कि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन जंगलों में बिताया. वो कहते थे कि गुस्सादी कला उनके दादा-परदादा के समय से चली आ रही है.

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