मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर (Chhatarpur) जिले में आदिवासियों पर पुलिस की बेरहमी का मामला सामने आया है. एमपी पुलिस (MP Police) पर जिले में शांति पूर्वक तरीके से धरने पर बैठे आदिवासियों पर आधी रात को लाठी चार्ज करने का आरोप है.
पुलिस पर आरोप है कि उन्होंने धरने पर बैठे आदिवासियों को लाठी चार्ज कर खदेड़ दिया जिससे धरने पर बैठी कई महिलाएं और बुजुर्ग घायल हो गए हैं.
क्यों विरोध कर रहे थे आदिवासी?
पिछले सात दिनों से केन बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa link project) के अंतर्गत विस्थापित होने वाले पलकौहा, ढोढन, खरयानी, राईपुरा, नरहौली जैसे लगभग 10 गांवों के ग्रामीण विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे.
धरने में ज्यादातर आदिवासी शामिल हैं क्योंकि यह सभी आदिवासी बाहुल्य गांव हैं. ग्रामीणों का आरोप है की गांव में घर मकान खेत-खलिहान आदि का अधिग्रहण करने को लेकर किसी भी तरह की पारदर्शिता नहीं रखी गई है.
ग्रामीण जिला प्रशासन से इस बात की मांग कर रहे हैं कि ग्रामसभा के माध्यम से अधिग्रहण नीति के तहत अब तक क्या कार्यवाही की गई है, वह उन्हें दिखाई जाए. उनका आरोप है कि जिला प्रशासन उनकी यह मांग नहीं मान रहा है.
इसी क्रम में यह तमाम ग्रामीण छतरपुर जिला कलेक्टर के सामने धरने पर बैठे थे. साथ ही ग्रामीण बार-बार जिला प्रशासन के बारे में यह कह रहे थे कि जिला प्रशासन ने हम सभी को मरा हुआ मान लिया है. इसलिए हमें कोई भी बात नहीं बताई जा रही है.
ग्रामीणों ने धरना स्थल पर चिताएं तैयार की थीं, जिन पर वे लेट कर प्रदर्शन करने वाले थे. लेकिन बीती रात एक बजे भारी पुलिस बल के साथ जिला प्रशासन धरने पर बैठे आदिवासियों पर लाठी चार्ज कर दी.
छतरपुर कलेक्टर संदीप जे आर ने घटना के बाद कलेक्टर परिसर में धारा 144 लगा दी है. लेकिन प्रदर्शनकारियों के साथ धरना देने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अमित भटनागर का कहना है धरना अभी समाप्त नही हुआ है. हमारा आमरण अनशन जारी है.
वहीं घटना के बाद मामले में न तो जिला प्रशासन बोल रहा है न ही पुलिस प्रशासन.
क्या है मामला?
दरअसल, केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड में सूखे से निजात दिलाने के लिए केन बेतवा परियोजना लिंक की सौगात दी है. परियोजना के अंतर्गत मुख्य बांध का निर्माण बिजावर क्षेत्र के ढोड़न गांव के पास होना है. बांध निर्माण के कारण लगभग 15 गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि चुपचाप तरीके से सर्वे कर लिया गया और फर्जी तरीके से ग्राम सभाओं का आयोजन कर किसानों को गुमराह करते हुए धारा 11 के तहत कार्रवाई की गई.
आंदोलनकारी ग्रामीणों का कहना है कि कई साल बीत जाने के बाद भी उन्हें केन-बेतवा लिंक के लिए दी गई भूमि का मुआवजा नहीं मिला है और न ही अभी तक पुनर्वास के लिए कहीं जमीन दी गई है. सरकार ने मामले में पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है.
आंदोलन के अगुवा व स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अमित भठनागर और पूर्व जीडीसी मुन्नीलाल खैरवार ने बताया कि सरकार ने उनकी जमीन और घर तो ले लिया लेकिन अभी तक हम लोगों से बातचीत तक नहीं की है. उन्हें यह तक नहीं बताया जा रहा है कि कहां बसाया जाएगा.
ग्रामीणों की मांग है कि धारा 11 को निरस्त किया जाए. साथ ही उनके सामने दोबारा सर्वे किया जाए ताकि पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे. इन्हीं तमाम मांगों को लेकर ग्रामीण अमरण अनशन पर बैठे थे. लेकिन रात में पुलिसकर्मियों ने उनके टेंट उखाड़ दिए. आरोप है कि पुलिस ने आधी रात उन पर लाठी चार्ज किया और उनके मोबाइल लूट ले गए.
आदिवासी इलाक़ों में विकास परियोजनाओं के लिए लोगों का जबरन विस्थापन एक बड़ा मसला है. अफ़सोस की बात ये है कि विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास की क्या योजना है यह भी नहीं बताया जा रहा है.
भूमि अधिग्रहण से जुड़ा क़ानून, पेसा और वन अधिकार क़ानून की मौजूदगी में भी आदिवासियों का जबरन विस्थापन सोचने पर मजबूर तो करता ही है.