केरल के वायनाड (Wayanad) ज़िले में कुपोषण (Malnutrition) के अधिकांश मामले यहां के आदिवासी समुदायों से सामने आए हैं. अगस्त के आंकड़ों के मुताबिक, कम से कम 60 बच्चे गंभीर पोषण की कमी से पीड़ित थे, जिनमें से 47 बच्चे आदिवासी समुदायों के हैं.
गंभीर कुपोषण का पता चलने के बाद भी एनआरसी में अधिकारी आदिवासी बच्चों को भर्ती करने को तैयार नहीं हैं. पोषण पुनर्वास केंद्र (Nutrition Rehabilitation Centre) में इलाज कराने आए लोगों का आरोप है कि अगर भर्ती किया जाता है तो कई मामलों में मरीजों को कोई जरूरी इलाज या जागरूकता नहीं दी जा रही है.
वहीं सुल्तान बत्तेरी में एनआरसी में इलाज कराने वाले अधिकांश बच्चे आदिवासी हैं बावजूद इसके उनके स्वास्थ्य की स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार दर्ज नहीं किया गया है.
संतुलित आहार की कमी ने वायनाड में आदिवासियों के बीच मौजूदा स्थिति पैदा कर दी है. कई आदिवासी बस्तियां अपने पारंपरिक आहार से पीछे छूट गए हैं. लेकिन वे अभी तक संतुलित आहार की आदत हासिल नहीं कर सके हैं.
आदिवासी आबादी के लिए वन संसाधन और मांस उपलब्ध नहीं होने पर एनीमिया और कुपोषण के मामले बढ़ गए हैं. पोषण की कमी से बच्चे और गर्भवती महिलाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं. इसके साथ ही गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शराब के सेवन से जन्म के समय शिशुओं का वजन कम होता है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आदिवासियों के पारंपरिक आहार को शामिल करके उनका विश्वास हासिल करने के बाद इस क्षेत्र में हस्तक्षेप की सिफारिश की. अनुसूचित जनजाति विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग, एकीकृत बाल विकास योजना सहित कई विभागों के एकीकृत प्रयास की आवश्यकता है. अगर जरूरत हो तो आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया जा सकता है.
ज्यादातर मामलों में, बच्चे आंगनबाड़ियों के माध्यम से वितरित किए गए पौष्टिक भोजन और अनाज का सेवन करने से इनकार करते हैं और बड़ों के आहार का पालन करने का विकल्प चुनते हैं.
(प्रतिकात्मक तस्वीर)