HomeAdivasi Dailyसिद्दी आदिवासी मजदूर के बेटे ने कुवैत एथलेटिक्स मीट में जीता कांस्य

सिद्दी आदिवासी मजदूर के बेटे ने कुवैत एथलेटिक्स मीट में जीता कांस्य

मुराद ने 53.34 सेकेंड का समय लिया, जो उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ था. वो चीनी ताइपे के स्वर्ण पदक विजेता यान-काई लिन (52.23 सेकेंड) और कतर के रजत पदक विजेता महामत अबाकर अब्द्रहमान (52.47 सेकेंड) के बाद तीसरे स्थान पर रहे.

एक हफ्ते पहले, जब शॉर्ट डिस्टेंस एथलीट मुराद सिरमन (Murad Sirman) ने अपने पिता कालू सिरमन को फोन करके बताया कि वह एशियन यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2022 (Asian Youth Athletics Championships 2022) में भाग लेने के लिए कुवैत जा रहे हैं, तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े क्योंकि उनका बेटा पहली देश से बाहर अकेले जा रहा था.

चिंतित कालू ने अपने बेटे के कोच शिवम उपाध्याय को फोन किया और पूछा, “तुम मेरे बेटे को दूसरे देश में अकेला क्यों छोड़ रहे हो?” कोच ने उनके पिता को सांत्वना दी और उनसे कहा कि वे अपने बेटे की चिंता न करें बल्कि प्रार्थना करें कि वह पदक के साथ देश लौटे.

शनिवार की रात, कालू की आँखें फिर से छलक उठीं..लेकिन इस बार खुशी के आँसू के साथ क्योंकि खबर यह थी कि उनके बेटे ने पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेते हुए 400 मीटर हर्डल में कांस्य पदक जीता.

मुराद ने 53.34 सेकेंड का समय लिया, जो उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ था. वो चीनी ताइपे के स्वर्ण पदक विजेता यान-काई लिन (52.23 सेकेंड) और कतर के रजत पदक विजेता महामत अबाकर अब्द्रहमान (52.47 सेकेंड) के बाद तीसरे स्थान पर रहे.

सितंबर में भोपाल क्वालीफाइंग मीट में मुराद तमिलनाडु के संजय जेरोम के बाद दूसरे स्थान पर रहे थे, जो कुवैत में पांचवें स्थान पर रहे.

लोडिंग का काम करने वाले कालू सिरमन ने कहा, “मैं आज बहुत खुश हूं. मैं उसे भविष्य में होने वाली एथलेटिक्स मीट में अब से भाग लेने से नहीं रोकूंगा. उसकी मां और समुदाय के सदस्य मुराद की उपलब्धि से बहुत खुश हैं.” उन्होंने कहा कि उनका बेटा भविष्य की प्रतियोगिताओं में अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाएगा.

सिद्दी जनजाति

सिरमन सिद्दी जनजाति के हैं, जो दक्षिण पूर्व अफ्रीका में बनतु लोगों के वंशज हैं. वे मुख्य रूप से गिर-सोमनाथ और सौराष्ट्र के आसपास के जिलों में केंद्रित हैं. भारत में इनके आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आज से लगभग 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था.

जबकि कुछ का कहना है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गए और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत लाए और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई. वहीं से धीरे-धीरे इनका समुदाय जूनागढ़ में विकसित हुआ.

इनकी जनसंख्या न बढ़ने का प्रमुख कारण है कि इस समुदाय के लोग शादी को लेकर बड़े सख्त होते हैं. सिद्दी सिर्फ अपने समुदाय में ही शादी करते हैं. ये किसी भी हाल में दूसरे समुदायों में शामिल नहीं होना चाहते. यही कारण है कि आज भी इनकी बनावट बिल्कुल अफ्रीकियों की तरह है.

मुराद की मेहनत

मुराद तलाला तालुका के गिर-सोमनाथ ज़िले के गलियावाड़ गांव के रहने वाले हैं. पदक जीतने के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए, मुराद ने कहा, “मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया. यह बहुत मुश्किल प्रतियोगिता थी और मैं अपने कांस्य पदक से खुश हूं. मैंने अपना व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ हासिल किया और मेरा लक्ष्य एक दिन भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना है.”

2019 में एक विशेष सिद्दी चयन में शॉर्टलिस्ट किए जाने के बाद 17 वर्षीय मुराद ने प्रमुखता  हासिल की.

गिर-सोमनाथ के जिला स्तरीय स्पोर्ट्स स्कूल (DLSS) के कोच शिवम उपाध्याय, जिन्होंने मुराद के हुनर को पहचाना, वो कहते हैं, “सिद्दी आमतौर पर एथलेटिक्स में या जो कुछ भी करते हैं, उसमें लंबे समय तक नहीं रहते हैं. वे अपने बच्चों की शादी कम उम्र में कर देते हैं. वे अपने समुदाय को छोड़ने से डरते हैं. इसलिए, मुराद के चयन के बाद मैंने उन्हें अपनी प्रेमिका से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित किया. साथ ही उनके परिवार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल होने के लिए एथलेटिक्स पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व को समझाया.”

उपाध्याय आगे कहते हैं, “मुराद ने 800 मीटर दौड़कर ट्रेनिंग शुरू की. एक दिन उन्होंने स्कूल में एक एथलीट को हर्डल दौड़ते हुए देखा. धीरे-धीरे, उन्होंने इसमें रुचि विकसित की और धीरे-धीरे हर्डल दौड़ करना शुरू कर दिया. मैंने उन्हें लैंडिंग सिखाया और उनकी सहनशक्ति में सुधार के लिए उन्हें हर्डल का अभ्यास कराया. हॉस्टल में रात में, जूनियर कहते थे कि वह सोता नहीं था और वो हर्डल की प्रैक्टिस के लिए खाट का इस्तेमाल करता है.”

कोच उपाध्याय ने कहा कि हर दौड़ के बाद, उनका लक्ष्य अपने पिछले समय के 0.30 सेकंड को शेव करना था.

(Photo Credit: Times Of India)

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