भारत के इतिहास में कई जनजातियाँ हैं जिनकी कहानियाँ अभी भी अनकही हैं. इनमें से एक जनजाति हब्शी भी है. ये जनजाति भारत में सैकड़ों वर्षों से निवास कर रही है.
यह जनजाति कौन है? यह कहां से आई? और कौन सा हब्शी नेता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समाज के लिए सबसे बड़ा योद्धा बना?
हब्शी जनजाति कौन है और कहां से आई?
हब्शी जनजाति मूल रूप से अफ्रीका की है. इसे भारत में सिद्धि समुदाय के रूप में पहचाना जाता है.
इतिहासकारों के अनुसार, 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच अरब व्यापारियों के माध्यम से ये लोग भारत आए. कई हब्शी लोग गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के शासकों के अधीन योद्धा और सैनिक के रूप में काम करने लगे.
समय के साथ वे स्थानीय समाज का हिस्सा बन गए और जंगलों में बस गए.
वर्तमान में हब्शी (सिद्धि) समुदाय गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा में पाया जाता है.
यह समुदाय अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान, युद्धकला और पारंपरिक जीवनशैली के लिए जाना जाता है.
हब्शी समुदाय के स्वतंत्रता सेनानी
भारत के इतिहास में कई ऐसे आदिवासी वीर स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं जिनकी गाथाएँ कम ही सुनाई जाती हैं.
कर्नाटक की रानी चेन्नम्मा और उनके सहयोगी रामा हब्शी ऐसे ही गुमनाम नायक थे. इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त संघर्ष किया.
यह केवल एक युद्ध नहीं था बल्कि अन्याय और गुलामी के खिलाफ उठी एक सशक्त आवाज़ थी.
विद्रोह की शुरुआत
कित्तूर रियासत के राजा मल्लसारजा का निधन होने के बाद राज्य का शासन संकट में आ गया.
उनके पुत्र शिवलिंग रुद्रसारजा उस वक्त बहुत छोटे थे. इसलिए रानी चेन्नम्मा ने राजकाज संभाला. लेकिन अंग्रेजों ने डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स (Doctrine of lapse) नीति के तहत यह दावा किया कि बिना उत्तराधिकारी के यह राज्य अब ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होगा.
रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों की इस नीति को पूरी तरह खारिज कर दिया. उन्होंने अपने पाल्य पुत्र को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया लेकिन अंग्रेजों ने इसे मानने से इनकार कर दिया.
यह अन्यायपूर्ण फैसला केवल सत्ता हथियाने की चाल थी. इस साज़िश का जवाब रानी ने युद्ध से दिया.
कित्तूर का युद्ध
अंग्रेजों की सेना कर्नल थैकरे के नेतृत्व में कित्तूर किले पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी. लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि रानी चेन्नम्मा की सेना इतनी संगठित और शक्तिशाली होगी.
इस युद्ध में रामा हब्शी ने एक प्रमुख सेनापति की भूमिका निभाई. उन्होंने सिद्धि जनजाति के वीर सैनिकों के साथ अंग्रेजों का डटकर सामना किया.
रानी चेन्नम्मा और उनके वीर सैनिकों ने अंग्रेजों को भारी नुकसान पहुँचाया. कर्नल थैकरे मारा गया और ब्रिटिश सेना को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. यह जीत रामा हब्शी की रणनीति और बहादुरी का परिणाम थी.
रामा हब्शी की विरासत
आज इतिहास में भले ही रामा हब्शी का नाम ज्यादा चर्चित न हो लेकिन सिद्धि जनजाति और उत्तर कर्नाटक के लोग आज भी उनकी वीरता को याद करते हैं.
उनका बलिदान हमें सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ खड़ा होना जरूरी है चाहे दुश्मन कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो.