HomeAdivasi Dailyमणिपुर के आदिवासी संगठनों का विरोध, रविवार मतदान का दिन पुनर्निर्धारित हो

मणिपुर के आदिवासी संगठनों का विरोध, रविवार मतदान का दिन पुनर्निर्धारित हो

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर और कुकी इनपी मणिपुर ने आयोग से तारीख बदलने को कहा है. इसके लिए इन संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है, जिसका समर्थन आम लोगों की ओर से भी किया गया है.

देश के पांच राज्यों के चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. चुनाव आयोग ने शनिवार को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है. पांच विधानसभा में कुल 7 चरणों में चुनाव होंगे. वोटों की गिनती 10 मार्च, 2022 को की जाएगी.

इस बीच मणिपुर में मतदान की तारीखों को लेकर विरोध हो रहा है. दरअसल मणिपुर विधानसभा चुनाव दो चरणों में होगा. 27 फरवरी (रविवार) और 3 मार्च को मतदान होना है.

27 फरवरी, रविवार को पहले चरण के मतदान की तारीख तय किए जाने का राज्य में बड़ा विरोध हो रहा है. कई आदिवासी संगठन और ईसाई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि राज्य में रविवार को मतदान नहीं होता है क्योंकि उस दिन ईसाई संडे मास में जाते हैं. पूजा-प्रार्थना करते हैं और आराम करते हैं इसलिए चुनाव आयोग को तारीख बदलनी चाहिए.

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर और कुकी इनपी मणिपुर ने आयोग से तारीख बदलने को कहा है. इसके लिए इन संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है, जिसका समर्थन आम लोगों की ओर से भी किया गया है.

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने कहा कि राज्य में 43 फीसदी आबादी आदिवासियों की हैं, जिसमें से ज्यादातर ईसाई हैं. रविवार एक ऐसा दिन है जो पवित्र, आराम और पूजा के लिए एक दिन है.

संघ ने चुनाव आयोग से पहले चरण की मतदान तारीख को किसी अन्य सुविधाजनक तिथि पर पुनर्निर्धारित करने का आग्रह किया जो रविवार को न पड़े.  

वहीं राज्य के कुकी समुदाय के एक समूह, कुकी इंपी मणिपुर (KIM) ने गंभीर आपत्ति और शिकायत दर्ज की है. उन्होंने कहा कि 27 फरवरी को मतदान की तारीख तय करना जिस दिन रविवार पड़ रहा है, ये धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है.

केआईएम का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में कई मतदाताओं को अपने वयस्क मताधिकार का प्रयोग करने से रोका जाएगा. उन्होंने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया है.

अब सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग को या राज्य में सत्तारूढ़ दल को इसका अंदाजा नहीं था? चुनाव आयोग एक एक वोट पड़े इसके लिए प्रतिबद्धता जताता है और दूसरी ओर ऐसे दिन मतदान की तारीख तय कर देता है, जिस दिन बड़ी संख्या में लोग मतदान न करें?

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