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मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेसवे के लिए ज़मीन देने पर आदिवासी किसानों को नहीं मिला मुआवज़ा!

करोड़ो की विकास योजना के लिए आदिवासियों से छीनी जा रही है ज़मीन! आदिवासियों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाओं भी उपलब्ध नहीं.

पालघर ज़िले की तलासरी तालुका के आदिवासी किसानों ने सोमवार यानि 2 दिसंबर को मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेसवे के लिए उनसे भूमि हड़पने का आरोप लगाया और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन पर ज़बरदस्ती ज़मीन छीनने और पुलिस पर अभद्रता का आरोप लगाया.

प्रदर्शन रोकने के लिए प्रशासन की कोशिश

विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए प्रशासन ने कोल्हे और तलासरी गांवों में धारा 144 लागू कर दी.

प्रदर्शनकारियों ने बताया कि इसके अलावा प्रशासन की तरफ़ से एक आदेश भी पारित किया गया है, जिसमें प्रदर्शनकारियों को जमीन अधिग्रहण और निर्माण कार्य में बाधा डालने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है.

प्रदर्शनकारियों ने दावा किया है कि इस आदेश पर दहानू डिविज़न के सहायक कलेक्टर सत्यम गांधी के हस्ताक्षर भी हैं.

प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिए गए किसान

इस विरोध प्रदर्शन के बारे में बात करते हुए ज़मीन अधिकार कार्यकर्ता शशि सोनावने ने बताया कि विरोध के दौरान तीन किसानों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था और उन्हें करीब छह घंटे बाद छोड़ा गया था.

इन तीन किसानों के नाम रूपजी केश्या कोल्हा, सुनील दिवाल रेडिया और शवान रावजी कोल्हा बताए गए हैं.

आदिवासियों के आरोप

कार्यकर्ता शशि सोनावने ने प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा, “यह सिर्फ जमीन का मुद्दा नहीं है, बल्कि आदिवासी समुदाय की पहचान और आजीविका का सवाल है. पीढ़ियों से खेती कर रहे किसानों को बेदखल किया जा रहा है. कभी आदिवासी की ज़मीनों को गैर-आदिवासी हड़प लेते हैं तो कभी सरकार की विकास योजनाओं के कारण अपने पूर्वजों की भूमि छोड़नी पड़ती है. इसलिए सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए.”

सोनावने ने यह भी कहा कि आदिवासी बहुल ज़िले पालघर में अस्पताल और सिंचाई के लिए पानी और कई अन्य संसाधन नहीं हैं जिस पर सरकार ध्यान नहीं देती है.

यहां मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के विपरीत सरकार बुलेट ट्रेन, वधावन पोर्ट और मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेसवे जैसे प्रोजेक्ट्स आदिवासियों पर थोपे जा रही है.

प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे रूपजी कोल्हा ने आरोप लगाया है कि सरकार उन्हें मुआवज़ा दिए बिना उनकी ज़मीन लेना चाहती है.

रूपजी कोल्हा ने बताया कि जब वे धरना प्रदर्शन करने लगे तो पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और उनके साथ मारपीट भी की गई.

उन्होंने बताया कि पुलिस ने विरोध प्रदर्शन को रिकॉर्ड करने वालों के मोबाइल फोन छीनकर तोड़ दिए.

न्याय की मांग

कार्यकर्ता शशि सोनावने ने बताया कि इस मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य को शिकायती पत्र भेजा गया है और आदिवासी किसानों को उनकी ज़मीन, जल और जंगल के अधिकारों दिलवाकर न्याय देने की बात कही गई है.

प्रशासन और विधायक का पक्ष

पालघर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने मारपीट और अभद्रता के आरोपों को खारिज कर दिया है.

इस मामले पर बात करते हुए सहायक कलेक्टर सत्यम गांधी ने कहा है कि मामुली विरोध हुआ था जो अब सुलझ गया है. उन्होंने कहा कि दस्तावेजों की जांच के बाद वे आदिवासी किसानों को उचित मुआवज़ा दे रहे हैं.

दहानू के विधायक विनोद निकोले ने इसे दशकों पुराना मुद्दा बताया और प्रदर्शनकारियों से मिलने और राजस्व अधिकारियों से बातचीत करके समाधान निकालने का आश्वासन भी दिया है.

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