मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चल रही हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. 19 महीने पहले शुरू हुआ यह संघर्ष अब फिर बिगड़ने लगा है. पिछले हफ्ते पहाड़ी जिले जिरीबाम में कांग्रेस और भाजपा के कार्यालयों में तोड़फोड़ किए जाने के कारण राज्य में हिंसा बढ़ गई है.
पिछले दो हफ्ते से राज्य में हिंसा की घटनाएं बढ़ गई है. ऐसे में केंद्र सरकार राज्य में लगातार अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात कर रही है.
बुधवार को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की आठ कंपनियां राज्य की राजधानी इंफाल पहुंची. इन बलों को संवेदनशील और सीमांत क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा.
एक दिन पहले ही सीएपीएफ की 11 कंपनियों का एक और जत्था राज्य में पहुंचा था.
इस बीच खबर है कि मणिपुर के दस आदिवासी विधायक, जिनमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सात विधायक शामिल हैं, वो दिसंबर के पहले सप्ताह में दिल्ली में संयुक्त विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने और अपने समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन की मांग करेंगे.
नियोजित विरोध प्रदर्शन में पहली बार 10 विधायक एक मंच पर साथ आएंगे, जिन्होंने पहले भी इन मांगों को अलग-अलग उठाया है.
मामले से अवगत लोगों के मुताबिक, दिल्ली में संयुक्त विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय 10 विधायकों में से तीन, नागरिक समाज संगठनों (CSO) और 25 कुकी समूहों के प्रतिनिधियों के बीच चुराचांदपुर में आयोजित एक बैठक के दौरान लिया गया था, जिन्होंने ऑपरेशन के निलंबन (SoO) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
बैठक में शामिल हुए एक विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “हमने मणिपुर के सीएम को हटाने की जरूरत और अन्य मांगों के बारे में व्यक्तिगत रूप से बात की है या पत्र लिखे हैं. हाल के हफ्तों में हुई घटनाओं ने हमें लोगों और प्रेस के सामने आकर एक साथ बोलने के लिए मजबूर किया है. हमने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है. कुछ विधायक पहले से ही दिल्ली में हैं. अन्य लोग आइजोल जाएंगे और फिर दिल्ली के लिए उड़ान भरेंगे क्योंकि हम इंफाल नहीं जा सकते.”
दिल्ली में आंदोलन करने का फैसला संघर्षग्रस्त राज्य में हाल में हिंसा की घटनाएं बढ़ने के बाद लिया गया है.
मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के सात आदिवासी विधायक और तीन निर्दलीय विधायक हैं. इनमें से दो लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेना बीरेन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री भी हैं.
इन विधायकों ने संघर्ष शुरू होने के बाद से आयोजित सभी विधानसभा सत्रों में भाग नहीं लिया है, क्योंकि उन्होंने मैतेई बहुल इंफाल की यात्रा पर सुरक्षा चिंताओं का हवाला दिया है.
वे सोमवार को बीरेन सिंह द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण बैठक में भी शामिल नहीं हुए.
जबकि सीएम ने कहा था कि सरकार ने आदिवासी विधायकों को इंफाल में उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है, लेकिन उन्होंने जातीय सीएसओ के दबाव के कारण राज्य की राजधानी का दौरा नहीं करने का फैसला किया है.
मणिपुर की आबादी लगभग 38 लाख है, जिसमें मैतेई, नगा और कुकी जैसे समुदाय प्रमुख हैं. मैतेई समुदाय हिंदू धर्म का पालन करता है और इंफाल घाटी में केंद्रित है. दूसरी ओर, कुकी और नगा समुदाय ईसाई धर्म मानते हैं और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. संसाधनों और भूमि के बंटवारे को लेकर विवाद ने इन समुदायों के बीच तनाव बढ़ाया है.