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केरल ‘डिजिटल आदिवासी बस्तियां’ तैयार करेगा

यह परियोजना वायनाड के आदिवासी गांवों के लिए रीजनल कैंसर सेंटर, रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफथामॉलजी और सीएसआईआर-एनआईआईएसटी जैसे संस्थानों की ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करेगी.

केरल में पिछड़े और अनुसूचित जनजाति समुदायों के कल्याण मंत्री के. राधाकृष्णन ने रविवार एक ज़रूरी घोषणा की है. उन्होंने कहा कि वायनाड को देश में पहली बार डिजिटल आदिवासी बस्ती मिलेगी.

आदिवासी बस्तियों पर ई-एजुकेशन और ई-हेल्थ को एकीकृत करने वाली ‘डिजिटली कनेक्टेड ट्राइबल कॉलोनियों’ परियोजना से विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से आदिवासियों के स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में सुधार की उम्मीद है.

यह परियोजना राज्य अनुसूचित जनजाति विकास विभाग द्वारा केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की मदद से कार्यान्वित की जा रही है. इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत CDAC, इस परियोजना को क्रियान्वित कर रहा है.

के. राधाकृष्णन ने वायनाड के कलपेट्टा में परियोजना का उद्घाटन करते हुए कहा, “राज्य सरकार का ध्यान स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार सेक्टर के क्षेत्रों पर जोर देकर अनुसूचित जनजातियों के विकास पर है.”

परियोजना के तहत आदिवासी कॉलोनियों में स्मार्ट क्लासरूम शुरू किए जाएंगे, जिन्हें जनरल एजुकेशन डिपार्टमेंट के व्यापक ई-संसाधन पोर्टल से भी जोड़ा जाएगा.

यह परियोजना वायनाड के आदिवासी गांवों के लिए रीजनल कैंसर सेंटर, रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफथामॉलजी और सीएसआईआर-एनआईआईएसटी जैसे संस्थानों की ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करेगी.

विभाग ने एक विज्ञप्ति में कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से नॉन कम्युनिकेबल डिजीज और डायबिटिक रेटिनोपैथी, ओरल कैंसर और सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए टेलीमेडिसिन सिस्टम स्थापित किया जाएगा.

के. राधाकृष्णन ने कहा कि 9 करोड़ रुपये की लागत से लागू की जाने वाली इस परियोजना को अगले साल मार्च से पहले लागू कर दिया जाएगा.

वायनाड के आदिवासी

हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक वायनाड ज़िले में कुपोषण के अधिकांश मामले यहां के आदिवासी समुदायों से सामने आए थे. अगस्त के आंकड़ों के मुताबिक, कम से कम 60 बच्चे गंभीर पोषण की कमी से पीड़ित थे, जिनमें से 47 बच्चे आदिवासी समुदायों के थे.

यह भी पता चला था कि गंभीर कुपोषण का पता चलने के बाद भी पोषण पुनर्वास केंद्र में अधिकारी आदिवासी बच्चों को भर्ती करने को तैयार नहीं हैं. इतना ही नहीं एनआरसी में इलाज कराने आए लोगों का आरोप था कि अगर भर्ती किया जाता है तो कई मामलों में मरीजों को कोई जरूरी इलाज या जागरूकता नहीं दी जा रही है.

इसके अलावा केरल के स्थानीय स्वशासन (शहरी एवं ग्रामीण) विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन ने जुलाई महीने में कहा छा कि राज्य के वायनाड ज़िले में आदिवासी बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.

शारदा मुरलीधरन ने आदिवासी बच्चों के स्कूल ड्रॉपआउट रेट को कम करने के लिए शुरु की गई गोत्र सारथी योजना से जुड़े मुद्दों को हल करने की ज़रूरत पर भी ज़ोर देने को कहा था. यह योजना दुर्गम इलाक़ों में रहने वाले आदिवासी बच्चों की स्कूल तक पहुंचने की मुश्किलों को दूर करने और उन्हें सुरक्षित परिवहन की सुविधा देने के लिए शुरु की गई थी.

