कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में आदिवासी भारत पीछे छूट रहा है.
45 वर्ष से ज़्यादा उम्र और दूसरी बीमारियों (Co-Morbidities) वाले लोग जो दूरदराज़ के इलाक़ों में रहते हैं, या आदिवासी समुदायों से आते हैं, उनके बीच कोविड टीकाकरण (VACCINATION) की दर बेहद कम है.
इसकी बड़ी वजह जागरुकता और इन क्षेत्रों में टीकाकरण केंद्रों की कमी है. इसी से पार पाने के लिए महाराष्ट्र में आज (सोमवार) से टीकाकरण कवरेज बढ़ाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) का इस्तेमाल किया जाएगा. महाराष्ट्र में कुल 1,800 पीएचसी हैं.
लेकिन इसमें भी एक पेंच है. सिर्फ़ उन केंद्रों पर टीके लग पाएंगे, जहां अच्छी इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध हों, ताकि पंजीकरण के लिए CoWIN सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा सके.
शनिवार को महाराष्ट्र में कुल 1.13 लाख लोगों को कोविड वैक्सीन लगाया गया था. लेकिन इनमें भी ज़्यादातर शहरी केंद्रों में लगे हैं. आदिवासी क्षेत्रों में ज़्यादातर वक़्त टीकाकरण बूथ खाली ही पाए गए.
राज्य के अमरावती ज़िले के आदिवासी इलाक़े मेलघाट में अमरावती और अचलपुर शहर की तुलना में कम टीकाकरण हुआ है. इससे उबरने के लिए मेलघाट में टीकाकरण के लिए एक विशेष शिविर लगाया गया है.
गढ़चिरौली में आदिवासी और दूरदराज़ के इलाक़ों में टीकाकरण केंद्रों की कमी है. और जहां हैं भी, वहां आदिवासी नहीं पहुंच रहे हैं. महाराष्ट्र के इस आदिवासी-बहुल ज़िले में 14 टीकाकरण केंद्रों में से पांच में शुक्रवार को एक भी टीका नहीं लगाया गया.
दरअसल, देशभर में शहरी आबादी को कोविड वैक्सीन के बारे में समझ भी है, और वो यह भी जानते हैं कि इस वैक्सीन लगवाने के लिए उन्हें क्या करना होगा. लेकिन आदिवासी इलाक़ों में जागरुकता की कमी है, और ज्यादातर लोग इस बीमारी और इसके इलाज के बारे में नहीं जानते हैं.
नंदुरबार ज़िले के टलोडा शहर में जहां पिछले गुरुवार को 122 लोगों का टीकाकरण हुआ, वहीं इसी ज़िले के आदिवासी इलाक़े धडगांव में सिर्फ़ दो लोग वैक्सीन लगवाने पहुंचे. अक्कलकुआं, जो एक आदिवासी-बहुल तालुक है, में 31 वरिष्ठ नागरिकों ने टीका लगवाया.
आदिवासी समाज में अभी भी आधुनिक दवाओं को संदेहास्पद नज़र से देखा जाता है. इससे पार पाने के लिए अब महाराष्ट्र स्वास्थ विभाग का जागरुकता बढ़ाने पर ज़ोर है.
अस्पतालों में पोस्टर लगाए जा रहे हैं, और डॉक्टरों से लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है.