झारखंड चुनाव में रिपोर्टिंग के लिए सबसे पहले चाईबासा पहुंची थी. क्योंकि कोल्हान टाईगर के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. शिबु सोरेन के साथी और कोल्हान क्षेत्र के सबसे बड़े नेता चंपई सोरेन बीजेपी के लिए निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि थी.
झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में कुल 14 विधान सभा सीटें हैं. यहां पर साल 2019 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी की झोली खाली ही रह गई थी. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यहां 11 सीटें जीती थीं. इस पृष्ठभूमि में चंपई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना महत्वपूर्ण माना गया.
कोल्हान क्षेत्र में बेशक झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके साथियों को भारी सफलता मिली थी. लेकिन कोल्हनान वो क्षेत्र है जहां बीजीपी और उसके साथियों का वोट प्रतिशत लगातार सुधर रहा है. साल 2014 के मुकाबले में एनडीए (NDA) का वोट शेयर 37 प्रतिशत से बढ़ कर 39 प्रतिशत हो गया. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन के वोट शेयर में और इज़ाफ़ा हुआ और यह वोट शेयर 46 प्रतिशत पहुंच गया.
कोल्हान क्षेत्र में वोट शेयर के मामले में जेएमएम और उसके साथियों के वोटबैंक में एक ठहराव दिखाई देता है. यह वोट शेयर करीब 43 प्रतिशत के आस-पास स्थिर है.
इस लिहाज से कोल्हान क्षेत्र में बीजेपी के लिए यहां संभावनाएं मौजूद थीं. इन संभावनाओं को मजबूत करने के लिए उसे इस इलाके का एक बड़ा और मजूबत नेता की ज़रूरत थी. चंपई सोरेन में वो ज़रूरत पूरी हो रही थी.
लेकिन पश्चमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम और खरसंवा सरायकेला कोल्हान के तीनों ही ज़िलों में चुनाव प्रचार की रिपोर्टिंग के दौरान लोगों के साथ बातचीत में हमें पहला अहसास यही हुआ कि कोल्हान में बीजेपी को चंपई सोरेन को तोड़ने से कोई ख़ास लाभ नहीं हो रहा है.
बल्कि ऐसा लगता है कि खरसंवा-सरायकेला की सीट से खुद चंपई सोरेन को जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. यहां आदिवासी मतदाता चंपई सोरेन को अवसरवादी और धोखेबाज़ नेता के रुप में देख रहा है.
ऐसा लगता है कि चंपई सोरेन से बीजेपी को कोई फ़ायदा होने की बजाए, चंपई सोरेन की छवि को भारी नुकसान हुआ है.
विधानसभा चुनाव 2024 में बीजेपी का दूसरा बड़ा दांव संथाल परगना में था. यहां बीजेपी ने आदिवासी और अल्पसंख्यक में ध्रुवीकरण पैदा करने में पूरी ताक़त लगा दी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वासरमा से लेकर राज्य के बड़े नेताओं ने बांग्लादेशी घुसपैठिया, लव जिहाद और ज़मीन की लूट का मुद्दा उछाला.
संथाल परगना में बीजेपी ने रोटी, बेटी और माटी बचाने का नारा दिया.
संथाल परगना में बीजेपी ने बेहिसाब ज़ोर लगाया तो इसका ठोस कारण मौजूद था. लोकसभा चुनाव 2024 में इस इलाके में एनडीए को 44 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ. इसके अलावा पार्टी को कम से कम 8 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी.
दूसरी तरफ़ इंडिया गठबंधन को लोकसभा चुनाव में 46 प्रतिशत वोट मिला था और उसे 10 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी.
संथाल परगना में साल 2019 के विधान सभा चुनवा में एनडीए 43 प्रतिशत वोट के साथ मात्र 4 सीटें मिल पाई थीं. जबकि इंडिया गठबंधन को 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 13 सीटें हासिल हुईं.
