प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को दो दिन के कुवैत दौरे पर रवाना हो गए हैं. वहीं कांग्रेस ने इस दौरे पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि मणिपुर के लोग इंतजार ही करते रह गए और पीएम मोदी कुवैत चले गए.
प्रधानमंत्री मोदी रक्षा और व्यापार सहित कई क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ावा देने के लिए आज कुवैत की दो दिवसीय यात्रा पर निकले.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मणिपुर के लोगों का इंतजारी जारी है, यही उनकी किस्मत है क्योंकि श्रीमान मोदी कोई तारीख तय करने से इनकार कर रहे हैं. बार-बार विदेश दौरे करने वाले प्रधानमंत्री मोदी कुवैत रवाना हो गए.”
कांग्रेस पीएम मोदी से कई बार मणिपुर का दौरा करने की बात कह चुकी है. पार्टी का कहना है कि इससे संघर्षग्रस्त राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिलेगी.
जब-जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर जाते हैं तो कांग्रेस मणिपुर का दौरा न करने के लिए सरकार और पीएम पर निशाना साधती है.
हाल ही में जब नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी तीन देशों ब्राजील, नाइजीरिया और गुयाना की यात्रा पर निकले, तो कांग्रेस ने इसे “समय-समय पर होने वाली विदेश यात्रा” कहा था.
मणिपुर में पिछले साल 3 मई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद हिंसा भड़क गई थी.
तब से जारी हिंसा में मैतेई और कुकी समुदाय के 220 से अधिक लोग और सुरक्षाकर्मियों की जान जा चुकी है. हजारों परिवारों को अपना घर-बार छोड़कर रिलीफ कैम्प में रहना पड़ रहा है. मगर मणिपुर शांत होने की बजाय भड़कता ही जा रहा है.
मणिपुर में जातीय संघर्ष की जड़
मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष की जड़ जनजाति के दर्जे को लेकर है. पिछले साल अप्रैल में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश देते हुए कहा था कि वो मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे.
इस पर कुकी समुदाय भड़क गए. जिसके बाद 3 मई को रैली निकाली गई और यहीं से हिंसा भड़क गई.
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है.
राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.