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आदिवासी छात्रावासों में एनीमिया से पीड़ित छात्रों की मदद के लिए महुआ लड्डू

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है. इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्‍लड सेल्‍स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्‍लॉकेज कर देती हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पोषण में सुधार के सरकारी प्रयासों के बावजूद तेलंगाना के आदिलाबाद जिले में सरकारी और आदिवासी कल्याण छात्रावासों में कई छात्र एनीमिया और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं.

2022 में किए गए मेडिकल परीक्षणों से पता चला है कि इन छात्रावासों में कई छात्रों में हीमोग्लोबिन (HB) का स्तर 4-6 ग्राम के बीच था, जो गंभीर एनीमिया का संकेत देता है.

छात्रों का खराब स्वास्थ्य विशेष रूप से आदिवासी कल्याण छात्रावासों में दिए जाने वाले भोजन की घटिया गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है, जिसमें आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है.

अपर्याप्त भोजन योजनाओं को कुपोषण और एनीमिया का एक कारक बताया गया है जो छात्रावास के छात्रों के एक बड़े प्रतिशत को प्रभावित करता है. जिसमें खराब पोषण के कारण लो इम्यूनिटी के कारण लड़कियां विशेष रूप से असुरक्षित हैं.

इन निष्कर्षों के जवाब में उटनूर में एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (ITDA) ने इस मुद्दे को हल करने के लिए फिर से प्रयास शुरू किए हैं.

आईटीडीए अब ‘गिरि पोषण मित्र’ योजना के तहत आदिवासी कल्याण छात्रावासों में छात्रों को स्थानीय रूप से उत्पादित पोषण पूरक महुआ लड्डू (Mahua Laddus) की आपूर्ति कर रहा है. स्थानीय स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा बनाए गए लड्डू छात्रों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करके उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए बनाए गए हैं.

महुआ लड्डू पहले एक पूर्व सरकारी योजना के तहत चुनिंदा आंगनवाड़ियों में कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को दिए जाते थे. अब युवाओं में एनीमिया की व्यापक समस्या से निपटने के लिए आदिलाबाद जिले के आदिवासी कल्याण छात्रावासों में छात्रों को दिए जा रहे हैं.

ग्रामीण विकास मंत्री सीताक्का ने इस पहल के लिए आईटीडीए परियोजना अधिकारी खुशबू गुप्ता की प्रशंसा की और कहा कि इससे छात्रों के स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

सीताक्का ने कहा, “यह फायदेमंद होगा अगर आदिलाबाद जिले के सभी आदिवासी कल्याण स्कूलों में महुआ लड्डू की आपूर्ति की जाए.”

साथ ही उन्होंने अधिकारियों से हर मंगलवार और शुक्रवार को नियमित चिकित्सा शिविर आयोजित करने और प्रत्येक छात्र के लिए मेडिकल रजिस्टर बनाए रखने का भी आग्रह किया.

सीताक्का ने आगे घोषणा की कि ‘गिरि पोषण मित्र’ योजना जल्द ही आईटीडीए, उटनूर के अंतर्गत सभी आदिवासी कल्याण छात्रावासों तक विस्तारित की जाएगी, जिसमें निर्मल, मंचेरियल और कोमाराम भीम आसिफाबाद सहित जिले शामिल होंगे.

खानापुर विधायक वेदमा बोज्जू ने राज्य भर के सभी आदिवासी कल्याण विद्यालयों में महुआ लड्डू की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अधिक धनराशि की मांग की है. उन्होंने एनीमिया से निपटने के लिए बेहतर पोषण की आवश्यकता पर बल दिया.

वहीं कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के आदिवासी नेता बुरसा पोचैया ने सरकारी छात्रावासों में कुपोषण और एनीमिया के उच्च स्तर पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि 50 प्रतिशत छात्र अभी भी इससे प्रभावित हैं.

उन्होंने कहा, “सरकार की विभिन्न योजनाओं के बावजूद छात्रों के स्वास्थ्य में बहुत कम सुधार हुआ है. उनके आहार को बढ़ाने और पोषक तत्वों की खुराक शामिल करने के लिए तत्काल कदम उठाने का समय आ गया है.”

एनीमिया और आदिवासी

सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) यानि एनीमिया आदिवासी इलाकों के लिए बड़ी चिंता बनता जा रहा है. अनुमानों के मुताबिक, भारत के दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी राज्यों में रहने वाली जनजातीय आबादी इसके लिए विशेष रूप से संवेदनशील है.

सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है. इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्‍लड सेल्‍स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्‍लॉकेज कर देती हैं.

सिकल सेल एनीमिया में रेड ब्‍लड सेल्‍स मर भी जाती हैं और शरीर में खून की कमी हो जाती है. जेनेटिक बीमारी होने के चलते शरीर में खून भी बनना बंद हो जाता है.

वहीं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण यह रोग कई जरूरी अंगों के डेमेज होने का भी कारण बनता है. इनमें किडनी, स्पिलीन और लिवर शामिल हैं.

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