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मणिपुर: आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग पर अड़े 10 विधायकों में से 5 बीजेपी विधायक

विधायकों ने अपने बयान में कहा है कि हमारे लोग मणिपुर में लंबे समय से मौजूद हैं. हमारे आदिवासी समुदाय के खिलाफ नफरत इतनी बढ़ गई है कि विधायकों, मंत्रियों, पादरियों, पुलिस और सिविल अधिकारियों, आम लोगों, महिलाओं और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा गया.

हाल के दिनों में मणिपुर में व्यापक जातीय हिंसा के बाद राज्य के भाजपा सहित विभिन्न दलों के 10 आदिवासी विधायकों ने आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग की है. भारतीय जनता पार्टी सहित सभी दलों के विधायकों ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर मांग का संवैधानिक समाधान निकालने की मांग की है.

विधायकों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार पर राज्य में हिंसा को “मौन समर्थन” देने का आरोप लगाया है.

विधायकों ने एक बयान में कहा, “मणिपुर में 3 मई, 2023 को चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ मणिपुर की मौजूदा सरकार द्वारा चुपचाप समर्थित बहुसंख्यक मैतेई द्वारा शुरू की गई बेरोकटोक हिंसा ने पहले ही राज्य का विभाजन कर दिया है और मणिपुर राज्य से अलगाव को प्रभावित किया है.”

विधायकों का कहना है कि आदिवासी अब मणिपुर में नहीं रह सकते हैं और “भारत के संविधान के तहत अलग प्रशासन” चाहते हैं.

विधायकों ने अपने बयान में कहा है कि हमारे लोग मणिपुर में लंबे समय से मौजूद हैं. हमारे आदिवासी समुदाय के खिलाफ नफरत इतनी बढ़ गई है कि विधायकों, मंत्रियों, पादरियों, पुलिस और सिविल अधिकारियों, आम लोगों, महिलाओं और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा गया. यहां तक कि वे पूजा स्थलों, घरों और संपत्तियों का भी नुकसान कर रहे हैं.

बयान में कहा गया है कि उन्होंने मणिपुर राज्य से अलग होने का फैसला किया है और कहा कि वे भविष्य में इस बात को सख्ति से उठाते रहेंगे. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि मणिपुर राज्य में उनकी रक्षा नहीं की जा रही है.

उन्होंने भारत के संविधान के तहत एक अलग प्रशासन और एक अलग राज्य के तौर पर मणिपुर राज्य के साथ पड़ोसियों के रूप में शांति से रहने की मांग की है. इनके बीच हमारा फिर से रहना हमारे लोगों के लिए मौत के समान है.

इसलिए लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में हम आज अपने लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और मणिपुर राज्य से अलग होने की उनकी राजनीतिक आकांक्षा का समर्थन करते हैं.

बयान में आगे कहा गया है, “हमने आगे की कार्रवाई के संबंध में जल्द से जल्द अपने लोगों के साथ एक राजनीतिक परामर्श आयोजित करने का फैसला किया है क्योंकि मणिपुर राज्य हमारी रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहा है. हम भारतीय संघ से संविधान के तहत एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं.”

बयान जारी करने वाले 10 विधायकों में हाओखोलेट किपजेन (आईएनडी), नगुरसांग्लुर सनाटे (जेडी-यू), किम्नेओ हाओकिप हंगशिंग (केपीए), लेटपाओ हाओकिप (बीजेपी), लल्लियन मांग खौटे (जेडीयू), लेटजमांग हाओकिप (बीजेपी), चिनलुनथांग (केपीए), पाओलीनलाल हाओकिप (बीजेपी), नेमचा किपजेन (बीजेपी), वंगजागिन वाल्टे (बीजेपी) शामिल हैं.

मणिपुर विधानसभा में 60 सीटें हैं. कुकी समुदाय के विधायक कुल संख्याबल का छठा हिस्सा है. राज्य का 90 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है और यहां विधानसभा की 20 सीटें हैं.

राज्य में जातीय हिंसा

हाल के दिनों में मणिपुर में राज्य के मैतेई और आदिवासी समुदायों के बीच व्यापक जातीय हिंसा देखी गई. दरअसल, 3 मई को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूचि में शामिल करने की मांग के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा बुलाए गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान और उसके बाद 10 से अधिक जिलों में हिंसक झड़पें, हमले, जवाबी हमले और घरों, वाहनों, सरकारी और निजी संपत्तियों में आगजनी देखी गई.

जिसके बाद राज्य भर में हजारों सैन्य और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया. राज्य के विभिन्न जिलों में बीते 3 मई से लगातार तीन दिन तक हुई इस व्यापक हिंसा में 60 से अधिक लोगों की जान गई और 20 हजार से भी ज़्यादा लोगों को अपना घर-बार छोड़कर शिविरों में रहने आना पड़ा.

दरअसल, मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय अपने लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहता है. लेकिन पहाड़ों पर बसी मान्यता प्राप्त कुकी, नगा जनजातियां इसके विरोध में है. हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद राज्य सरकार से इस पर विचार करने को कहा था.

इसका विरोध करते हुए ATSU ने चुराचांदपुर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ नाम से एक रैली निकाली और वहीं से हिंसा भड़क गई.

ऐसे में मणिपुर में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का राज्य में यह लगातार दूसरा कार्यकाल है, लेकिन प्रदेश में हुई इस व्यापक हिंसा ने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है. कई लोग उन पर ये सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने हिंसा को नियंत्रित करने में देर की.

बयान पर उठा विवाद

3 मई को भड़की हिंसा से एक दिन पहले मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का एक बयान काफी सुर्खियों में रहा था. मुख्यमंत्री ने 2 मई को कहा था कि मणिपुर म्यांमार से बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन के ख़तरे का सामना कर रहा है.

उन्होंने कहा कि अवैध आप्रवासियों की जांच के लिए गठित समिति ने दो हज़ार से अधिक म्यांमार के लोगों की पहचान की है, जो अपने देश में संघर्ष के कारण मणिपुर में आ गए हैं. उन्होंने बिना उचित दस्तावेज़ों के राज्य में रह रहे म्यांमार के 410 लोगों को हिरासत में लेने की बात भी कही थी.

ऐसा कहा जा रहा है कि पहाड़ी जिलों में खासकर संरक्षित वनांचल में सरकार के बेदखली अभियान और मुख्यमंत्री के इन बयानों को कुकी जनजाति ने खुद को सताए जाने के तौर पर देखा.

दरअसल पहाड़ियों में कई एकड़ भूमि का उपयोग अफ़ीम की खेती के लिए किया जा रहा है. लिहाजा सरकार वन क्षेत्रों पर अपनी कार्रवाई को ड्रग्स के ख़िलाफ़ एक बड़े युद्ध के हिस्से के रूप में देखती है. जबकि ‘ड्रग लॉर्ड्स’ जैसे व्यापक शब्द का उपयोग सभी कुकी लोगों के लिए करने से वे बेहद नाराज़ हैं.

(PTI/File photo)

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