त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल टिपरा मोथा बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहा है. रविवार 14 मई को टिपरा मोथा के चेयरमैन प्रद्योत किशोर माणिक्य ने एक ऑडियो मैसेज में अपनी पार्टी के महिला, छात्र और युवा विंग से एक अपील जारी की है.
इस अपील में टिपरा मोथा के मुखिया ने कहा है कि त्रिपुरा सरकार ने केंद्र सरकार को कोकबोरोक की लिपि के संदर्भ में एक सिफारिश भेजी है. इस सिफ़ारिश में केंद्र से कहा गया है कि सीबीएसई के परीक्षा के लिए कोकबोरोक की स्क्रिप्ट बांगला ही रखी जानी चाहिए.
प्रद्योत किशोर माणिक्य ने अपने संगठनों से अपील करते हुए कहा है कि उन्हें राज्य सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ़ सड़कों पर उतरने की तैयारी करनी होगी. अपनी पार्टी के अलग अलग जनसंगठनों के नेताओं से उन्होंने जल्दी ही एक रणनीति तैयार करने को कहा है.
प्रद्योत किशोर माणिक्य ने अपने कार्यकर्ताओं के नाम जारी इस अपील में कहा है कि सरकार (बीजेपी) पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा है कि त्रिपुरा सरकार को सिर्फ आंदोलन की ही भाषा समझ में आती है.
टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य की आज की अपील में एक तल्खी नज़र आती है. वे ज़ोर देकर कहते हैं कि इन पर (केंद्र और राज्य सरकार) पर अब भरोसा नहीं किया जा सकता है.
तल्ख़ी का कारण क्या है
त्रिपुरा में फ़रवरी महीने में हुए विधान सभा चुनाव में टिपरा मोथा 13 सीट जीत कर मुख्य विपक्षी दल बन गया है. फिलहाल टिपरा मोथा के नेता अनिमेष देबबर्मा सदन में नेता विपक्ष हैं. लेकिन पार्टी के भीतर के बड़ा तबका है जो यह मानता है कि टिपरा मोथा को सरकार में शामिल होना चाहिए.
इस तबके का मानना है कि अगर केंद्र और राज्य सरकार के साथ सहयोग नहीं किया जाएगा तो त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों का विकास संभव नहीं है. क्योंकि त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों के विकास के लिए बनी स्वायत्त परिषद के लिए फंड राज्य सरकार की मंजूरी से ही आता है.
लेकिन टिपरा मोथा की समस्या ये है कि उसने एक अलग टिपरालैंड राज्य के नाम पर चुनाव लड़ा था. इसलिए पार्टी के लिए इस मुद्दे को छोड़ना आसान नहीं है.
टिपार मोथा की राह आसान बनाने के लिए गृहमंत्री अमित शाह और टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य के बीच यह सहमति बनी थी कि केंद्र उनकी मांग पर विचार करने के लिए एक मध्यस्थ कि नियुक्ति करेगा.
पिछले हफ़्ते उत्तर पूर्व राज्यों पर भारत सरकार के सलाहकार अक्षय कुमार मिश्रा का त्रिपुरा दौरा तय भी हो गया था. लेकिन अंतिम समय पर यह दौरा केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया. इस दौरे को रद्द करने के पीछे मणिपुर के हालातों को ज़िम्मेदार बताया गया.
इस मामले में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा पहले ही टिपरालैंड की मांग को पूरी तरह से खारिज कर चुके हैं.
संवेदनशील विषय है
यह बात सही है कि बीजेपी चुनाव से पहले ही टिपरालैंड की मांग को खारिज कर चुकी थी. लेकिन चुनाव के बाद गृहमंत्री अमित शाह और टिपरा मोथा के नेता प्रद्योक किशोर माणिक्य के बीच हुई बैठक ने जनजातीय समुदाय में इस विषय पर एक भरोसा पैदा किया था.
इस बैठक के बाद टिपरा मोथा के नेताओं ने यह दावा किया था कि उनकी मांग के सवैंधानिक हल के लिए केंद्र सरकार विचार करने को तैयार हो गई है.
त्रिपुरा एक सीमावर्ती राज्य है और एक अलग जनजातीय राज्य की मांग पर विचार करना एक पेचीदा मामला है. लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकार को यह भी समझना होगा कि त्रिपुरा पहले भी अलगाववादी राजनीति और हिंसा का शिकार हो चुका है.
इसलिए जनजातीय संगठनों से बातचीत करना और उनका भरोसा जीतना बेहद ज़रूरी है. अगर जनजातीय जनसंख्या में यह मैसेज जाता है कि राज्य और केंद्र सरकार बांग्ला भाषी लोगों की बात को ही तवज्जो देती है, तो यह ख़तरनाक हो सकता है.