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जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का डॉक्यूमेंटेशन जरूरी

अन्विता अब्बी ने कहा कि जैसा कि डॉक्यूमेंटेशन सभी लुप्तप्राय, कम ज्ञात भाषाओं को दोबारा जीवित करने में मदद करता है. जिसमें संख्यात्मक रूप से छोटे समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ शामिल हैं, ऐसे डॉक्यूमेंटेशन की तत्काल आवश्यकता है.

भाषाविद् अन्विता अब्बी (Anvita Abbi) ने बुधवार को अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं के डॉक्यूमेंटेशन की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन भाषाओं को संरक्षित किया जा सके.

अन्विता केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages) द्वारा अपने परिसर में विलुप्त हो रही भाषाओं के डॉक्यूमेंटेशन पर आयोजित ट्रेनिंग वर्कशॉप के उद्घाटन के अवसर पर बोल रही थीं.

उन्होंने कहा, “खतरे का सामना कर रही भाषाओं के संरक्षण के लिए उचित शोध, सर्वेक्षण, डेटा संग्रह, फील्ड वर्क, विश्लेषण, आर्काइविंग और डॉक्यूमेंटेशन जैसे प्रयास जरूरी हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि भारत अपनी भाषाई विविधता के लिए जाना जाता है. लेकिन उनमें से कुछ को खतरे का सामना करना पड़ रहा है. कुछ केवल घर पर बोली जाती हैं, जबकि कुछ भाषाएं उचित दस्तावेज के बिना निष्क्रिय हो गई हैं.”

अन्विता ने कहा, “ग्रेट अंडमान के ओंगे, जारवा जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली सभी लुप्तप्राय भाषाओं के दस्तावेज़ीकरण की तत्काल आवश्यकता है, जो दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है.”

उन्होंने कहा कि भाषा एक प्रभावी संचार है. ऐसे हजारों जनजातियों के उदाहरण हैं जिन्होंने कुछ साल पहले अंडमान निकोबार द्वीप समूह के समुद्र तटों पर सुनामी आने पर मछली पकड़ने वालों की जान बचाई थी. इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हल्बी जैसी कई लुप्तप्राय भाषाएं, सदरी झारखंड, उत्तर-पूर्वी राज्यों की भाषाएं जैसे छोकरी, खेजा, संगतन और टेनियाडा हैं.

अब्बी ने कहा, “जैसा कि डॉक्यूमेंटेशन सभी लुप्तप्राय, कम ज्ञात भाषाओं को दोबारा जीवित करने में मदद करता है. जिसमें संख्यात्मक रूप से छोटे समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ शामिल हैं, ऐसे डॉक्यूमेंटेशन की तत्काल आवश्यकता है जो उनके देश में मौजूद अतीत के इतिहास, गौरव और जीवंत संस्कृति के बारे में भी प्रकाश डालते हैं.”

उन्होंने कहा कि कई स्वदेशी भाषाएं उचित डॉक्यूमेंटेशन के बिना दुनिया भर में विलुप्त हो गई हैं, ऐसी भाषाओं को दोबारा जीवित करने के लिए एक उचित योजना और समाधान की आवश्यकता है.

CIIL द्वारा किए गए इस तरह के डॉक्यूमेंटेशन में शामिल शोधकर्ताओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “अल्पसंख्यक भाषाओं का डॉक्यूमेंटेशन हमेशा जीवंत संस्कृति के संरक्षण के लिए शोधकर्ताओं को संतुष्टि देता है. इसके अलावा ऐसे समुदायों के व्यक्तिगत भाषण की सुरक्षा के साथ-साथ देश के इतिहास पर बहुत प्रकाश डालता है.”

सीआईआईएल के निदेशक शैलेंद्र मोहन ने कहा कि देश 22 अनुसूचित और 100 गैर-अनुसूचित भाषाओं और 270 मातृभाषाओं के साथ एक बहुभाषी देश है. अभी भी कई ऐसी भाषाएं हैं जिन्हें 10 हजार से भी कम लोग बोलते हैं. उन्होंने कहा कि इन भाषाओं के विकास के लिए दस्तावेज, वर्णन, शब्दकोष, व्याकरण और अन्य शिक्षण और सीखने के संसाधनों को तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है.

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