HomeAdivasi Dailyआदिवासी समुदायों में सांप्रदायिकता फैलान की साज़िश - आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच

आदिवासी समुदायों में सांप्रदायिकता फैलान की साज़िश – आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच

सम्मेलन में एक अध्ययन भी सार्वजनिक किया गया. इसमें आदिवासियों के बीच सांप्रदायिकता, आदिवासी महिलाओं की स्थिति और भारत की जनजातियों के बीच शिक्षा की स्थिति को समझने के लिए किया गया था.

तमिलनाडु के नमक्कल (Namakkal) में आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (एएआरएम)( The Adivasi Adhikar Rashtriya Manch (AARM)) ने तीन दिन का सम्मेलन आयोजित किया. यह सम्मेलन 19 से 21 सितंबर तक चला. एएआरएम एक संयुक्त मंच है जो राज्य स्तरीय पर आदिवासी मुद्दों पर लड़ता है.


इस सम्मेलन में करीब 14 राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 380 आदिवासी कार्यकर्ता प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
सम्मेलन का मुख्य उदेशय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियां और आदिवासी लोगों पर बहु-आयामी का हमलों का विरोध करना था.


इस तीन दिन के सम्मेलन में अगल- अगल विषयों पर चर्चा हुई.


चर्चा के तीसरे दिन कल यानी गुरुवार को आदिवासी को प्रभावित करने वाली कई मुद्दों पर चर्चा हुई. जिनमें बड़े पैमाने पर भूमि हड़पना, फंड में कटौती, ग्राम सभाओं पर हमले, शिक्षा के घटते अवसर, सार्वजनिक क्षेत्र में अधूरी रिक्तियां और अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने वाले जैसे कुछ मुद्दे शामिल थे.


इसके अलावा सम्मेलन के तीसरे दिन आदिवासी अधिकार मंच ने राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए 61 सदस्यीय कार्यकारी समिति और 17 सदस्यीय राष्ट्रीय समन्वय समिति (एनसीसी) का चुनाव किया.


जिसमें जितेंद्र चौधरी को अध्यक्ष, बृंदा करात को उपाध्यक्ष, पुलिन बिहारी बास्के को संयोजक, धुलीचंद मीना और तिरुपति राव को उपाध्यक्ष और दिली बाबू को कोषाध्यक्ष चुना गया.


सम्मेलन का उद्घाटन अध्यक्ष बाबूराव ने आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच का ध्वज फहरा कर किया. इसके साथ ही प्रतिनिधियों ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी और उपाध्यक्ष तिरुपति राव ने शोक प्रस्ताव पेश किया.


जिसके बाद केरल के उद्योग और कानून मंत्री (Kerala minister for industries and law) पी राजीव(P Rajeeve) ने उद्घाटन में भाषण दिया की हम सब जातीय, संस्कृती और में भले ही अलग हो. लेकिन हम सब एक बात में सामान्य है और वो यह की हम सब भारतीय हैं.
वर्तमान में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार हमारी इस विविधता में एकता को तोड़ना चाहती है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा है की आदिवासियों के मूलभूत अधिकार के तौर पर इंटरनेट सुविधा केरल के सभी हिस्सों में पहुंचाई गई है.
वंचित और पिछड़े छात्रों को स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई के लिए 25 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है. गरीबी मुक्त केरल परियोजना में 2025 तक बेघरों को आवास उपलब्ध कराने की योजना है.


सम्मेलन में वन संरक्षण अधिनियम 1980 संशोधनों को खारिज करते हुए यह कहा की यह संशोधनों वनों के स्वामित्व और प्रबंधन के ग्राम सभा के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को कमजोर करते है.


मंच ने भी कहा कि यह संशोधन राज्य सरकार की शक्तियों को भी छीन लेती है. इसके साथ ही उन्होंने मणिपुर में चल रही हिंसा और कुकी-ज़ो आदिवासी महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर दुख व्यक्त किया.


उन्होंने आगे कहा की आदिवासी का मतलब सिर्फ पहाड़ों में रहने वाले आदिवासियों से नहीं है बल्कि शहरों में रहने वाले आदिवासियों से भी है.


इसके आलावा सम्मेलन में एएआरएम ने आरएसएस-संबद्ध संगठनों की धर्मों बदलने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजातियों से हटा देने कि मांग का विरोध भी किया.


सम्मेलन में एएआरएम का रिसर्च पेपर


सम्मेलन में एएआरएम (AARM) द्वारा किए गए एक अध्ययन के बारे में भी बताया गया. यह अध्ययन में आदिवासियों के बीच सांप्रदायिकता, आदिवासी महिलाओं की स्थिति और भारत की जनजातियों के बीच शिक्षा की स्थिति को समझने के लिए किया गया था.


रिसर्च पेपर में यह बताया गया है कि गहराते पूंजीवादी और नव-उदारवादी परिवर्तन के साथ आदिवासी महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं. उनकी स्थिति कमजोर बनती जा रही है.


इस स्टडी से पता चलता है कि कुछ आदिवासी महिलाओं के संपत्ति हस्तांतरण जैसे सीमित अधिकार भी उनसे छीने जा रहे हैं.


इसके साथ ही यह स्टडी बताती है कि जो आदिवासी रोज़गार की तलाश में पलायन करते हैं उसमें बड़ी संख्या औरतों की होती है.


स्टडी ने एक चिंताजनक तथ्य यह भी सामने रखा है कि बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं मानव तस्करी और यौन हिंसा की शिकार होती हैं.


इस स्टडी में यह भी बताया गया है कि आदिवासी समुदायों में धर्म परिवर्तन के नाम पर उन आदिवासियों को निशाना बनाया गया है जो अल्पसंख्यक धर्मों को अपना चुके हैं.

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