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नागालैंड में 20 साल बाद होंगे शहरी निकाय चुनाव, 33 फीसदी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित

राज्य में निकाय चुनाव लंबे समय से लंबित हैं क्योंकि पिछला चुनाव 2004 में हुआ था. तब से पहले "अनसुलझे" नगा शांति वार्ता और फिर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लेकर ये चुनाव नहीं कराए गए. वहीं 2017 में मतदान के दिन की पूर्व संध्या पर झड़पों में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे, जिसके बाद सरकार ने चुनाव कराने के फैसले पर रोक लगा दी थी.

नागालैंड (Nagaland) में करीब दो दशकों बाद 16 मई को 39 शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies) सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं. राज्य चुनाव आयोग ने गुरुवार को इसकी घोषणा की. जिसमें कहा गया है कि महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटों के आरक्षण के साथ इस बार निकाय चुनाव होने जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) की अध्यक्षता में नवगठित नागालैंड मंत्रिमंडल ने मंगलवार को अपनी पहली बैठक में हाई कोर्ट के निर्देशानुसार 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के साथ इस साल मई तक यूएलबी चुनाव कराने पर विचार किया था.

इसके बाद राज्य चुनाव आयुक्त (एसईसी) टी. म्हाबेमो यानथन ने घोषणा की कि महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीट आरक्षित करने के साथ राज्य में तीन नगर परिषदों और 36 नगर परिषदों के गठन के लिए चुनाव 16 मई को होंगे.

चुनाव कार्यक्रम को अधिसूचित करते हुए उन्होंने कहा कि नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया तीन अप्रैल से शुरू होगी और 10 अप्रैल को समाप्त होगी. नामांकन पत्रों की जांच 12 और 13 अप्रैल को की जाएगी, जबकि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 24 अप्रैल है. मतगणना 19 को होगी.

33 प्रतिशत आरक्षण विवादास्पद मुद्दा

नागालैंड में नागरिक निकायों में महिलाओं के लिए सीटों का 33 प्रतिशत आरक्षण एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. विभिन्न आदिवासी संगठन नागरिक निकायों में महिला कोटा का विरोध करते रहे हैं. नगा समाज काफी हद तक पितृसत्तात्मक है और ज्यादातर आदिवासी संगठन पुरुष प्रधान हैं.

हालांकि हाल ही में 1963 में राज्य के गठन के बाद से पहली बार विधानसभा चुनाव में दो महिलाओं को चुनकर इतिहास रचा है.

राज्य में निकाय चुनाव लंबे समय से लंबित हैं क्योंकि पिछला चुनाव 2004 में हुआ था. तब से पहले “अनसुलझे” नगा शांति वार्ता और फिर महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लेकर ये चुनाव नहीं कराए गए. वहीं 2017 में मतदान के दिन की पूर्व संध्या पर झड़पों में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे, जिसके बाद सरकार ने चुनाव कराने के फैसले पर रोक लगा दी थी.

झड़पों में कोहिमा नगर परिषद कार्यालय और राज्य की राजधानी और अन्य जगहों पर आस-पास के सरकारी कार्यालयों में भी आग लगा दी गई थी. विभिन्न आदिवासी संगठन महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का विरोध कर रहे थे. उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) द्वारा गारंटीकृत नगालैंड के विशेष अधिकारों का उल्लंघन है.

हालांकि, 9 मार्च 2022 को नगा समाज के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की कि निकाय चुनाव महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के साथ होने चाहिए.

नागा मदर्स एसोसिएशन (NMA) की अध्यक्ष अबेउ मेरु, जो नागरिक निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए सबसे आगे रही हैं, उन्होंने कहा, “हम यह जानकर बहुत खुश हैं कि 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के साथ आखिरकार ULB चुनाव होने जा रहे हैं. यह हमारे लिए एक लंबा संघर्ष रहा है.”

मेरु ने कहा, “हमें उम्मीद है कि इस मामले पर कोई और आपत्ति नहीं होगी और सही व्यक्ति चुने जाएंगे. हम वास्तव में आगामी यूएलबी चुनावों में हमारी महिलाओं की भागीदारी के लिए उत्सुक हैं. मुझे उम्मीद है कि चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होंगे.”

चुनाव और महिलाएं

नगालैंड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. नागालैंड को 1963 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था. तब से इस पूर्वोत्तर राज्य में 13 चुनाव हो चुके थे लेकिन हैरानी की बात है कि विधानसभा के लिए कभी कोई महिला निर्वाचित नहीं हुई थी.

हालांकि, हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में राज्य बनने के 60 साल बाद पहली बार दो महिला विधायक मिली. सलहौतुओनुओ क्रूसी (Salhoutuonuo Kruse) और हेकानी जाखालू (Hekani Jakhalu) ने चुनाव जीता

राज्य की सभी 60 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं.

चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा अधिक रही

नागालैंड में पुरुष मतदाताओं के मुकाबले महिला उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा है. यहां कुल 6,38,473 महिला मतदाता हैं. इसके बावजूद महिलाओं की राजनीति में हिस्सेदारी न के बराबर है.

स्थानीय चुनाव आयोग के मुताबिक, यहां मतदाताओं की जनसंख्या का अनुपात 532 है, जबकि लिंग अनुपात की बात करें तो पुरुषों का 1000 और महिलाओं 1002 है.

नागालैंड में 1993, 1998 और 2003 को अगर छोड़ दें तो सभी चुनावों में महिलाओं के मतदान की भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा अधिक रही. लेकिन महिलाओं के चुनाव जीतने में विफल रहने का चलन जारी रहा. 1964 के चुनाव की तरह तीसरे (1974), चौथे (1977) और 9वें विधानसभा चुनावों में कोई महिला उम्मीदवार मैदान में नहीं थी.

1982 में हुए 5वें विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक महिला थीं. रानो एम शाज़ियाज़, जो नागालैंड की पहली लोकसभा सांसद थीं. लेकिन उन्होंने पश्चिमी अंगामी से निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गईं. शाज़ियाज़ अब तक नागालैंड से लोकसभा के लिए चुनी गई एकमात्र महिला हैं. जबकि साल 2022 में बीजेपी नेता एस फांगनोन कोन्याक नागालैंड से पहली महिला राज्यसभा सांसद बनीं.

नागालैंड में स्थानीय शहरी निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण एक क्रांतिकारी बदलाव ही कहा जाएगा. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि चुनाव से पहले आदिवासी संगठनों का मन फिर से ना बदल जाए.

इसके लिए सरकारों यानि केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही चौकन्ना रहना होगा.

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