HomeAdivasi Dailyतमिलनाडु: आदिवासी स्कूलों को बेहतर करने का क्या है रास्ता?

तमिलनाडु: आदिवासी स्कूलों को बेहतर करने का क्या है रास्ता?

दलित और आदिवासी बच्चों के लिए बने इन स्कूलों के खराब प्रदर्शन ने एक और मांग को उजागर किया है. वो ये कि राज्य में लगभग 1,466 स्कूलों को स्कूल शिक्षा विभाग के तहत लाया जाना चाहिए ताकि वो ज़्यादा कुशलता से काम कर सकें.

तमिलनाडु में हाल ही में कक्षा 10वीं और 12वीं के परिणामों की घोषणा की गई. राज्य के अलग-अलग श्रेणियों के स्कूलों में सबसे कम पास प्रतिशत आदि द्रविड़ और आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में की गई है. इसके अलावा शिक्षाविद मानते हैं कि अगर शिक्षकों की सबी वेकेंसी को भर दिया जाता है तो उन स्कूलों का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है.

दलित और आदिवासी बच्चों के लिए बने इन स्कूलों के खराब प्रदर्शन ने एक और मांग को उजागर किया है. वो ये कि राज्य में लगभग 1,466 स्कूलों को स्कूल शिक्षा विभाग के तहत लाया जाना चाहिए ताकि वो ज़्यादा कुशलता से काम कर सकें.

कक्षा 10वीं के परिणामों में, जहां आदि द्रविड़ कल्याण स्कूलों ने 78.11 का पास प्रतिशत दर्ज किया, वहीं आदिवासी कल्याण स्कूलों में यह प्रतिशत 78.37 था. इसकी तुलना में सरकारी स्कूलों का पास प्रतिशत 85.25 रहा.

कक्षा 12वीं में, सरकारी स्कूलों का प्रतिशत 89 था, जबकि आदि द्रविड़ कल्याण स्कूलों का 82.21 और आदिवासी कल्याण स्कूलों का 86.

आदिवासी बच्चों के साथ काम करने वाले कई शिक्षाविदों ने स्कूलों के खराब प्रदर्शन के मुख्य कारणों में से एक के रूप में टीचरों की खाली पड़ी पोस्ट का हवाला दिया.

मसलन, चेंगलपट्टू जिले के इरुम्बेडु में एक आदि द्रविड़ कल्याण स्कूल, जिसे दो साल पहले एक हायर सेकेंडरी स्कूल के रूप में अपग्रेड किया गया था, बिना प्रिंसिपल के काम कर रहा है, जिसकी वजह से कोई नया टीचर भी नियुक्त नहीं किया गया है.

“भले ही छात्रों को 11 वीं कक्षा में भर्ती कराया गया था और उन्होंने अपनी परीक्षा लिखी है, फिर भी प्रिंसिपल का पद अभी भी खाली है और हायर सेकेंडरी टीचरों की नियुक्ति होनी बाकी है. यह दुर्दशा कई स्कूलों की है, जिन्हें अपग्रेड किया गया था,” स्कूल के एक शिक्षक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया.

सभी स्कूलों को शिक्षा विभाग के दायरे में लाना

अखबार का कहना है कि अकेले ईरोड जिले में 22 सरकारी आदिवासी आवासीय (जीटीआर) स्कूलों में चार प्रिंसिपल, 30 बीटी शिक्षक (शिक्षण स्नातक), आठ माध्यमिक ग्रेड शिक्षक और चार पीजी शिक्षकों के पद खाली हैं. इसके अलावा, पहाड़ी क्षेत्रों में नियुक्त अधिकांश शिक्षक वहां सुविधाओं की कमी के कारण नियमित रूप से स्कूलों में पढ़ाने के लिए नहीं आते.

“रेट्टमंगलम के आदि द्रविड़ वेलफेयर स्कूल में, एक हाई स्कूल अंग्रेजी शिक्षक और दो गणित शिक्षकों के पद खाली हैं. उच्च माध्यमिक में कॉमर्स, अकाउंट्स और तमिल शिक्षकों के लिए एक पद भी नहीं है, हालांकि कई छात्र इन विषयों का चयन कर रहे हैं,” एक शिक्षक ने बताया.

आदिवासी छात्रों के लिए काम करने वाली संस्था सुदर के एस नटराज ने कहा कि इन स्कूलों को स्कूल शिक्षा विभाग के तहत लाना ही इन्हें बेहतर करने का भी रास्ता है. “आदि द्रविड़ और आदिम जाति कल्याण विभाग के स्कूलों में कार्यरत शिक्षक कल्याण तहसीलदार के अंतर्गत आते हैं. हालांकि स्कूल शिक्षा विभाग की कई आलोचनाएं हैं, लेकिन उनके पास अधिकारियों की तुलना में छात्रों के सीखने के परिणामों को विकसित करने के लिए एक बेहतर दृष्टिकोण और तंत्र होगा. SED द्वारा शुरू की गई स्कूल प्रबंधन समितियों के पुनर्गठन सहित कई योजनाओं को भी इन स्कूलों में लागू नहीं किया गया है,” उन्होंने कहा.

दूसरी तरफ़, कुछ शिक्षक कहते हैं कि राज्य में एक दिक्कत यह भी है कि कई शिक्षक एससी और एसटी छात्रों के साथ काम करने से इनकार करते हैं. वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षकों के पद पूरी तरह से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. उन्हें एसईडी के तहत लाने से इन समुदायों के युवाओं के रोजगार के अवसरों पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

आदि द्रविड़ कल्याण विद्यालयों में 95,013 छात्र

जबकि तमिलनाडु के आदि द्रविड़ कल्याण विद्यालयों में 95,013 छात्र हैं, आदिवासी आवासीय विद्यालयों में 28,263 और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में 2,890 छात्र पढ़ते हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments