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पश्चिम बंगाल में आदिवासी छात्रों की पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में 62 प्रतिशत की गिरावट

आदिवासी परिवार पहले से ही ग़रीबी से जूझ रहे होते हैं. इन परिवारों अगर अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अलग से पैसा देना पड़े तो आदिवासी बच्चे पढ़ाई की बजाए छोटी मोटी मज़दूरी करने भेज दिये जाते हैं.

पश्चिम बंगाल में आदिवासी छात्रों को मिलने वाली पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में 63 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है. यह स्कॉलरशिप राज्य और केंद्र सरकार मिल कर देती है. ताज़ा आँकड़ों के आधार पर यह पता चला है कि पश्चिम बंगाल में पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में भारी गिरावट आई है. 

पश्चिम बंगाल आदिवासी विभाग के 31 मार्च, 2021 तक के आँकड़ों से यह तथ्य सामने आया है. 2021-22 के आँकड़ों पर अभी विभाग काम कर रहा है. विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इस साल दिसंबर महीने तक उम्मीद है कि मार्च 2022 तक के यानि पिछले एक साल में कितने आदिवासी छात्रों को स्कॉलरशिप मिली यह भी पता चल जाएगा.

आदिवासी छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप से जुड़े आँकड़े काफ़ी चौंकाने वाले हैं. अगर साल 2017-18 के आँकड़े देखें तो कुल 79030 आदिवासी छात्रों को पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप मिली थी. साल 2021 के आँकड़े बताते हैं कि इस साल में सिर्फ़ 30050 छात्रों को ही पोस्ट स्कॉलरशिप दी गई है.

आदिवासी छात्रों को मिलने वाली यह स्कॉलरशिप  नियम के अनुसार उन छात्रों को मिलती है जिन आदिवासी परिवारों की सालाना आय 2.40 लाख से कम है. यह स्कॉलरशिप ग़रीब आदिवासी परिवारों के छात्रों को दसवीं के बाद बारहवीं तक की पढ़ाई के लिए दी जाती है. 

पश्चिम बंगाल के आदिवासी मामलों के मंत्री बुलु चिक बारीक ने इस बारे में कहा है कि पूरे मामले की जाँच की जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में कोई फैक्ट फ़ाइंडिंग टीम नहीं बनाई गई है. आदिवासी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कई सामाजिक संगठनों ने यह सूचना दी है कि ज़मीनी स्तर पर स्कॉलरशिप लेने वाले छात्रों की संख्या में भारी गिरावट एक सच्चाई है.

लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि आदिवासी मामलों के मंत्री या फिर अफ़सर इस मामले में कोई ज़्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं. आदिवासी विभाग के अधिकारी ने MBB से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि आदिवासी अपने बच्चों को स्कूल भेजने की बजाए काम पर भेज देते हैं. इसलिए शायद यह स्कॉलरशिप लेने वाले छात्रों की संख्या कम हो गई है. 

इस मामले में पूर्व लोकसभा सदस्य और आदिवासी नेता ने पुलिन बिहारी बास्के ने MMB से बात करते हुए कहा, “राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आने के बाद आदिवासी छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप, वज़ीफ़ा  और हॉस्टल जैसी सुविधाएँ काफ़ी कम हो गई हैं. इस वजह से आदिवासी इलाक़ों में छात्र जो उत्साह पढ़ाई के प्रति दिखा रहे थे अब वो कम हो गया है.”

उन्होंने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा, “ख़ासतौर से कोविड के बाद यह स्थिति और भी ख़राब हो गई है. आदिवासी इलाक़ों में स्कूल ड्रॉप आउट रेट बहुत ज़्यादा बढ़ गया है.”

पुलिन बिहारी बास्के के अनुसार आदिवासी परिवार पहले से ही ग़रीबी से जूझ रहे होते हैं. इन परिवारों अगर अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अलग से पैसा देना पड़े तो आदिवासी बच्चे पढ़ाई की बजाए छोटी मोटी मज़दूरी करने भेज दिये जाते हैं.

इस तरह के हालात में आदिवासी लड़कियों की हालत बेहद ख़राब हो जाती है. 

आदिवासी इलाक़ों में पढ़ाई के लिए हॉस्टल युक्त स्कूल, वज़ीफ़ा और स्कॉलरशिप के सहारे आदिवासी बच्चों को पढ़ाई की तरफ़ खींचने की कोशिश होती थी. लेकिन अब जो हालात हैं वे बेहद निराशाजनक हैं. 

उनका कहना था कि आदिवासी इलाक़ों में अगर स्कूल है तो टीचर नहीं हैं. टीचर आते हैं तो छात्रों को किताबें भी नहीं मिलती हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि आदिवासी बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने की ज़रूरत है. 

पुलिन बिहारी बास्के ने एक गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासी छात्रों के लिए बने एकलव्य स्कूलों में जबरन एक विशेष धर्म की तरफ़ छात्रों को खींचने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि झारग्राम में सरकार ने एकलव्य स्कूल को रामकृष्ण मिशन के हवाले कर दिया है. 

इस वजह से उस इलाक़े के आदिवासी समुदाय उस स्कूल के प्रति आशंकित हो गए हैं. 

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