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नदी के पार, घने जंगलों के बीच अट्टपाड़ी के आदिवासी बच्चों तक पहुंचे उनके शिक्षक

इन आदिवासी बस्तियों के बच्चे पिछले साल से स्कूल नहीं गए हैं. उन तक टेलीफ़ोन के ज़रिए पहुंचना भी मुश्किल था क्योंकि उनके गांव जंगलों के अंदर थे. इन हलात में इन शिक्षकों को और कोई विकल्प नहीं सूझा, और उन्होंने अट्टपाड़ी की पहाड़ियों में ट्रेकिंग करने का फ़ैसला किया.

केरल के पालक्काड ज़िले के अट्टपाड़ी इलाक़े के दूरदराज़ की आदिवासी बस्तियों के बच्चे एक लिहाज़ से काफ़ी लकी हैं. मार्च 2020 से अपने घरों में रहने को मजबूर इन बच्चों के शिक्षक किताबों और मिठाइयों के साथ पिछले हफ़्ते उनके घर पहुंचे.

अगली के सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल के शिक्षक अट्टपाड़ी के जंगलों में रहने वाले अपने छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तकें और नोटबुक के साथ उनके गांव पहुंचे. आदिवासी बस्तियों में उन्होंने चार दिन बिताए.

छात्र पुलिस कैडेट (एसपीसी) सामुदायिक पुलिस अधिकारी जोसफ़ एंटनी के नेतृत्व में इन शिक्षकों के लिए अट्टपाड़ी की सुदूर पहाड़ियों में थुडुक्की, गलसी, तडिक्कुंडु, किनाट्टुकरा, मुरुगला, कुरुक्कतिक्कल्लू, पालूर, गोट्टियारकांडी, मेले भुदयार और पझायुर में आदिम कुरुम्बा बस्तियों तक पहुंचना आसान नहीं था.

अगली से आनवई तक की 25 किलोमीटर की दूरी गाड़ी से तय करने के बाद, इन शिक्षकों को अपने सिर और कंधों पर किताबों और स्टेशनरी के बंडलों को रखकर लगभग 10 किमी पहाड़ी जंगलों में ट्रेकिंग करनी पड़ी. उन्होंने बारिश के मौसम में भवानी नदी को पार किया, जो आसान नहीं है.

दरअसल, इन आदिवासी बस्तियों के बच्चे पिछले साल से स्कूल नहीं गए हैं. उन तक टेलीफ़ोन के ज़रिए पहुंचना भी मुश्किल था क्योंकि उनके गांव जंगलों के अंदर थे. इन हलात में इन शिक्षकों को और कोई विकल्प नहीं सूझा, और उन्होंने अट्टपाड़ी की पहाड़ियों में ट्रेकिंग करने का फ़ैसला किया.

पक्की सड़कों, बिजली और मोबाइल कनेक्टिविटी के बिना वाली इन बस्तियों में शिक्षकों को अपने छात्रों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अनुभव भी हुआ.

यहां के कई बच्चे टीवी चलाने के लिए और ऑनलाइन पढ़ाई के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भर हैं. लेकिन मॉनसून में सौर उपकरण नहीं चल पाते. इन इलाक़ों में मोबाइल टावरों की कमी की वजह से उन्हें फ़ोन में सिग्नल मिलने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.

कोविड लॉकडाउन की वजह से कई आदिवासी बच्चों के माता-पिता बिना काम के थे, और घर पर ही रहे. बस्तियों के जंगलों के बीच होने से अक्सर छात्र आदिवासी हॉस्टलों में ही रहते हैं. अपने परिवार से दूर रहना इनमें कई तरह के मानसिक तनाव पैदा करता है. COVID-19 के मद्देनज़र हॉस्टल बंद होने के बाद बच्चे अपने घरों को लौट आए थे.

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