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ओडिशा: आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासी महिलाओं की मौत का मुद्दा विधानसभा में उठा

सदस्यों ने मोहन चरण माझी सरकार के खिलाफ नारे लगाए और आरोप लगाया कि उनकी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने में विफल रही है.

ओडिशा विधानसभा में मंगलवार को विपक्षी बीजू जनता दल (बीजद) और कांग्रेस सदस्यों ने बीते दिनों कथित तौर पर खाद्यान्न की कमी के कारण आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासी समुदाय की तीन महिलाओं की मौत के मुद्दे पर नारेबाजी की जिसके कारण करीब एक घंटे के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.

सदन में दिवंगत पूर्व छह सदस्यों को श्रद्धांजलि देने के बाद विधानसभा अध्यक्ष सुरमा पाढ़ी ने प्रश्नकाल की अनुमति दी.

इसी दौरान बीजद और कांग्रेस के विधायक आसन के सामने आ गए और कंधमाल जिले में कथित तौर पर आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासी महिलाओं की हुई मौत के मामले को लेकर हंगामा करने लगे.

सदस्यों ने मोहन चरण माझी सरकार के खिलाफ नारे लगाए और आरोप लगाया कि उनकी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने में विफल रही है, जिससे कंधमाल जिले के मंडीपांका गांव के लोगों को खाद्यान्न की कमी का सामना करना पड़ा और इस कारण वहां आदिवासी समुदाय की तीन महिलाओं की मौत हो गई.

सदन में शोरगुल जारी रहने पर अध्यक्ष ने कार्यवाही दोपहर 12:25 बजे तक के लिए स्थगित कर दी.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पिछले महीने कंधमाल ज़िले में आम की गुठली से बना दलिया खाने से दो आदिवासी महिलाओं की मौत हो गई और सात अन्य लोग बीमार हो गए थे.

यह घटना दरिंगबाड़ी ब्लॉक के मंडीपांका गांव में हुई था, जहां कई ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले आम की गुठली से दलिया बनाकर खाया था.

बीमार लोगों को नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया गया था.लेकिन हालत गंभीर होने पर इन्हें बरहमपुर भेजा जा रहा था. लेकिन बरहमपुर के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दो महिलाओं की मौत हो गई.

एक महिला की स्वास्थ्य केंद्र में मौत हो गई तो दूसरी महिला ने एंबुलेंस से बरहमपुर ले जाते वक्त रास्ते में दम तोड़ दिया.

मृत महिलाओं की पहचान 30 वर्षीय रुनी माझी और 28 वर्षीय रनिता पटामाझी के रूप में हुई थी.

इस मामले में एक आधिकारिक जांच का आदेश दिया गया है, एक गैर सरकारी संगठन, गणतंत्र अधिकार सुरक्षा संगठन (जीएएसएस), ओडिशा की दो सदस्यीय टीम ने दरिंगबाड़ी ब्लॉक के अंतर्गत गदापुर पंचायत के मंडीपंका गांव का दौरा किया.

टीम ने गांव के लोगों, पीड़ित परिवारों, स्थानीय राजनीतिक प्रतिनिधियों और प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) से बातचीत की.

उन्होंने प्रभाती पट्टामाझी, सुज़ाना पट्टामाझी और जिबंती पट्टामाझी से मुलाकात की, जो ब्रह्मपुर से इलाज के बाद घर लौटी थीं. इन तीनों ने पांच अन्य लोगों के साथ बताया कि उन्हें सुभद्रा योजना के तहत कोई भुगतान नहीं मिला है, जो ओडिशा में वर्तमान सरकार द्वारा महिलाओं के लिए सबसे ज़्यादा प्रचारित योजना है.

गुठली खाने का एक विकल्प

अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण आम की गुठली इकट्ठा करके उसे जमा कर लेते हैं. वे गुठली को लकड़ी की आग (चूल्हे) पर रखते हैं ताकि फफूंद से खराब होने से बचाया जा सके.

जब चावल और अन्य अनाज का स्टॉक खत्म हो जाता है, तो वे खाने के लिए गुठली का दलिया तैयार करते हैं.

कठोर बाहरी भाग को कुचलकर नरम आंतरिक भाग को इकट्ठा किया जाता है, जिसे बारीक पीसकर चूर्ण बना लिया जाता है, कपड़े में लपेटा जाता है और 12 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाता है. भीगे हुए गुठली के चूर्ण को उबालकर कम से कम दिसंबर तक दलिया बनाया जाता है.

उस दिन (1 नवंबर को) गीली गुठली के चूर्ण में फफूंद लगी हुई थी. मंडीपांका गांव की आठ महिलाओं ने दूषित गुठली को यह सोचकर खा लिया कि इसे भूनने से इसके हानिकारक प्रभाव खत्म हो जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजतन यह त्रासदी हो गई.

राज्य सरकार के अधिकारियों का तर्क है कि यह पौष्टिक भोजन है. लेकिन अगर ऐसा है तो इसे चावल, दाल, अंडे और हरी सब्जियों के साथ स्कूली किताबों में संतुलित आहार या पोषण चार्ट में क्यों शामिल नहीं किया गया है.

यह सच है कि आदिवासी और दलित दोनों समुदाय आम की गुठली इकट्ठा करते हैं लेकिन नया अनाज आने पर बची हुई गुठली को फेंक देते हैं.

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