लेकिन संथाल परगना में भी बीजेपी के रोटी, बेटी और माटी की रक्षा के नारे पर जेएमएम सरकार की मां मैया योजना और बिजली बिल माफ़ी भारी पड़ती नज़र आई. संथाल परगना के शिकारीपाड़ा और जामा में हमने कल्पना सोरेन की जनसभाएं देखीं जिनमें भारी भीड़ जमा थी. इन जनसभाओं की ख़ास बात ये थी कि यहां पर महिलाएं बड़ी तादाद में मौजूद थीं.
इन महिलाओं से बातचीत में पता चला कि वे मां मैया सम्मान योजना की लाभार्थी हैं. इसके अलावा हमने जामताड़ा में कांग्रेस प्रत्याशी इरफ़ान अंसारी की जनसभा में भी भारी भीड़ देखी जबकि बीजेपी की उम्मीदवार सीता सोरेन की जनसभा में इतने कम लोग आए कि वे ख़ुद ही गाड़ी से नहीं उतरीं.
2019 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को उत्तरी छोटा नागपुर में 12 सीटें, पालमू में 5 और दक्षिण छोटा नागपुर में 6 सीटें हासिल हुई थीं.
झारखंड में अगर विधानसभा चुनाव को क्षेत्रवार समझने के लिए 5 प्रखंडों में बांटा जाता है. इनमें कोल्हान में 14 सीट, उत्तर छोटा नागपुर में 25 सीट, पालमू में 9, संथाल परगना में 18 और दक्षिण छोटा नागपुर में 15 सीटें हैं.
इन पांच प्रखंडों में से कोल्हान की 64 प्रतिशत सीटें, दक्षिण छोटा नागपुर की 73 प्रतिशत सीटें और संथाल परगना की 39 प्रतिशत सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इन सीटों पर दक्षिण छोटा नागपुर क्षेत्र में जेएमएम गठबंधन ने अपना प्रदर्शन सुधारा है.
इस इलाके में जेएमएम गठबंधन को साल 2014 में सिर्फ़ 3 सीटें ही मिली थीं. साल 2019 में इस गठबंधन ने 8 सीटें हासिल की थीं. इसी साल यानि लोकसभा 2024 में यहां इंडिया गठबंधन को 11 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल हुई.
इस नज़रिये से बीजेपी का कोल्हान और संथाल परगना में जीतना शायद सरकार बनाने के लिए सबसे ज़रूरी नज़र आता है. लेकिन इन दोनों ही क्षेत्रों की की सीटों पर मतदाताओं के रुख से हमें कम से कम इस बात की संभावना नज़र नहीं आई कि यहां पर कोई बड़ा उलटफेर हो रहा है.
हांलाकि चुनाव के संभावित परिणामों के बारे में बात करते हुए कई बारिकियां ऐसी होती हैं जो बेहद ज़रूरी होती हैं लेकिन विश्लेषण में छूट जाती हैं. मसलन इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर बहुत अच्छा नहीं रहा है. राज्य की कुल 81 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 44 सीटें सामान्य सीटें हैं.
झारखंड के विधानसभा चुनाव के बारे में एग्ज़िट पोल कुछ ठोस नहीं कह रहे हैं. मैं भी किसी भविष्यवाणी से बचना ही चाहूंगी…लेकिन रिपोर्टिंग के ज़मीनी अनुभव के आधार पर दो बातें ज़रूर कर सकती हूं कि आदिवासी और अल्पसंख्यक अभी भी जेएमएम (इंडिया गठबंधन) के साथ जमा हुआ है. इसके अलावा दूसरी बात ये कि इस चुनाव में महिलाएं निर्णायक रूप से हेमंत सोरेन की पक्ष में नज़र आ रही हैं.
अगर महिलाओं का वोट इंडिया गठबंधन को जीता देता है तो इसका श्रेय हेमंत सोरेन से ज़्यादा कल्पना सोरेन को दिया जाना चाहिए.