मणिपुर के संवेदनशील जिले चुराचांदपुर में केंद्र सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला. इसके पीछे की वजह केंद्र सरकार द्वारा जिले में 9वीं असम राइफल्स बटालियन की जगह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) को तैनात करना है.
केंद्र के इस फैसले की कई समूहों ने आलोचना की है. वहीं कुछ कुकी-जो महिला संगठनों ने सरकार से हिंसा प्रभावित जिले में शांति और स्थिरता के हित में इस कदम पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि इस फैसले ने असम राइफल्स द्वारा एक तटस्थ बल के रूप में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका की अनदेखी की है, जो मैतेई और कुकी-ज़ो आदिवासियों के बीच शांति बनाए रखने के लिए अथक प्रयास कर रही है.
बयान में कहा गया है, “असम राइफल्स का संघर्ष क्षेत्रों में शांति और तटस्थता बनाए रखने का एक लंबा और विशेष इतिहास रहा है. 9वीं असम राइफल्स बटालियन दोनों समुदायों के बीच स्थिरता और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए बेहद प्रयास कर रही है. स्थानीय गतिशीलता, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और क्षेत्र के जटिल सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने की उनकी गहरी समझ हिंसा को और बढ़ने से रोकने और शांति के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने में सहायक रही है.”
इसके अलावा उन्होंने कहा कि असम राइफल्स बटालियन की जगह सीआरपीएफ को लाना न सिर्फ एक रणनीतिक चूक होगी बल्कि चुराचांदपुर के लोगों के साथ घोर अन्याय भी होगा.
संगठनों ने कहा कि देश भर में अपनी बेहतरीन सेवा के बावजूद सीआरपीएफ के पास मणिपुर में नाजुक स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए जरूरी अनुभव और सूक्ष्म समझ का अभाव है.
बयान में कहा गया है कि यह कदम विशेष रूप से अपने कथित भयावह इरादे के कारण चिंताजनक है. सीआरपीएफ के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (संचालन) प्रेमजीत हुइड्रोम की नियुक्ति, जो मैतेई हैं, चुराचंदपुर समुदायों के बीच गंभीर चिंता पैदा करती है.
जिले की जनता सही ढंग से सवाल उठाती है कि क्या उनके नेतृत्व में सीआरपीएफ सभी समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष और भरोसेमंद हो सकती है.
संगठनों ने चेतावनी दी कि असम राइफल्स बटालियन को हटाने से क्षेत्र में नाजुक शांति समीकरण अस्थिर हो जाएगा और इसके निवासियों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी.
उन्होंने कहा कि अगर सरकार “बिना सोचे-समझे” निर्णय पर आगे बढ़ती है तो चुराचंदपुर के नागरिक समाज संगठन मूकदर्शक नहीं बने रहेंगे.
बयान में आगे कहा गया है, “हम सरकार से चुराचंदपुर में शांति और स्थिरता के हित में इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आह्वान करते हैं.”
इस बीच कुकी छात्र संगठन (Kuki Students’ Organisation) ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र में “कुछ असम राइफल यूनिट” को सीआरपीएफ के साथ बदलने का फैसला “असामयिक” है और कहा कि यह महंगा साबित हो सकता है.
केएसओ ने एक बयान में कहा, “असम राइफल्स ने वर्षों की कोशिश और समर्पण के बाद पहाड़ी लोगों के दिल और दिमाग को जीत लिया, जिसके परिणामस्वरूप आपसी सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हुआ. COCOMI (मणिपुर अखंडता पर मेइतेई समूह समन्वय समिति) और उसके साथी इस आपसी समझ को बर्दाश्त नहीं कर सके और असम राइफल्स के खिलाफ सभी संभावित आरोप लगाते रहे. यह दुखद है कि संबंधित एजेंसियां अपनी मर्जी और इच्छाओं के अनुसार काम करती हैं.”
