HomeAdivasi Dailyअब ओडिशा के आदिवासी छात्र अपनी आठ मातृभाषा में पढ़ सकेंगे

अब ओडिशा के आदिवासी छात्र अपनी आठ मातृभाषा में पढ़ सकेंगे

किताबें SCSTRTI द्वारा विकसित की जाएंगी. ओडिशा में, मातृभाषा आधारित प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम वर्तमान में सरकार द्वारा 12 जिलों में ICDS के माध्यम से लागू किया जा रहा है.

अब ओडिशा में औपचारिक शिक्षा की शुरुआत के दौरान आदिवासी बच्चों को भाषा की मुश्किलों से निपटने में मदद करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने आठ और आदिवासी भाषाओं में शिक्षण सामग्री विकसित करने का निर्णय लिया है.

विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आंगनबाड़ियों में बच्चों के लिए मातृभाषा आधारित प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम पाठ्यक्रम ‘नुआ अरुणिमा’ (Nua Arunima) के तहत विभाग हो, भूमिजा, खड़िया, गब्बा जैसी भाषाओं में किताबें और शिक्षण सामग्री लेकर आएगा.  

2014 में मातृभाषा आधारित शिक्षा योजना लागू होने के बाद से विभाग ने जुआंग, मुंडा, बोंडा, सौरा, शांताली, कुई, कुवी, कोया, किसान और ओरान भाषाओं में नुआ अरुणिमा पाठ्यक्रम पहले ही तैयार कर लिया है. राज्य भर में 7,202 आंगनबाड़ियों में शिक्षण सामग्री वितरित की गई है.

किताबें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (SCSTRTI) द्वारा विकसित की जाएंगी. ओडिशा में, मातृभाषा आधारित प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम वर्तमान में सरकार द्वारा 12 जिलों में ICDS के माध्यम से लागू किया जा रहा है.

अधिकारी ने कहा, “क्योंकि आदिवासी समुदायों के बच्चों का खराब शैक्षिक प्रदर्शन भाषा की बाधा (उड़िया में शिक्षण) से जुड़ा हुआ है जब वे औपचारिक शिक्षा शुरू करते हैं, तो विभाग ने कार्यक्रम को आठ और आदिवासी भाषाओं में विस्तारित करने के बारे में सोचा है.”

ओडिशा के आदिवासी समुदायों का भाषा-आधार इतना विविध है कि उनकी 21 भाषाएं हैं, जिनको 74 डायलेक्ट में बांटा गया है इसलिए यह काम काफी मुश्किल लगता है. पाँचवीं कक्षा तक मातृभाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में निर्धारित करना भले ही आसान है लेकिन इसे लागू करना उतना ही मुश्किल.

ओडिशा में कुल 62 आदिवासी समुदाय हैं, जिनमें से 13 विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह यानि पीवीटीजी हैं, जो इसे भारत में सबसे विविध आदिवासी समुदायों वाला राज्य बनाते हैं.

सिर्फ़ किताबें प्रकाशित करने से बात नहीं बनेगी

ओडिशा में बेशक यह एक अच्छी पहल है क्योंकि अगर आदिवासी बच्चों को मातृभाषा में पाठ्य सामग्री मिलने से उन्हें पढ़ने में आसानी होगी. इसके अलावा अपनी मातृभाषा से बच्चे में एक सुरक्षा की भावना भी पैदा होती है और वो स्कूल जाने से भी नहीं डरते हैं.

लेकिन आदिवासी भाषा या बोली में किताबें उपलब्ध करवा देने भर से इस समस्या का समाधान नहीं होगा. क्योंकि जितनी बड़ी चुनौती आदिवासी भाषाओं में पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाना है, उतनी ही बड़ी चुनौती इन भाषाओं में पढ़ाने वाले अध्यापक उपलब्ध करवाना है.

ख़ासतौर से पीवीटीजी समुदायों में यह चुनौती बहुत बड़ी है. क्योंकि इन समुदायों में पढ़ाई लिखाई का स्तर बहुत कमज़ोर है. इसलिए उनकी भाषा में पढ़ाने वाले अध्यापक मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है.

ओडिशा के ही मयूरभंज ज़िले में MBB की टीम ने यह महसूस किया था. यहाँ पर लोधा, हिल खड़िया और मांकड़िया आदिवासी समुदायों के लिए बहुत अच्छे स्कूल बनाए गए हैं. इन स्कूलों में हॉस्टल के इंतज़ाम भी किये गए हैं.

लेकिन इस स्कूल में जितने छात्रों का नाम रजिस्टर में लिखा था उसके 10 प्रतिशत छात्र भी हमें वहाँ मौजूद नहीं मिले थे. जब हम अगले दो-तीन दिन इन छात्रों के माता-पिता से मिलने उनके गाँवों में पहुँचे तो पता चला कि बच्चे स्कूल की बजाए जंगल चले जाते हैं.

इसकी एक बड़ी वजह हमें जो समझ में आई कि उनके समुदाय में कोई इतना पढ़ा लिखा है ही नहीं जो स्कूल में पढ़ा सके.

भाषा वॉलेंटीयर का प्रयोग सफल हो सकता है

ओडिशा से सटे आंध्र प्रदेश की अराकु घाटी में प्राइमरी स्कूलों में भाषा वॉलेंटीयर की नियुक्ति का एक प्रयोग शुरू हुआ. इस प्रयोग के तहत प्राइमरी स्कूल में उस समुदाय के एक या दो लोगों को भाषा वॉलेंटीयर के तौर पर नियुक्त किया जाता है.

इस प्रयोग के तहत कक्षा तीन तक भाषा वॉलेंटीयर तेलगु या अंग्रेज़ी के शब्दों को अपने समुदाय के बच्चों को उन्हीं की भाषा में समझाता है. तीन साल में बच्चे धीरे धीरे तेलगू भाषा समझने लगते हैं और फिर वो स्कूल से भागते नहीं हैं.

यह प्रयोग ओडिशा और दूसरे राज्यों में भी अपनाया जा सकता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments