ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले के बोनाई उपखंड में स्थित सिहिड़िया प्राथमिक विद्यालय के सरकारी छात्रावास से मंगलवार रात 15 आदिवासी बच्चे बिना किसी की नजर में आए निकल गए.
ये बच्चे 5 से 11 वर्ष की आयु के थे और पहली से पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे.
बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता तब बढ़ गई जब पता चला कि स्थानीय प्रशासन और स्कूल प्रबंधन को 12 घंटे तक इसके बारे में पता ही नहीं था.
आखिर में बच्चों को बुधवार दोपहर 1:30 बजे एक शिक्षक और रसोइए की मदद से सुरक्षित वापस लाया गया.
कैसे हुई यह घटना?
सूत्रों के अनुसार, छात्रावास में रहने वाले 27 बच्चों में से 15 बच्चों ने रात लगभग 11 बजे छात्रावास छोड़ दिया.
वे करीब 5 किलोमीटर पैदल चलकर अंबागांव के रास्ते पड़ोसी देवगढ़ जिले में पहुंच गए.
यह रास्ता जंगलों से घिरा था, जहां हाथियों समेत अन्य जंगली जानवरों का खतरा था. सौभाग्य से, बरकोट पुलिस की गश्त लगा रही टीम ने उन्हें सुरक्षित बचा लिया.
चौंकाने वाली बात यह थी कि सुंदरगढ़ ज़िले के आदिवासी कल्याण विभाग (SSD) और स्कूल एवं जन शिक्षा विभाग (SME) के अधिकारियों को दोपहर 12 बजे तक घटना की कोई जानकारी नहीं थी.
जब बरकोट पुलिस ने बोनाई उप-संग्रहालय (सब-कलेक्टर) कार्यालय को सूचना दी तब जाकर प्रशासन हरकत में आया. इससे पता चलता है कि छात्रावास में निगरानी और संचार की भारी कमी थी.
प्रशासन की प्रतिक्रिया
घटना की गंभीरता को देखते हुए जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) एके प्रधान ने कहा कि इस लापरवाही के लिए स्कूल की प्रिंसिपल और सहायक को ज़िम्मेदार माना जा रहा है.
उन्होंने इस मामले में सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है.
इसके अलावा ज़िला कल्याण अधिकारी ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे.
घटना की वजह
जानकारी के मुताबिक, स्कूल की प्रिंसिपल सह छात्रावास अधीक्षिका द्रौपदी साहू परिसर में नहीं रहती थीं क्योंकि वहां उनके रहने के लिए आवास नहीं था. बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी केवल एक रसोइया के कंधों पर थी.
इस घटना से यह साफ होता है कि आदिवासी बच्चों के लिए संचालित सरकारी छात्रावासों में सुरक्षा और रहने की सुविधाओं की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है.
अगर छात्रावास का वातावरण बच्चों के लिए आरामदायक नहीं होगा तो वे वहां सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे.
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि छात्रावासों में अधीक्षक और देखभाल करने वाले कर्मचारियों की उचित व्यवस्था हो.
बच्चों की शिकायतों को गंभीरता से लेकर उनकी समस्याओं का समाधान निकाला जाना बहुत ज़रूरी है.
आदिवासी बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है. यह घटना एक चेतावनी है कि आदिवासी छात्रावासों में सुविधाओं और निगरानी प्रणाली में सुधार लाना जरूरी है, ताकि भविष्य में बच्चे खुद को असहज महसूस न करें और सुरक्षित रहें.