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बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट को कहा- SC/ST केंद्रीय स्कॉलरशिप योजना फंड की कमी से बंद

बिहार के एससी/एसटी कल्याण विभाग ने 2016 में यह कहते हुए छात्रवृत्ति के तहत शुल्क की सीमा तय कर दी थी कि बिहार और बाहर के सरकारी और निजी कॉलेजों के ट्यूशन में अंतर है.

बिहार में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के छात्रों के लिए केंद्र की पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप करीब सात साल से बंद है. अब इस मामले में दायर जनहित याचिका के जवाब में बिहार सरकार ने 15 फरवरी को पटना हाई कोर्ट (Patna High Court ) को योजना को स्थगित करने का कारण धन की कमी बताया है.

इस वार्षिक छात्रवृत्ति का 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है.

दिसंबर 2022 में समस्तीपुर निवासी राजीव कुमार द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रहा हाई कोर्ट अब 24 मार्च को याचिका पर सुनवाई करेगा.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के 2.5 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले परिवारों के लिए ये स्कॉलरशिप प्रोफेशनल, टेक्निकल, मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और पोस्टग्रेजुएट कोर्स में मदद करने के लिए है. अनुमानित 5 लाख छात्र बिहार में इस योजना के लिए पात्र हैं, जहां अनुसूचित जाति की आबादी 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1 प्रतिशत है.

इस सवाल पर कि योजना को बंद करने से पहले बिहार ने एससी और एसटी के लिए राष्ट्रीय पैनल से परामर्श क्यों नहीं किया, बिहार एससी/एसटी कल्याण विभाग के निदेशक संजय कुमार सिंह ने कहा कि “वित्तीय मामले” पर उनसे परामर्श करना अनावश्यक था.

जबकि हलफनामे में कहा गया है कि राज्य छात्र क्रेडिट कार्ड योजना और कम ऋण दर योजना चला रहा है. इसमें पीएमएस (पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप) के तहत कवर किए गए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए विशेष रूप से किसी छात्रवृत्ति का उल्लेख नहीं किया गया है.

याचिकाकर्ता, जिसने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों को केंद्रीय योजना के अभाव में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के भुगतान के लिए अपनी जमीन गिरवी रखने या लोन लेने के लिए मजबूर करने के कई उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा, “राज्य सरकार अपने जवाबों में फंस रही है. सबसे पहले इसने पीएमएस पोर्टल में तकनीकी खराबी को जिम्मेदार ठहराया. अब यह फंड की कमी का हवाला दे रहे हैं. किसी अन्य राज्य ने इस योजना को बंद नहीं किया है. मुझे हैरानी है कि जब इनके पास पुल बनाने के लिए पैसा है तो यह फंड की कमी का हवाला कैसे दे रहे हैं.”

वित्त विभाग के अधिकारियों ने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया.

बिहार के एससी/एसटी कल्याण विभाग ने 2016 में यह कहते हुए छात्रवृत्ति के तहत शुल्क की सीमा तय कर दी थी कि बिहार और बाहर के सरकारी और निजी कॉलेजों के ट्यूशन में अंतर है.

अगस्त 2021 में प्रकाशित मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य ने नैशनल जॉब पोर्टल के साथ “तकनीकी रोड़ा” का हवाला देते हुए 2018-19 से इस योजना को रोक रखा था.

2018-19 की कैग रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार ने राज्य के बिजली विभाग को 2,076.99 करोड़ रुपये डायवर्ट कर 460.84 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था.

प्रमुख सड़क परियोजनाओं के लिए 3,081.34 करोड़ रुपये, तटबंधों के निर्माण और विभिन्न बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं के लिए 1,202.23 करोड़ रुपये, मेडिकल कॉलेजों के लिए 1,222.94 करोड़ रुपये और विभिन्न भवनों के निर्माण के लिए 776.06 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया. बिहार सरकार कैग रिपोर्ट में की गई टिप्पणियों से सहमत थी.

यह बेहद अफ़सोसनाक स्थिति है कि जिस योजना का 60 प्रतिशत ख़र्च केंद्र सरकार उठा रही है उस योजना को भी बिहार सरकार धन के अभाव में बंद कर देती है.

यह तो बताने की ज़रूरत ही नहीं है कि यह योजना समाज से सबसे कमज़ोर और वंचित तबकों के लिए चलाई जाती हैं.

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