HomeAdivasi Dailyझारखंड: पुलिस और CRPF पर आदिवासी युवक को अवैध रूप से हिरासत...

झारखंड: पुलिस और CRPF पर आदिवासी युवक को अवैध रूप से हिरासत में रखने का आरोप

पश्चिमी सिंहभूम जिले में इस साल कई आईईडी विस्फोट हुए हैं, जिसमें सात से अधिक नागरिकों की मौत हुई है और एक दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.

झारखंड (Jharkhand) के माओवाद प्रभावित (Rebel-hit) पश्चिमी सिंहभूम (West Singhbhum) जिले के दो आदिवासी युवकों ने राज्य के पुलिस महानिदेशक, गृह सचिव, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और जिला उपायुक्त को सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस पर अवैध रूप से हिरासत में रखने, हमला और यातना करने का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की है.

टोंटो थाना क्षेत्र के पटाटोरोब गांव के तुरम बहांडा और विजय बाहंडा ने सीआरपीएफ पर बिना किसी मुकदमे के 12 दिनों तक अवैध रूप से उन्हें उठाकर थाने में रखने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि उन पर माओवादियों के लिए आईईडी (improvised explosive devices) लगाने का झूठा आरोप लगाया गया.

साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और अदालत में पेश नहीं किया गया.

पश्चिमी सिंहभूम जिले में इस साल कई आईईडी विस्फोट हुए हैं, जिसमें सात से अधिक नागरिकों की मौत हुई है और एक दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.

अब दो आदिवासी युवकों की दुर्दशा झारखंड जनाधिकार महासभा (Jharkhand Janadhikar Mahasabha) द्वारा सामने लाई गई, जिसने शुक्रवार को 25 अप्रैल के उनके पत्र को ट्वीट किया है.

महासभा झारखंड में लोगों के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए गठित संगठनों का एक गठबंधन है.

तुरम बहांडा द्वारा लिखे गए पत्र में बताया गया है कि दोनों युवकों को 6 फरवरी को शाम 7 बजे के करीब सीआरपीएफ के जवानों ने उनके घरों से उठा लिया और पास के सीआरपीएफ कैंप में ले गए. जवानों ने उन पर माओवादी समर्थक होने और बम लगाने का आरोप लगाया.

पत्र में बताया गया है, “जब मैंने माओवादी गतिविधियों और बम प्लांट करने में किसी भी तरह की संलिप्तता के बारे में अनभिज्ञता व्यक्त की तो उन्होंने मुझे मारने और मुझ पर पेट्रोल डालने की धमकी दी.”

पत्र में लिखा गया है, “जब ग्रामीण अगले दिन कैंप पहुंचे और हमें हिरासत में लिए जाने के बारे में जानकारी मांगी तो सीआरपीएफ ने रात में पूछताछ के बाद हमें रिहा करने का आश्वासन दिया. लेकिन हमें रिहा नहीं किया गया. मुझ पर बम लगाने का आरोप लगाते हुए वे हमें रात 9 बजे मुफस्सिल थाने और पश्चिमी सिंहभूम के पुलिस अधीक्षक (एसपी) कार्यालय ले गए.”

तुरम के पत्र में आगे कहा गया है, “जब मैंने कहा कि मुझे बम के बारे में कुछ नहीं पता है तो उन्होंने मेरे दाहिने हाथ और बाएं घुटने पर (एसपी कार्यालय में) लाठियों से पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने मुझे हथकड़ी लगाई और फिर से मुझे चाईबासा मुफस्सिल थाने ले गए. मुझे एक बार सुबह और एक बार रात को भोजन दिया गया और 12 दिनों तक वहीं रखा गया. उन्होंने मुझे 18 फरवरी को लगभग 3 बजे एक आवेदन पर हस्ताक्षर करने के बाद रिहा कर दिया.”

पत्र में अधिकारियों से अवैध हिरासत, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के लिए दोषी सीआरपीएफ और पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है और उचित मुआवजे की मांग की गई है.

इस तरह के मामलों में अगर दोषी पुलिस अफ़सरों की जवाबदेही तय नहीं की जाती है तो स्थानीय प्रशासन और आदिवासियों के बीच भरोसा टूटता है.

जब आदिवासी का सरकार या सुरक्षाबलों से भरोसा उठता है तो इसका फ़ायदा माओवादी संगठन उठा सकते हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments