झारखंड की आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के दो लोगों की मौत मामले में जनजातीय मामलों के मंत्रालय और झारखंड के पुलिस महानिदेशक (DGP) से शिकायत की गई है.
यह मामला हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड स्थित एनटीपीसी के चट्टी बरियातू कोल परियोजना की है. जहां नियुक्त माइन डेवलपर और ऑपरेटर रित्विक के माध्यम से पगार गांव के बिरहोर बस्ती के नजदीक किए जा रहे खनन के दुष्प्रभाव से समुदाय की नाबालिग किरणी बिरहोर और बहादुर उर्फ दुर्गा बिरहोर की मौत हो गई.
इस मामले में मधु कोड़ा मंत्रिमंडल के मंत्रियों को जेल भिजवाने वाले झारखंड के पीआईएल मैन दुर्गा मुंडा ने जनजातीय कार्य मंत्रालय और डीजीपी को पत्र लिखकर शिकायत की है.
उन्होंने पत्र के माध्यम से एनटीपीसी के माइन डेवलपर और ऑपरेटर (MDO) ऋत्विक-एएमआर कंसोर्टियम और जिला प्रशासन सहित इसमें शामिल पक्षों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है.
दुर्गा मुंडा ने जिला खनन अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी, केरेडारी अंचल अधिकारी और थाना प्रभारी समेत स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं.
उनका दावा है कि इन अधिकारियों ने संदिग्ध तरीके से काम किया और बिरहोर समुदाय की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में विफल रहे.
सब-डिविजनल ऑफिसर (SDO) की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय जांच दल ने पुष्टि की कि क्षेत्र में खनन और परिवहन गतिविधियों से धूल के कण काफी मात्रा में निकल रहे हैं, जिससे गंभीर वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा हो रहे हैं.
रिपोर्ट में बिरहोर टोला के निवासियों में सांस संबंधी और अन्य बीमारियों के जोखिम के बारे में बताया गया है. साथ ही बताया गया है कि माइनिंग करने के लिए विस्फोट किया जाता है, जिसके कारण कोई भी बड़ी दुर्घटना घट सकती है.
समिति ने बिरहोर टोला के आसपास खनन कार्यों को तब तक रोकने की सिफारिश की जब तक कि प्रभावित परिवारों को कहीं और पुनर्वासित नहीं कर दिया जाता. हालांकि, इन निष्कर्षों के बावजूद खनन कार्य बेरोकटोक जारी रहा.
आरोप है कि जिला प्रशासन ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 174(3) के तहत मृतक व्यक्तियों का पोस्टमार्टम नहीं कराया, जो मृत्यु के कारण का पता लगाने के लिए जरूरी है. ये गलती मृत्यु के वास्तविक कारणों को छिपाने और दोषियों को बचाने के प्रयास का संकेत देती है.
दुर्गा मुंडा की शिकायत में बताया गया है कि सुरक्षा और पर्यावरण मानकों को ध्यान में रखे बिना खनन गतिविधियां शुरू की गईं. बार-बार अनुरोध और संभावित ख़तरों के बावजूद समुदाय को कहीं और बसाने में प्रशासन की लापरवाही, करीब विलुप्त हो चुके बिरहोर आदिवासी समुदाय की सुरक्षा और भलाई के प्रति उपेक्षा को दर्शाती है.
दुर्गा मुंडा ने एनटीपीसी के एमडीओ और संबंधित स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने जनजातीय मामलों के मंत्रालय और डीजीपी से प्रभावित समुदाय के लिए जवाबदेही और न्याय सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है.
साथ ही इस बात पर जोर दिया है कि आदिवासी अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा में किसी भी लापरवाही को व्यापक रूप से संबोधित किया जाना चाहिए.
शिकायतकर्ता का कहना है कि अगर इस मामले को गंभीरता से लिया जाए तो खनन क्षेत्रों में कमजोर आदिवासी समुदायों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए आगे की जांच और जरूरी कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं.