एक बार फिर आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (ASR) के आदिवासी डोली (अस्थायी स्ट्रेचर) में शव को ले जाने को मजबूर हुए. जिले के अनंतगिरी मंडल के पेडाकोटा पंचायत के उबड़-खाबड़ इलाकों से होकर आदिवासियों ने एक शव को डोली में रखकर सरिया से मदराबू तक 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा की.
इस घटना ने एक बार फिर सड़क संपर्क की कमी के कारण पहाड़ी इलाकों में आदिवासियों के सामने आने वाली मुश्किल परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है.
दरअसल, मंगलवार की सुबह स्वास्थ्य समस्याओं के कारण विजाग शहर के केजी अस्पताल में मरने वाली 60 वर्षीय कोंडा तंबाली सिलकम्मा (Konda Tambali Silakamma) का शव एंबुलेंस से देवरपल्ली लाया गया.
वहां से शव को एक ऑटो-रिक्शा में सरिया गांव ले जाया गया लेकिन इसे तलहटी में रुकना पड़ा क्योंकि सिलकम्मा के गांव यानि आदिवासी बस्ती मदराबू तक कोई सड़क नहीं है.
ऐसे में शव को आदिवासी वहां से डोली में लेकर गए.
सिलकम्मा के परिवार के सदस्यों ने कहा कि शव ग्रामीणों के एक समूह ने डोली को बारी-बारी से उठाया और पहाड़ी पर स्थित गांव तक पहुंचने में तीन घंटे से अधिक समय लगा. जिसके बाद मंगलवार शाम को उनके रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार किया.
मदराबू के निवासियों के साथ-साथ तुलसीबू, कराकावलासा, राचाकिलम और गुम्माटी जैसे पहाड़ी पर स्थित अन्य आदिवासी गांवों के निवासी लंबे समय से बेहतर सड़क पहुंच की मांग कर रहे हैं.
आदिवासियों का कहना है कि हमारी एक ही मांग है कि पहाड़ी आदिवासी बस्तियों – मदराबू, तुलसीबू, करकावलसा, राचाकिलम, गुम्माटी और कुछ अन्य गांवों को सड़क से जोड़ा जाए. इस मांग को कई बार निर्वाचित प्रतिनिधियों और जिला प्रशासन के सामने रखा गया है. लेकिन आजादी के सात दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कुछ भी नहीं किया गया है.
अल्लूरी सीताराम राजू जिले के हिस्से में पहाड़ी गांव के निवासी लंबे समय से सड़क संपर्क की मांग कर रहे हैं.
अधिकारियों ने दावा किया कि पहाड़ी क्षेत्रों की सड़कों के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत 13 करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की गई थी. लेकिन काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है.
सीपीएम नेता के गोविंदा राव ने कहा कि वे इन गांवों के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज़ करने की योजना बना रहे हैं.
अल्लूरी सीताराम राजू की आदिवासी बस्तियों में इस तरह की घटनाएं अक्सर देखने को मिलती है जब गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को सड़क की सुविधा न होने के चलते डोली से अस्पताल पहुंचाया जाता है. साथ ही शवों को लाने के लिए भी डोली का सहारा लेना पड़ता है.