मणिपुर में जातीय हिंसा पिछेल डेढ़ साल से लगातार जारी है लेकिन वहां पर अभी भी शांति बहाल नहीं हो सकी है. इस बीच विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर का दौरा करने का आग्रह किया है. इस मुद्दे को लेकर शुक्रवार को एक पत्र भी प्रधानमंत्री को भेजा गया.
इस पत्र में उन्होंने पीएम मोदी के सामने तीन मांगें भी रखीं हैं. उन्होंने कहा कि मणिपुर के लोग बेसब्री से प्रधानमंत्री का इंतजार कर रहे हैं ताकि उनकी बेबसी की आवाज सुनी जा सके.
साथ ही कहा कि यहां के लोगों के साथ उनकी सीधी भागीदारी और सक्रिय जुड़ाव ही शांति बहाल कर सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में विपक्षी गठबंधन ने आग्रह किया कि मणिपुर की जनता और ‘INDIA’ गठबंधन की तरफ से हम आपको मणिपुर आने का न्योता देते हैं. हमारा राज्य 3 मई, 2023 यानी लगभग दो साल से अशांति की आग में जल रहा है. इस दौरान राज्य में भारी तबाही हुई है. करीब एक लाख लोग विस्थापित हो गए हैं और सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है.
पत्र में आगे लिखा गया है कि लगातार हिंसा ने मणिपुर के लोगों के बीच दर्द, डर और बेबसी को बढ़ा दिया है.
पत्र में तीन मांगें
राज्य में शांति बहाली के लिए विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के सामने तीन मांगें रखीं. पहली मांग है कि प्रधानमंत्री 2024 खत्म होने से पहले मणिपुर का दौरा करें. अगर उनके पास समय नहीं है, तो दूसरी मांग के मुताबिक, वे सभी मणिपुर के राजनीतिक दलों को अपने दिल्ली स्थित आवास पर आमंत्रित करें.
तीसरी मांग में विपक्षी गठबंधन ने कहा कि मणिपुर के लोगों के साथ प्रधानमंत्री की सीधी बातचीत से ही राज्य में शांति आ सकती है. मणिपुर के लोग वहां की धरती पर आपसे मिलने के लिए उत्सुक हैं.
विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियां चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मणिपुर की स्थिति का जायजा लें और लोगों की समस्याएं सुनें. विपक्ष का मानना है कि सिर्फ सरकार और प्रशासन के भरोसे परिस्थिति नहीं सुधरेगी.
प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत दखल जरूरी है. मणिपुर के लोग बेहाल हैं. उनके घर बर्बाद हो गए हैं. उन्हें खाने-पीने की चीजों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. लोगों का व्यवसाय ठप्प पड़े हैं. लोग दहशत में जी रहे हैं. इसलिए विपक्ष का मानना है कि प्रधानमंत्री को तुरंत मणिपुर जाना चाहिए और लोगों की मदद करनी चाहिए.
पिछले महीने मणिपुर में फिर से हिंसा भड़क उठी थी. मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमले हुए थे. दरअसल, हिंसा की फिर से शुरुआत जिरिबाम के बराक नदी में तीन महिलाओं और तीन बच्चों के शव मिलने के बाद हुई. यह घटना बेहद दुखद है और इससे राज्य में तनाव और बढ़ गया है.
विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री का दौरा लोगों को भरोसा दिला सकता है. उन्हें सुरक्षा का एहसास दिलाना चाहिए. इससे शांति बहाली की कोशिशों को बल मिलेगा.
मणिपुर हिंसा को लेकर मोदी सरकार पर क्यों उठते हैं सवाल?
मणिपुर में पिछले साल से जारी हिंसा का दौर थम नहीं रहा है. कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए कई जिलों में कर्फ़्यू जारी है और इंटरनेट भी बंद है.
मणिपुर में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच हिंसा पिछले 20 महीने से जारी है. इस हिंसा में अभी तक कम से कम 250 लोगों की मौत हुई है और 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार होने के बाद भी हिंसा पर अब तक क्यों नहीं काबू किया जा सका? केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की बीरेन सिंह की सरकार इस हिंसा से क्यों नहीं निपट पा रही है?
विपक्ष बार-बार पीएम मोदी पर मणिपुर हिंसा से निपटने को लेकर सवाल उठाता रहा है. विपक्ष का मानना है कि पीएम को एक बार मणिपुर का दौरा कर वहां की जनता को संबोधित करना चाहिए. इससे वहां के लोगों में विश्वास जगेगा.
पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी ने 20 जुलाई को संसद के बाहर मणिपुर मामले पर टिप्पणी की थी. उस दौरान मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया था.
पीएम ने अपने बयान में कहा था, “मणिपुर की घटना से मेरा हृदय पीड़ा से भरा है. यह किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली घटना है. मैं मुख्यमंत्रियों से अपील करता हूं कि वो अपने-अपने राज्यों में क़ानून व्यवस्था मज़बूत करें.”
बाद में पीएम मोदी ने संसद में भी बयान दिया था और कहा था कि मणिपुर में स्थिति सामान्य करने के लिए सभी को राजनीति से ऊपर उठना चाहिए.
विपक्ष का आरोप है कि इन सबके बावजूद ऐसा हुआ नहीं और हिंसा के बावजूद सीएम बीरेन सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.