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तेलंगाना: वायरल बुखार से आदिवासी कल्याण कॉलेज में एक और छात्र की मौत

छात्रा के माता-पिता ने आरोप लगाया कि कॉलेज के अधिकारियों ने उसे बुखार से पीड़ित होने पर अस्पताल में भर्ती करने में देरी की और इस लापरवाही के चलते उसकी मृत्यु हो गई. उन्होंने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.

तेलंगाना के आसिफाबाद ज़िला (Asifabad district) केंद्र के ट्राइबल वेलफेयर डिग्री कॉलेज (Tribal Welfare Degree College)  में बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा लगूद्या संगीता (Lagudya Sangeetha) की बुधवार को करीमनगर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई. इस हफ्ते ज़िले में यह तीसरी मौत है.

संगीता के परिवार के सदस्यों ने इलाज में लापरवाही दिखाने के लिए कॉलेज के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर धरना दिया.

संगीता को कुछ दिन पहले बुखार से पीड़ित होने का पता चला था और उसे करीमनगर के एक अस्पताल में ले जाया गया था. इलाज के दौरान उसने अंतिम सांस ली. उसके माता-पिता ने आरोप लगाया कि कॉलेज के अधिकारियों ने उसे बुखार से पीड़ित होने पर अस्पताल में भर्ती करने में देरी की और इस लापरवाही के चलते उसकी मृत्यु हो गई. उन्होंने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.

इस बीच बहुजन समाज पार्टी के सदस्यों ने आसिफाबाद में पुलिस अधीक्षक के. सुरेश कुमार के पास शिकायत दर्ज कर संस्था के प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने खेद व्यक्त किया कि आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावासों और शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों को खराब सुविधाओं के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. वे छात्र के परिजनों को 50 लाख रुपये का मुआवजा चाहते थे.

इससे पहले 24 अगस्त को पंछीकालपेट मंडल के इल्लूरू गांव में आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावास के छात्र अल्लम राजेश (15) की कागजनगर में इलाज के दौरान मौत हो गई था.

जब अल्लम की हालत बहुत ख़राब हो गई तो उसे आदिलाबाद के राजीव गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ले जाया गया था. लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी और उसे बचाया नहीं जा सका.

वहीं 28 अगस्त को करीमनगर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान सिरपुर (टी) मंडल केंद्र के एक सामाजिक कल्याण आवासीय विद्यालय के ग्रेड पांच की छात्रा गोमासा अश्विनी (10) की मौत हो गई थी.

आश्रम स्कूलों की ज़रूरत और योगदान

आदिवासी मामलों पर निगरानी और सुझावों के लिए बनी समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने 2014 में आश्रम स्कूलों की ज़रूरत और योगदान पर एक रिपोर्ट संसद को दी थी.

इस रिपोर्ट में कमेटी ने यह माना था कि आश्रम स्कूलों का आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा की स्थिति को सुधारने में अहम योगदान है. इसके साथ ही कमेटी ने यह भी कहा था कि इन स्कूलों का योगदान और भी अधिक हो सकता है बशर्ते इनकी हालत बेहतर की जाए.

अलग अलग राज्य में आदिवासी छात्रों के लिए ये स्कूल राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं. लेकिन कमेटी ने इस बात को अफ़सोस के साथ नोट किया था कि इन स्कूलों की संख्या के बारे में केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय या जनजाति कार्य मंत्रालय को कोई अंदाज़ा तक नहीं है.

कमेटी ने यह जोर दे कर यह सुझाव दिया था कि राज्य और केन्द्र सरकारें मिल कर देश में चल रहे आश्रम स्कूलों के बारे में आँकड़े जमा करे. इसके साथ ही इन स्कूलों को स्थापित मानदंडों पर चलाया जाना चाहिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है.

लेकिन अफ़सोस कि संसद की स्थाई समिति की इस मामले में 8 साल पहले आई रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को किसी मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया.

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