HomeAdivasi Dailyकेरल: बीफ़ का सेवन करने पर 24 आदिवासियों का सामाजिक बहिष्कार

केरल: बीफ़ का सेवन करने पर 24 आदिवासियों का सामाजिक बहिष्कार

पुलिस ने कहा कि मामले के बारे में पता चलने पर आदिवासी परिषद ने प्रमुख के नेतृत्व में सभा की समुदाय की दशकों पुरानी परंपरा और रीति-रिवाज का उल्लंघन करने के आरोप में उन पुरुषों का सामाजिक बहिष्कार करने का आदेश दिया.

केरल के इडुक्की जिले में ”ऊरुकुट्टम” (आदिवासियों की परिषद) ने कथित रूप से गोमांस के सेवन के लिए 24 आदिवासी पुरुषों का सामाजिक बहिष्कार किया है. पुलिस ने कहा कि पहाड़ी जिले इडुक्की के मरयूर वन क्षेत्रों से इन घटनाओं की सूचना मिली है और स्थानीय स्वशासन और आदिवासी विभाग के अधिकारी आदिवासी समुदायों के प्रमुखों से बात करके इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है क्योंकि इस मामले में पुलिस में औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई आगे नहीं आया. पुलिस ने कहा कि उन्होंने आदिवासी पुरुषों के सामाजिक बहिष्कार के मुद्दे पर विभिन्न वर्गों से मिली जानकारी के आधार पर जांच शुरू की गई है.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि 24 लोगों ने कथित तौर पर वन क्षेत्रों में अपनी बस्तियों से बाहर आने के बाद गोमांस का सेवन किया. ऊरुकुट्टम को जब इसके बारे में जानकारी हुई थी उसके प्रमुखों की बैठक में इन सभी का सामाजिक बहिष्कार करने का निर्णय किया गया. इन सभी को समुदाय की सदियों पुरानी परंपरा और रिवाज का उल्लंघन करने दोषी ठहराया गया है.

पुलिस ने कहा कि मामले के बारे में पता चलने पर आदिवासी परिषद ने प्रमुख के नेतृत्व में सभा की समुदाय की दशकों पुरानी परंपरा और रीति-रिवाज का उल्लंघन करने के आरोप में उन पुरुषों का सामाजिक बहिष्कार करने का आदेश दिया.

पुलिस ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे लोगों से संपर्क नहीं किया जा सका क्योंकि वे परिषद के फैसले के बाद कथित तौर पर जंगलों के अंदर चले गए हैं. पुलिस ने कहा कि उनके माता-पिता, भाई-बहन, पत्नियों और बच्चों सहित परिवार के सदस्यों को कथित तौर पर उनसे मिलने से रोका गया है.

पुलिस ने कहा, “अगर परिवार के सदस्य बहिष्कृत लोगों से मिलते हैं तो उन्हें भी इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.”

केरल के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री के. राधाकृष्णन ने पीटीआई को बताया कि इस मुद्दे को सुलझाने के प्रयास जारी हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह के रीति-रिवाज अभी भी राज्य में आदिवासी समुदायों में प्रचलित हैं और उन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयास जारी हैं.

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