HomeAdivasi Dailyमध्य प्रदेश के सतना में आदिवासियों की जमीन लगातार घट रही

मध्य प्रदेश के सतना में आदिवासियों की जमीन लगातार घट रही

आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों को बेचने की अनुमति कलेक्टर देते हैं. अनुमति देने के पहले कलेक्टर इसका पर्याप्त आंकलन करते हैं कि क्या वास्तव में जमीन बेचना आदिवासी के लिए जरूरी है.

मध्य प्रदेश के सतना जिले में आदिवासियों की जमीनें लगातार घटती जा रही हैं. पिछले 20 साल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की 414 हैक्टेयर से ज्यादा जमीने घट गई हैं और ये जमीनें गैर आदिवासियों को बेची गई हैं. इसके अलावा जिले में आदिवासियों की ज्यादातर जमीनों पर खदानों का काम किया जा रहा है या फिर इनका व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है.

वहीं शहरी क्षेत्र में जितनी भी जमीनें खरीदी गई हैं उन जमीनों का इस्तेमाल प्लाटिंग के लिए किया जा रहा है. कई मामले तो ऐसे भी आए हैं कि आदिवासियों के पास खुद की जमीन भी न के बराबर बची है और इनकी जमीनें खरीदने वाले करोड़पति बन गए.

सतना जिले की कृषि संगणना 2010 में आदिवासी किसानों के पास कुल 29 हज़ार 672 हैक्टेयर जमीन थी. लेकिन कृषि संगणना 2015 में यह जमीन घट कर 29 हज़ार 527 हो गई. मतलब 5 साल में 145 हैक्टेयर यानि 358 एकड़ से ज्यादा जमीन घट गई. यह आंकड़ा अगले 5 साल में और भी ज्यादा हो सकता है लेकिन 2020 आधार वर्ष की कृषि संगणना पूरी नहीं हो सकी है.

जिले में आदिवासियों ने 2004 से 2023 के बीच 414 हैक्टेयर यानि 1023 एकड़ से ज्यादा जमीनें खो दी. इन लोगों ने अपनी जरूरतों के लिए गैर-आदिवासियों को ये जमीनें बेच दीं. कलेक्टर कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासियों ने शादी के लिए, बच्चों की पढ़ाई के लिए, किसी कारोबार या अन्य जरूरतों के लिए अपनी जमीनें गैर-आदिवासियों को बेची है.

लेकिन जिन लोगों ने इन जमीनों को लिया है उन्होंने इससे करोड़ो कमाए हैं. जैसे कि मैहर बाईपास में एक विवाह घर से लगी आदिवासियों की जमीन को खरीद-बेचकर जमीन कारोबारियों ने करोड़ों रुपये की प्लाटिंग कर डाली. जबकि जिस आदिवासी परिवार से उन्होंने जमीन खरीदी बमुश्किल अपनी बाकी बची जमीन में किसी तरह गुजारा कर रहे हैं.

मैहर और मझगवां क्षेत्र में आदिवासियों की जमीनों पर बड़े पैमाने पर खदानों का संचालन किया जा रहा है.

आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों को बेचने की अनुमति कलेक्टर देते हैं. अनुमति देने के पहले कलेक्टर इसका पर्याप्त आंकलन करते हैं कि क्या वास्तव में जमीन बेचना आदिवासी के लिए जरूरी है.

आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज्यादा आदिवासियों की जमीन बेचने की अनुमति 2009-10 में 73.997 हैक्टेयर की दी गई. इसके बाद 2010-11 में 71.965 हैक्टेयर और 2022-23 में 31.742 हैक्टेयर जमीन बेचने की अनुमति तत्कालीन कलेक्टरों ने दी.

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