HomeAdivasi Dailyझारखंड: 45 आदिवासी परिवारों को 14 माह से नहीं मिला राशन, अब...

झारखंड: 45 आदिवासी परिवारों को 14 माह से नहीं मिला राशन, अब CM हेमंत सोरेन ने कार्रवाई के दिए निर्देश

आदिवासी परिवारों ने आरोप लगाया है कि राशन डीलर उनसे 5 किलो के बजाय 3 किलो अनाज लेकर अंगूठे का निशान लगाने के लिए दबाव बनाया था. जब उन्होंने इसका विरोध किया तो डीलर ने आदिवासियों के साथ दुर्व्यवहार किया.

झारखंड के गढ़वा जिले के एक गांव के 45 आदिवासी परिवारों को पिछले 14 महीनों से राशन नहीं मिला है. इस मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बुधवार को गढ़वा जिला प्रशासन को आदिवासी परिवारों को राशन आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.

साथ ही मुख्यमंत्री ने गढ़वा के डिप्टी कमिश्नर शेखर जमुआर को 45 आदिवासी परिवारों को उनके राशन आपूर्ति से वंचित करने के लिए जिम्मेदार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वायरल वीडियो को शेयर करते हुए गढ़वा डीसी को टैग किया और लिखा, ‘गढ़वा उपायुक्त यह स्थिति बिल्कुल बर्दाश्त के काबिल नहीं है. तत्काल मामले का संज्ञान लें और सभी परिवारों को उनका हक दिलाएं. साथ ही इस स्थिति के लिए दोषी सभी व्यक्तियों पर न्यायोचित कार्रवाई कर सूचना दें.’

मुख्यमंत्री का यह निर्देश तब आया जब मानवाधिकार संगठन झारखंड जनाधिकार महासभा ने रांची से लगभग 238 किलोमीटर दूर गढ़वा जिले के भंडरिया ब्लॉक के बिजका गांव में 45 आदिवासी परिवारों की दुर्दशा को उठाया और मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री को अपने एक्स हैंडल पर टैग किया.

राशन आपूर्ति के लाभार्थियों ने एक वीडियो में आरोप लगाया है कि उन्हें प्राथमिकता वाले घरेलू (PH) राशन कार्ड होने और हर महीने सब्सिडी वाले मूल्य पर 5 किलोग्राम खाद्यान्न पाने के हकदार होने के बावजूद राशन की आपूर्ति नहीं मिल रही है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि राशन डीलर उनसे 5 किलो के बजाय 3 किलो अनाज लेकर अंगूठे का निशान लगाने के लिए दबाव बनाया था. जब उन्होंने इसका विरोध किया तो डीलर ने आदिवासियों के साथ दुर्व्यवहार किया.

आदिवासी परिवारों ने यह भी आरोप लगाया है कि पिछले 14 महीनों में उन्होंने ब्लॉक, जिला स्तर और राज्य खाद्य आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई है लेकिन उनकी समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ है.

वहीं राज्य खाद्य आयोग की सदस्य शबनम परवीन ने ग्रामीणों से शिकायतें मिलने की बात स्वीकार की.

उन्होंने कहा, “आयोग का कोई अध्यक्ष नहीं होने के कारण हम कोई निर्णय नहीं ले सकते. इसके बावजूद मैं इस साल जनवरी में खुद गांव गई और उनकी शिकायतें सुनीं. मैंने डिप्टी कमिश्नर से ग्रामीणों को बुलाकर उनकी समस्या का समाधान करने और उन्हें बकाया राशन और मुआवजा दिलाने की व्यवस्था करने का अनुरोध किया था. मैंने डिप्टी कमिश्नर से ग्रामीणों को उनके नजदीकी किसी अन्य राशन डीलर से जोड़ने का भी अनुरोध किया है.”

खाद्य आयोग की सदस्य ने यह भी दावा किया कि प्रशासन के अधिकारियों ने ग्रामीणों पर बायोमेट्रिक सिस्टम में अंगूठा न लगाने का आरोप लगाया, जो राशन लेने के लिए जरूरी है.

गढ़वा के डिप्टी कमिश्नर शेखर जमुआर ने इस मामले पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है.

लेकिन गढ़वा के जिला आपूर्ति अधिकारी राम गोपाल पांडे ने कहा कि वे समस्या को सुलझाने के लिए फिर से गांव का दौरा करेंगे.

हालांकि, उन्होंने दावा किया कि ग्रामीण अपना अंगूठा लगाने के खिलाफ अड़े हुए हैं, जिससे राशन की आपूर्ति में बाधा आ रही है.

इधर इस घटना ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस मुद्दे पर हेमंत सरकार पर निशाना साधा है.

उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘गढ़वा के बिजका गांव के 45 आदिवासी परिवार पिछले 14 महीनों से भुखमरी के कगार पर हैं. इन्हें हक का अनाज कटौती कर दिया जाता था लेकिन जब उन्होंने विरोध किया तो पूरा राशन ही बंद कर दिया गया. शिकायतें प्रखंड, जिला, और राज्य स्तर तक पहुंचीं, लेकिन सरकार इतनी बहरी निकली कि उनकी पुकार बस फाइलों में गुम होकर रह गई.’

उन्होंने आगे लिखा, ’14 महीने के बाद चिर निद्रा से उठे मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश देकर अपने जिम्मेदारी से छुटकारा पा लिया है. लेकिन राशन वितरण में लापरवाही का न तो यह पहला मामला है, न आखिरी. पूरे प्रदेश में ऐसे लाखों गरीब आदिवासी परिवार हैं जिनके हक का राशन अफसर और सत्ताधारी दल के नेता खा ले रहे हैं.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments