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छत्तीसगढ़: एक डॉक्टर, आठ घंटे, और 101 ग़रीब आदिवासी औरतों की नसबंदी; मरीज़ों की सुरक्षा हुई दरकिनार

इस घटना से 2013 में बिलासपुर के सकरी में हुए एक असफ़ल नसबंदी शिविर की याद ताज़ा हो गई है, जिसमें 13 औरतों की मौत हो गई थी. उस समय, सकरी के ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी डॉ आरके गुप्ता ने छह घंटे में 83 सर्जरी की थीं.

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग ने दो डॉक्टरों को नोटिस जारी किया है. इन डॉक्टरों में से एक ने सरकारी मानदंडों को दरकिनार करते हुए सरगुजा ज़िले में आठ घंटों में सौ से ज़्यादा ट्यूबेक्टोमी सर्जरी कीं. यह सामूहिक नसबंदी नर्मदापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 26 अगस्त को शाम 7 बजे से सुबह 3 बजे के बीच हुई.

राज्य के स्वास्थ्य सचिव आलोक शुक्ला ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं. हालांकि ऑपरेट की गई सभी महिलाएं स्वस्थ तो हैं, लेकिन चूंकि नसबंदी की संख्या निर्धारित दिशानिर्देशों को पार कर गई है इसलिए मामले की जांच की जा रही है.

ज़िले की मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) पूनम सिंह सिसोदिया ने डॉ जिबनुस एकता, जिन्होंने यह सर्जरी की थीं, को कारण बताओ नोटिस भेजा, और मैनपट जिले के ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी डॉ आरएस सिंह, जो वहीं मौजूद थे, को कारण बताओ नोटिस भेजा है.

राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के दिशानिर्देशों के तहत, एक डॉक्टर एक दिन में अधिकतम 30 नसबंदी ही कर सकता है. नसबंदी की गईं औरतें ज्यादातर आदिवासी थीं, और ज़िले के मैनपट ब्लॉक की थीं. हालांकि इनमें से कई औरतों ने कहा कि उन्हें नसबंदी के लिए मजबूर नहीं किया गया था.

नसबंदी करने वाली सर्जन ने नोटिस के अपने लिखित जवाब में कहा है कि इतने कम समय में इतनी सर्जरी करने के पीछे खुद ग्रामीणों का दबाव था. उनका दावा है कि ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने लंबी दूरी तय की है और उनके लिए फिर से आना मुश्किल होगा.

डॉक्टर एकता ने यह भी दावा किया है कि सर्जरी दोपहर 12 बजे से शाम 6:30 बजे के बीच हुई थी, न कि आधी रात को.

दरअसल, इस घटना से 2013 में बिलासपुर के सकरी में हुए एक असफ़ल नसबंदी शिविर की याद ताज़ा हो गई है, जिसमें 13 औरतों की मौत हो गई थी. उस समय, सकरी के ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी डॉ आरके गुप्ता ने छह घंटे में 83 सर्जरी की थीं.

स्वास्थ्य कार्यकर्ता कहते है कि छत्तीसगढ़ पिछली त्रासदियों से सबक़ नहीं ले रहा है, और उसी तरह की ग़लतियां फिर से हो रही हैं.

“नर्मदापुर में जो हुआ है वह महिला और पुरुष नसबंदी के गुणवत्ता मानकों पर सरकार और अदालत दोनों के आदेशों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में ऐसे नसबंदी शिविरों पर प्रतिबंध लगा दिया था, ”जन स्वास्थ्य अभियान की संयुक्त राष्ट्रीय संयोजक डॉ सुलक्षणा नंदी ने हिंदुस्तान टाइमस को बताया.

सुप्रीम कोर्ट के 14 सितंबर, 2016 के फैसले और न्यायमूर्ति मदन लोकुर की अगुवाई वाली पीठ द्वारा जारी किए गए फैसले ने नसबंदी शिविरों को “केंद्र के जनसंख्या नियंत्रण अभियानों के अनौपचारिक लक्ष्य और प्रोत्साहन का ग़लत नतीजा” कहा था.

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि सरकारी नियमों के अनुसार राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के तहत नसबंदी सर्जरी कराने वाली महिलाओं के खाते में 1,800 रुपये ट्रांसफर किए जाते हैं.

डॉक्टर नंदी का कहना है कि ग्रामीण छत्तीसगढ़ में कोविड के चलते पिछले डेढ़ साल में महिलाएं नसबंदी सर्जरी के लिए स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं पहुंच पाईं. लेकिन अब परिवार के दबाव या दूसरे कारणों से सर्जरी कराना चाहती हैं. ऐसे में सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में नसबंदी सर्जरी के लिए एक योजना बनानी चाहिए.

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