स्थानीय खबरों के मुताबिक, कुकी-ज़ो समुदाय के लोग 31 जुलाई की देर रात जिले के गोथोल, खौसाबुंग और कांगवई इलाकों में बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए और असम राइफल्स को हटाने के कदम के विरोध में मोमबत्ती जलाकर विरोध जताया.
एक स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, ‘प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के दौरान ‘एआर हमारी जान बचाओ और रक्षा करो’, ‘एआर वापस मत जाओ’, ‘मैतेई उग्रवादी समस्या हैं, एआर नहीं’ आदि लिखे हुए तख्तियां पकड़े हुए थे.’
असम राइफल्स और कुकी-ज़ो
असम राइफल्स पर कुकी समुदाय, जिनमें से अधिकांश चूराचांदपुर जिले में रहते हैं. उसके प्रति पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया गया है. ऐसा कहा जाता है क्योंकि असम राइफल्स, जो परंपरागत रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात है, वहां के निवासियों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती है.
खुद राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह उन कई बीजेपी नेताओं में शामिल हैं, जो मैतेई समुदाय से आते हैं और जिन्होंने असम राइफल्स पर कुकी समुदाय के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.
पिछले साल अगस्त में उनकी मांग पर ध्यान देते हुए राज्य सरकार ने कुकी बहुल चूराचांदपुर जिले के कई चेक-पोस्टों, जहां जिले की सीमा मैतेई बहुल बिष्णुपुर जिले से मिलती है. इस इलाके से जातीय हिंसा के कई मामले सामने आए थे.
बीते 30 जुलाई को जातीय संघर्ष में सबसे आगे रहने वाले मैतेई महिलाओं के समूह, मीरा पाइबीज़ ने इंफाल में एक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें राज्य के सुरक्षा बलों से असम राइफल्स को हटाने की मांग की गई और सेना इकाई पर राज्य में संघर्ष को लंबा खींचने का आरोप लगाया.
असम राइफल्स भारतीय सेना का एक हिस्सा है, जिसने मैतेई समुदाय के इस आरोप का कई बार खंडन किया है.
पिछले साल अगस्त में असम राइफल्स ने मणिपुर हिंसा के दौरान बल के खिलाफ ‘अपमानजनक आरोप’ लगाने और उसे राज्य से हटाने की मांग करने के लिए रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के नेता महेश्वर थौनाओजम को कानूनी नोटिस जारी किया था.
दूसरी ओर कुकी समुदाय ने मेईतेई मुख्यमंत्री सिंह के नियंत्रण में राज्य पुलिस पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने और राज्य की राजधानी इंफाल सहित घाटी के इलाकों में कुकी समुदाय पर हमले के दौरान दूसरे पक्ष का साथ देने आरोप लगाया है.
इसमें दो कुकी महिलाओं की गवाही भी शामिल है कि संघर्ष के दौरान राज्य पुलिस के जवान उन्हें तब तक बचाने के लिए नहीं आए, जब तक कि उन्हें मैतेई भीड़ ने घेर नहीं लिया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया नहीं गया.
आरोप है कि 3 मई, 2023 को जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से मैतेई भीड़ द्वारा कथित तौर पर घाटी के जिलों में विभिन्न राज्य पुलिस स्टेशनों से सैकड़ों हथियार और गोला-बारूद लूटे गए ताकि कुकी लोगों पर हमला किया जा सके.
राज्य के सीमांत क्षेत्रों, जिसमें चूड़ाचांदपुर जिला भी शामिल है, में सीआरपीएफ को लाने के केंद्र सरकार के ताजा निर्णय को कुकी-जो समुदाय द्वारा गहरी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, क्योंकि असम राइफल्स के विपरीत, जो भारत के पूर्वोत्तर की सुरक्षा में विशेषज्ञता रखती है, सीआरपीएफ एक अर्धसैनिक इकाई है, जिसकी ऐसी कोई विशेषज्ञता नहीं है और इसलिए, जातीय दृष्टि से संवेदनशील राज्य के सुरक्षा मुद्दों को संभालने के लिए वह मुख्यमंत्री की कमान के तहत राज्य बल पर निर्भर होगी.