HomeAdivasi Dailyकुदरत के पुजारी आदिवासी पर ही सबसे अधिक बिजली भी गिरती है

कुदरत के पुजारी आदिवासी पर ही सबसे अधिक बिजली भी गिरती है

2021-22 में बिजली गिरने के 4 लाख 40 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए गए और झारखंड में 2020-21 में 322 मौतें दर्ज की गईं. सीआरओपीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन मौतों में से 96 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हुई और 77 फीसदी पीड़ित किसान थे.

आसमानी बिजली का कहर झारखंड (Jharkhand) के लिए एक बड़ी आपदा है. राज्य में आसमानी बिजली गिरने की घटनाएं आम हैं. भारतीय मौसम विभाग (Indian Meteorological Department) ने थंडरिंग (Thundering) और लाइटनिंग (Lightning) के ख़तरों को लेकर देश के जिन 6 राज्यों को सबसे संवेदनशील के तौर पर चिन्हित किया है, झारखंड भी उनमें से एक राज्य है.

जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों के एक बड़े हिस्से वाले राज्य में मौसम की स्थिति में अचानक बदलाव आम है. लेकिन झारखंड के गांवों के लिए यह बिजली एक बड़े ख़तरे के रूप में उभरी है. क्योंकि इन गाँवों में थंडरिंग और लाइटनिंग से बचाने के लिए कोई संसाधन या बुनियादी सुविधाएं नहीं है.

ये आपदा और भी बड़ी हो जाती है आदिवासी किसानों के लिए जो पहाड़ी क्षेत्रों में ऊंचे पेड़ों से घिरे खुले खेतों में काम करते हैं. गैर-लाभकारी क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (CROPC) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, देश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली कुल मौतों का 33 फीसदी बिजली गिरने से होती है.

2021-22 में बिजली गिरने के 4 लाख 40 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए गए और झारखंड में 2020-21 में 322 मौतें दर्ज की गईं. सीआरओपीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन मौतों में से 96 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हुई और 77 फीसदी पीड़ित किसान थे.

राज्य में 2021 तक पिछले नौ साल में बिजली गिरने से 568 लोगों की मौत हो चुकी है. राज्य सरकार थंडर और बिजली गिरने से मौत पर चार लाख रुपये मुआवजा देती है.

वहीं बिजली गिरने से घायल हुए लोगों को राज्य सरकार की ओर से 2 लाख रुपये तक की राशि दी जाती है. जबकि क्षतिग्रस्त हुए प्रत्येक घर का मुआवजा 2,100 रुपये से 95,100 रुपये के बीच है. जानवरों की मृत्यु पर पशुपालकों को 3 हज़ार से 30 हज़ार रुपये मिल सकते हैं.

झारखंड में आदिवासी समुदाय खेती-किसानी पर निर्भर हैं. किसान अच्छी तरह से जानते हैं कि बारिश के दौरान खेत में काम करना ख़तरनाक है लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है.

जिला प्रशासन बिजली से सुरक्षित रहने के लिए जागरूकता पोस्टर लगाता था, लेकिन यह ग्रामीणों को बचाने के लिए कोई निवारक उपाय नहीं है. स्थानीय स्कूलों में भी बिजली का कोई कंडक्टर काम नहीं कर रहे हैं.

इस मामले में कई बार यह माँग होती रहती है कि सरकार को सभी गांवों में संवेदनशील सार्वजनिक स्थानों पर बिजली के कंडक्टर लगाने के लिए धन उपलब्ध कराना चाहिए.

बिजली गिरने से गाँवों में अधिक मौतें होती हैं. क्योंकि बिजली बड़े और खुले क्षेत्रों को प्रभावित करती है. आदिवासी समुदाय ऊंचे पेड़ों वाले पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, जिससे वे और अधिक असुरक्षित हो जाते हैं.

वे इस मौसम में काम करने से नहीं बच सकते क्योंकि वे फसल की पैदावार प्रभावित होने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. बोकारो जिले के एक स्कूल में 23 जुलाई, 2022 को आकाशीय बिजली गिरने से छह छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे. दरअसल बिजली गिरने के बाद राजकीयकृत मध्य विद्यालय के लगभग 50 छात्रों ने स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं की शिकायत की थी.

