महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के नवनियुक्त उपाध्यक्ष धर्मपाल मेश्राम ने आदिवासी समुदायों के विकास के लिए आवंटित राज्य निधि के उपयोग पर संतोषजनक जवाब न देने के लिए अधिकारियों को आड़े हाथों लिया है.
पूर्व पार्षद मेश्राम ने मंगलवार को शहर के टॉप ब्यूरोक्रेट के साथ बैठक में कहा, “राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए विशेष रूप से आवंटित 80 करोड़ रुपये के फंड के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी सभी फैक्ट और आंकड़े सही ढंग से प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे. मेरा मानना है कि आवंटित फंड का 20 प्रतिशत भी खर्च नहीं किया गया.”
मेश्राम ने जोर देकर कहा कि आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं हैं. जैसे भूमि और रोजगार के अवसर प्रदान करना लेकिन ऐसा लगता है कि प्रशासन उन्हें ठीक से लागू करने में विफल रहा है.
उन्होंने कहा, “हम इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेंगे.”
एक उदाहरण देते हुए मेश्राम ने कहा, “राज्य द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के विकास कार्यों के लिए नांदेड़ नगर निकाय को 8 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बात का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है कि धन कहां खर्च किया गया या इस योजना से किसे लाभ हुआ.”
उपाध्यक्ष ने करीब 20 साल पुराने छात्रवृत्ति घोटाले पर भी रिपोर्ट मांगी. तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) ने पहले 2004 से 2008 तक एससी और एसटी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति से जुड़े 2,174 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच की थी.
उन्होंने कहा कि जवाबदेही और पारदर्शिता की गारंटी के लिए मामले को फिर से खोलने की योजना बनाई गई थी.
मेश्राम ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि गरीब दलित और आदिवासी छात्रों के लिए निर्धारित छात्रवृत्ति निधि का दुरुपयोग करने वालों को कड़ी सजा मिले. यह सबसे कमजोर लोगों के लिए न्याय का मामला है और हम इस मुद्दे को अनसुलझा नहीं रहने देंगे.”
यह पहली बार नहीं है पिछले साल यानि 2023 में भी अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आवंटित धनराशि का 50 प्रतिशत से भी कम खर्च किया गया था.
महाराष्ट्र के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के योजनाओं के लिए आवंटित धनराशि का 50 प्रतिशत से भी कम संबंधित विभागों द्वारा खर्च किया गया था.
आंकड़ों के मुताबिक, एससी घटक योजना के लिए 2022-23 के लिए प्रस्तावित 12,230 करोड़ रुपये में से 15 फरवरी तक केवल 4,581.01 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. वहीं जिला स्तरीय योजनाओं के लिए आवंटित 2,728.64 रुपये में से केवल 681.68 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि राज्य स्तरीय योजनाओं के लिए आवंटित 9,501.36 करोड़ रुपये में से केवल 3,899.33 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.