मणिपुर (Manipur) में मैतेई समुदाय (Meitei community) को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) श्रेणी में शामिल करने की मांग को लेकर प्रदेश में हिंसा भड़क गई है. मैतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने की मांग के खिलाफ जनजातीय समूहों द्वारा बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
अनुसूचित जनजाति के दर्जे पर अदालती आदेश को लेकर आदिवासी समूहों के विरोध के बीच सेना ने आज मणिपुर के हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च किया.
इंफाल, चुराचांदपुर और कांगपोकपी में हिंसा भड़कने के बाद बीती रात मणिपुर के 8 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया. और मणिपुर सरकार ने पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को ठप्प कर दिया है.
बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सेना और असम राइफल्स को बुलाया गया है. स्थानीय प्रशासन ने 3-4 मई की दरमियानी रात को सेना बुलाया. राज्य पुलिस के साथ सेना और असम रायफल्स के जवानों ने रात में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कार्यवाही की. गुरुवार सुबह तक हिंसा पर काबू पा लिया गया.
स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए सेना और असम राइफल्स द्वारा आज फ्लैग मार्च किया गया. हिंसा के बाद राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 4 हज़ार लोगों को सेना के शिविरों और सरकारी कार्यालय परिसरों में आश्रय दिया गया है. ग्रामीणों को हिंसा वाले जगहों से दूर सुरक्षित स्थानों पर भेजने का काम जारी है.
वहीं बुधवार रात मणिपुर के कई हिस्सों में हिंसक झड़पों के बाद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा कि घटनाएं “दो समुदायों के बीच मौजूदा गलतफहमी” का परिणाम थीं और उन्होंने राज्य के लोगों से कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार के साथ सहयोग करने की अपील की.
सिंह ने गुरुवार को एक वीडियो जारी कर कहा, “हम अपने सभी लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. लोगों और उनके प्रतिनिधियों के परामर्श से विभिन्न समुदायों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को भी उचित समय पर संबोधित किया जाएगा.”
वहीं भारतीय सेना द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, झड़पों के तुरंत बाद बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों की सीमा से लगे इलाके में सैन्य और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया. सेना के बयान में कहा गया है कि प्रभावित लोगों को निकालने और कानून व्यवस्था बहाल करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
क्यों भड़की हिंसा
दरअसल, बुधवार को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (All Tribal Student Union Manipur) ने चुराचंदपुर जिले के तोरबंग इलाके में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आह्वान किया ताकि अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की गैर-आदिवासी मेइती समुदाय की मांग का विरोध किया जा सके. लेकिन इस बीच आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसा भड़क उठी.
पुलिस के मुताबिक, रैली में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और इस दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसा भड़क उठी.
छात्र संगठन का कहना है कि राज्य के नेता खुले तौर पर मैतेई की मांग का समर्थन कर रहे हैं जबकि उन्हें आदिवासी हितों की सामूहिक रूप से रक्षा करनी चाहिए.
मेइती समुदाय मणिपुर की आबादी का 53 प्रतिशत हिस्सा है और मुख्य रूप से मणिपुर घाटी में निवास करता है. मेइती का दावा है कि “म्यांमार और बांग्लादेशियों द्वारा बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन” को देखते हुए उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
मौजूदा कानून के अनुसार, मैती लोगों को राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में बसने की अनुमति नहीं है.
वहीं राज्य में अस्थिर स्थिति को देखते हुए गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिलों और आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. इसके अलावा पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवा तत्काल प्रभाव से पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया है. लेकिन ब्रॉडबैंड सेवाएं जारी हैं.
इस बीच मणिपुर सरकार की ओर से कहा गया है कि युवाओं और अलग-अलग समुदायों के वॉलंटियर्स के बीच हुई झड़प को लेकर पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं. ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (ATSU) ने मेइती को एसटी श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध में एक रैली का आयोजन किया था.
अनुसूचित जनजाति की सूचि में नए समुदायों को शामिल करने की राजनीति
संसद के पिछले कई सत्रों में देश के अलग अलग राज्यों के कई आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने से जुड़े कई बिल सरकार ने पेश किये.
जितनी बार भी ये बिल संसद में लाए गए, उतनी बार ही विपक्ष ने सरकार को चेताया था कि यह एक संवेदनशील मामला है और कई राज्यों में तो इस मुद्दे पर अराजकता फैल सकती है.
लेकिन सरकार विपक्ष की सलाह और चेतावनी को ख़ारिज करती रही. विपक्ष ने बार बार कहा कि इस विषय में सरकार को गहन शोध करवाना चाहिए और एक स्पष्ट नीति बनाई जानी चाहिए.
मणिपुर ही नहीं इस मुद्दे पर झारखंड जैसे राज्यों में भी धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं. यहाँ पर कुड़मी महतो ख़ुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की माँग कर रहे हैं.
उधर असम में भी कई समुदाय लंबे समय से यह माँग कर रहे हैं. मणिपुर में बेशक हाईकोर्ट के आदेश के बाद आदिवासी समुदायों में आशंका का माहौल बना है, लेकिन सरकार भी जवाबदेही से बच नहीं सकती है.
सरकार की तरफ़ से समय से और उचित स्पष्टीकरण इस मामले में नहीं दिया गया.