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केरल: बच्चों को कोविड से बचाने के लिए ख़ास इंतज़ाम, आदिवासी समुदायों पर है विशेष ध्यान

हाल के दिनों में पिछले महीनों की तुलना में कोविड-119 के मामले बच्चों में ज़्यादा देखे गए हैं. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स से चर्चा के बाद कोल्लम के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों को अतिरिक्त बेड जोड़ने का निर्देश दिया गया है.

बच्चों में कोविड-19 के मामलों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए, केरल के कोल्लम ज़िले के स्वास्थ्य विभाग किसी भी स्थिति से निपटने के लिए व्यापक व्यवस्था कर रहा है. इसमें भी आदिवासी इलाक़ों में सुविधाएं बेहतर करने पर ज़्यादा ज़ोर है.

विभाग बाल चिकित्सा आईसीयू (Paediatric ICU), बेड और वेंटिलेटर उपलब्ध करा रहा है. इसके अलावा सर्जन और स्टाफ़ नर्सों को वेंटिलेटर और आईसीयू प्रबंधन का प्रशिक्षण दिए जाने का प्लान है.

हाल के दिनों में पिछले महीनों की तुलना में कोविड-119 के मामले बच्चों में ज़्यादा देखे गए हैं. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स से चर्चा के बाद कोल्लम के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों को अतिरिक्त बेड जोड़ने का निर्देश दिया गया है.

बच्चों में केस और बढ़ने की आशंका के चलते नवजात आईसीयू, आईसीयू बेड और स्टेप-डाउन आईसीयू उपलब्ध कराए जाएंगे, और इनमें ज़रूरत के हिसाब से वृद्धि की जाएगी.

सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल, ज़िला अस्पताल और तालुक अस्पतालों में भी अतिरिक्त सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है.

स्वास्थ्य विभाग उन माता-पिता का भी ज़्यादा से ज़्यादा वेक्सिनेशन करने की योजना बना रहा है जिनके बच्चे 12 साल से कम उम्र के हैं. सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों यानि पीएचसी को बच्चों की उम्र के आधार पर चार श्रेणियों में माता-पिता का डेटा एकत्र करने का निर्देश दिया गया है. यह श्रेणी शून्य से एक, एक से पांच, छह से 12 और 13 से 18 साल के बच्चों की है.

इसके अलावा ज़िले के सभी अनाथालयों और शेल्टर होम्स को एक विशेष प्रोटोकॉल दिया जाएगा और हर ऐसे इंस्टीट्यूशन को एक पीडियाट्रिशियन से जोड़ा जाएगा. बच्चों के लिए विशेष COVID First Line Treatment Centres (FLTCs) और Second Line Treatment Centres (SLTCs) खोले जाएंगे.

इसमें भी आदिवासी समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. जिन बच्चों के माता-पिता पॉज़िटिव पाए गए हैं, उन्हें शिफ्ट करने के लिए स्वास्थ्य विभाग चार जगहों पर रिवर्स क्वारंटाइन सेंटर खोलेगा.

कोविड की तीसरी लहर का बच्चों पर बुरा असर पड़ने का डर है. सिर्फ़ बच्चों को ही वैक्सीन नहीं लगाया जा रहा है, ऐसे में उन्हें ज़्यादा ख़तरा होगा.

(इस आर्टिकल में इस्तेमाल की गई फ़ोटो प्रतीकात्मक है)

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