वहीं दो छात्रों को बोकारो जनरल हॉस्पिटल में रेफर करना पड़ा था क्योंकि वे बेहोश हो गए थे. इस घटना के दौरान झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने स्कूल का दौरा किया था और विभाग को स्कूलों में बिजली के कंडक्टर लगाने के निर्देश दिए थे.

सूत्रों के मुताबिक आदिवासी इलाकों के करीब 5 हज़ार निजी स्कूलों में बिजली के कंडक्टर हैं. हालांकि, इनमें से ज्यादातर कंडक्टर या तो काम नहीं करते हैं या फिर चोरी हो जाते हैं.

झारखंड में करीब 45 हज़ार सरकारी स्कूल हैं. बंधडीह के अपग्रेडेड मिडिल स्कूल के एक अध्यापक का कहना था कि मेरे स्कूल में बिजली का कंडक्टर लगा था लेकिन मेरे कार्यभार संभालने से पहले ही वह चोरी हो गया था.

प्रशासन का कहना है कि 2018 में पूर्वी सिंहभूम के सभी स्कूलों में कंडक्टर लगाए गए थे. कुमार ने कहा कि हालांकि, अब स्कूल कहते हैं कि वे बेकार हैं या चोरी हो गए हैं.

वहीं झारखंड का मौसम विभाग गरज और बिजली गिरने के लिए एसएमएस अलर्ट सिस्टम भी चलाता है. विभाग अपने मौसम केंद्र, रांची के माध्यम से मौसम संबंधी जानकारी भी ट्वीट करता है.

मौसम संबंधी विशिष्ट पूर्वानुमानों और चेतावनियों के लिए मौसम नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन भी लॉन्च किया गया है. एग्रो मेट एडवाइजरी के लिए मेघदूत नाम का एक अन्य ऐप, गरज और बिजली गिरने की चेतावनी के लिए दामिनी ऐप भी मौसम विभाग द्वारा चलाई जाती है. ये ऐप उपयोगकर्ताओं को यह भी बताते हैं कि प्राकृतिक घटना का सामना करने पर उन्हें क्या करना चाहिए.

लेकिन असल सवाल ये है कि सरकार की इन कोशिशों के बावजूद थंडर और लाइटनिंग की घटनाओं से इतनी मौतें कैसे हो रही हैं? भले ही मौसम विभाग एसएमएस अलर्ट और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के लिए कई ऐप लॉन्च किए हैं लेकिन इन सुविधाओं की पहुंच किन लोगों तक है ये भी निश्चित करना होगा.

जैसा की आंकड़े बता रहे हैं कि बिजली गिरने से 96 फीसदी मौतें ग्रामीण इलाकों में हुई है और इनमें भी 77 फीसदी किसान है… तो क्या ग्रामीणों और किसानों तक मौसम विभाग का एसएमएस और ऐप की नोटिफिकेशन पहुंच पा रही हैं?

ऐसे रह सकते हैं सुरक्षित

– बारिश के समय घर से बाहर निकलने से बचें.

– लाइटनिंग के दौरान पेड़ों के नीचे शरण लेना सबसे ख़तरनाक है, ऐसा कभी ना करें.

– आसमान में बिजली कड़क रही हो और सुरक्षित स्थान पर नहीं जा पा रहे हैं, तो पैरों के नीचे सूखी चीजें जैसे लकड़ी, प्लास्टिक और बोरा में से कोई एक अपने पैरों के नीचे रख लेना चाहिए.

– ऐसे समय दोनों पैरों को आपस में सटा लेना चाहिए, दोनों हाथों को घुटने पर रखकर अपने सिर को जमीन की ओर यथासंभव झुका लेना चाहिए.

– ध्यान रहे कि सिर को जमीन से ना छुआएं ना ही जमीन पर लेटें.

– पानी की मेटल पाइपलाइन से दूर रहें.

– घर के खिड़कियां, दरवाजे बंद रखें. दरवाजे और मेटल की चीजों के पास खड़े ना हों.

– पानी से दूर रहें.

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