मुरलीधरन ने यह भी कहा था कि संबंधित विभागों को परियोजना के लिए धनराशि निर्धारित करनी चाहिए, और दुर्गम आदिवासी बस्तियों के बच्चों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

वायनाड के आदिवासियों की शिक्षा

वायनाड के आदिवासियों की शिक्षा से जुड़ी कुछ ख़ास और व्यापक चुनौतियाँ हैं. इनमें सुविधाओं की कमी, भाषा या शिक्षा का माध्यम यहां के आदिवासी बच्चों के लिए एक बड़ी चुनौती है. इन्हें उचित शिक्षा देने के लिए ज़रुरी किताबों की भी कमी है.

आदिवासी बच्चे मलयालम भाषा को एक विदेशी भाषा के रूप में देखते हैं, और सरकार द्वारा दिए जाने वाले संसाधनों के बावजूद इनका परिणाम नाकाफ़ी है. चुनौतियों में कई सामाजिक और आर्थिक कारक हैं. इसके अलावा औपचारिक शिक्षा में रुचि की कमी और शिक्षकों की कमी भी एक बड़ा कारण है.

एक अध्ययन में पाया गया था कि राज्य में अनपढ़ आदिवासियों की कुल संख्या 98,386 है. उन में से 40 फीसदी वायनाड जिले में हैं, 18.03 फीसदी पालक्काड ज़िले में और 11.94 फीसदी कासरगोड जिले में.

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों यानि पीवीटीजी के बीच अनपढ़ लोगों की कुल संख्या 9,127 है, जो आदिवासियों में कुल निरक्षरता का 9.28 फीसदी हिस्सा है. पीवीटीजी समुदायों में अनपढ़ लोगों का अनुपात दूसरे जनजातीय समूहों की तुलना में ज़्यादा है, इसलिए आदिवासियों की साक्षरता दर में सुधार लाने के मकसद से चलाए जाने वाले किसी भी कार्यक्रम का लक्ष्य पीवीटीजी होना चाहिए.

केरल में आदिवासी विकास की सच्चाई

केरल की कुल आबादी का 1.43 फीसदी हिस्सा आदिवासियों का है और राज्य में कुल 35 आदिवासी समुदाय हैं. उनमें से 22 फीसदी अभी भी घने जंगलों में रह रहे हैं. केरल में कुल 119,788 परिवारों के 484,839 आदिवासी लोग रहते हैं. इनमें पांच पीवीटीजी यानि आदिम जनजातियां भी हैं – चोलनायकर, काड़र, काट्टुनायकन, कुरुम्बा और कोरगा.

वायनाड में सबसे अधिक 31.2 फीसदी यानि 1 लाख 36 हज़ार 62 आदिवासी आबादी हैं. इसके बाद 11.5 फीसदी यानि 50 हज़ार 973 के साथ इडुक्की जिला दूसरे नंबर पर है और 10 फीसदी 39 हज़ार 665 आदिवासी लोगों के साथ पालक्काड जिला तीसरे स्थान पर है.

केरल में पनिया आदिवासी समुदाय सबसे बड़ा है, और यह लोग राज्य की कुल आदिवासी आबादी का 22.5 फीसदी हैं. इसके बाद कुरिचिया (9%) और मलयारायण (8.9%) आते हैं.

केरल की आदिवासी आबादी ज्यादातर पश्चिमी घाट के घने जंगलों में रहती है, और इसी वजह से मुख्यधारा के समाज से कटी रहती है. उनकी आजीविका का मुख्य साधन वनोपज है.

केरल में सामान्य जनसंख्या की तुलना में आदिवासियों की साक्षरता दर कम (75.81%) है. रोजगार के संबंध में, केरल में रहने वाली कुल आदिवासी आबादी में से सिर्फ 10 फीसदी ही अपनी ज़मीन पर खेती करते हैं. जबकि 40 फीसदी खेत मज़दूर हैं. यह आंकड़े राज्य के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग यानि एसटीडीडी ने 2013 में साझा किए थे.

अब ऐसे में देखना है कि वायनाड की आदिवासी बस्तियां किस हद तक डिजिटल होती है. अगर सरकार के दावों में सच्चाई है तो फिर वायनाड के आदिवासियों के दिन जल्द ही फिरने वाले हैं.

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