HomeAdivasi Dailyओडिशा में सरकार के दावों के उल्ट आदिवासी ज़मीन घट रही है

ओडिशा में सरकार के दावों के उल्ट आदिवासी ज़मीन घट रही है

CAG ने पाया कि ओडिशा में अनुसूचित जाति और अन्य लोगों के भूमि स्वामित्व क्षेत्र में 2005-06 की तुलना में 2015-16 में वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन आदिवासियों के मामले में कमी दर्ज की गई है.

ओडिशा में कोई भी आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण नहीं कर सकता. अगर कोई आदिवासी भूमि खरीदता है तो उसे अवैध घोषित कर दिया जाएगा और संबंधित व्यक्ति को भूमि से बेदखल कर दिया जाएगा. साथ ही भूमि मूल आदिवासी स्वामी को वापस कर दी जाएगी.

यह सभी जानकारी राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री सुरेश पुजारी ने दी.

ओडिशा विधानसभा में विधायक भास्कर मधेई के प्रश्न के उत्तर में पुजारी ने कहा कि भूमि सुधार अधिनियम 1960 के मुताबिक, अगर कोई आदिवासी भूमि खरीदता है तो उसे अवैध घोषित कर दिया जाता है और भूमि बेदखली प्रक्रिया के माध्यम से सही आदिवासी स्वामियों को वापस कर दी जाती है. वर्तमान में ऐसे 654 मामले विचाराधीन हैं.

इसी तरह कोई आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण करता पाया जाता है तो उसे भी अवैध घोषित कर दिया जाएगा. मंत्री ने कहा कि ऐसे 881 मामले विचाराधीन हैं.

इसी तरह कुछ लोगों ने आदिवासी भूमि खरीदी है. इसे अवैध घोषित कर दिया जाएगा और भूमि मूल आदिवासी स्वामियों को वापस कर दी जाएगी. इस संबंध में 19,690 मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं.

पुजारी ने कहा, “1960 के अधिनियम की धारा 30 (ए) के मुताबिक, अगर किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने आदिवासियों की किसी भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण किया है तो राजस्व विभाग के अधिकारी उसके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करेंगे और भूमि मूल स्वामी को वापस कर दी जाएगी.”

उन्होंने कहा, “उप कलेक्टरों को साल 2000 तक गैर-आदिवासी लोगों द्वारा अतिक्रमण की गई आदिवासियों की भूमि के बारे में निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है. अगर भूमि सौंपने में कोई कानूनी अड़चन है तो उप कलेक्टर इसे अवैध घोषित कर सकते हैं और भूमि को मूल आदिवासी स्वामी को वापस कर सकते हैं.”

आदिवासियों की जमीन घट रही

भले ही राजनीतिक दल आदिवासी हित और विकास के दावे करते हो लेकिन सच यह है कि ओडिशा में आदिवासियों की जमीन लगातार घट रही है. आदिवासियों के अस्तित्व के लिए जमीन एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में माना जाता है बावजूद इसके उनकी जमीन घट रही है.

पिछले साल की भारत के CAG (Comptroller and auditor general of India) की एक मसौदा रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक में आदिवासियों की जमीन में 12 फीसदी की कमी देखने को मिली है.

सीएजी ने ओडिशा में भूमि स्वामित्व पैटर्न का अध्ययन करने के लिए 2005-06 से 2015-16 तक 10 साल की अवधि ली है. जहां तक कृषि का सवाल है, राज्य का कुल परिचालन भूमि क्षेत्र 2005-06 में 50.19 लाख हेक्टेयर से घटकर 46.19 लाख हेक्टेयर हो गया है.

ऑडिट एजेंसी ने पाया इसी अवधि के दौरान अनुसूचित जाति और अन्य लोगों के भूमि स्वामित्व क्षेत्र में 2005-06 की तुलना में 2015-16 में वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन आदिवासियों के मामले में कमी दर्ज की गई है.

2005-06 में कुल परिचालन भूमि का 17.48 लाख हेक्टेयर आदिवासियों के पास था, जो 2015-16 में घटकर 15.38 लाख हेक्टेयर हो गया, जिसमें 2.10 लाख हेक्टेयर (12 फीसद) की कमी दर्ज की गई.

पिछले साल तत्काल ओडिशा सरकार ने आदिवासियों की जमीन खरीदने का रास्ता पूरी तरह खोल दिया था.

14 नवंबर 2023 को ओडिशा सरकार ने अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) विनियमन [Odisha Scheduled Areas Transfer of Immovable Property (By Scheduled Tribes) Regulation] में संशोधन किया था.

तत्काल नवीन पटनायक की सरकार द्वारा किए गए इस संशोधन के बाद अनुसूचित क्षेत्रों में रह रहे अनुसूचित जनजाति के लोग राज्य सरकार की अनुमति से गैर-आदिवासियों को अपनी जमीन बेच सकते थे. लेकिन बाद में सरकार ने इस संशोधन को वापस ले लिया था.

आदिवासी और उनकी भूमि

2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की जनजातीय जनसंख्या 95.91 लाख है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 22.85 फीसद और भारत की जनजातीय जनसंख्या का 9.2 फीसद है.

राज्य में 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों सहित 62 जनजातीय समुदाय हैं. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद ओडिशा में आदिवासी आबादी का तीसरा सबसे बड़ा केंद्र है.

ओडिशा की आदिवासी आबादी सामाजिक रूप से कमजोर समूहों में से एक है, जिन्हें अपने विकास के लिए राज्य के सामाजिक-आर्थिक समर्थन की आवश्यकता है. राज्य और केंद्र दोनों ने उनकी सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं.

लेकिन उनकी आजीविका मूलतः वन उपज और खेती पर निर्भर है. इसलिए उनकी अपनी भूमि के साथ उनके इलाकों की सार्वजनिक भूमि ही उनके भरण-पोषण का मुख्य स्रोत है.

इसलिए आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा बेहद जरूरी है. अगर राज्य की वर्तमान सरकार आदिवासी भूमि पर अतिक्रमण को रोकने में कामयाब रहती है तो यह एक अच्छी पहल है.

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