HomeAdivasi Dailyनवंबर 2022 तक देश में 38% से ज्यादा वन अधिकार दावे खारिज

नवंबर 2022 तक देश में 38% से ज्यादा वन अधिकार दावे खारिज

आंकड़ों से पता चला है कि सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights- CFR) दावों में 24.42 प्रतिशत अस्वीकृति की तुलना में 30 नवंबर, 2022 तक 39.29 प्रतिशत व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR) दावों को खारिज कर दिया गया था.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) द्वारा 13 मार्च को लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों से पता चलता है वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006 के तहत 30 नवंबर, 2022 तक भूमि पर किए गए सभी दावों में से 38 प्रतिशत को खारिज कर दिया गया है.

डेटा से पता चलता है कि तय समयसीमा तक एफआरए के तहत किए गए दावों के 50 प्रतिशत से थोड़ा अधिक के लिए मालिकाना हक़ के दस्तावेज़ वितरित किए गए थे. इसके अलावा अभी बाकी के दावे लंबित थे.

कांग्रेस के डीन कुरियाकोस, मोहम्मद जावेद, ए. चेल्लाकुमार और बीजेपी के अर्जुन लाल मीणा के एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि जैसा कि राज्य सरकारों द्वारा बताया गया है, अस्वीकृति के “सामान्य कारणों” में “13.12.2005 से पहले वन भूमि का गैर-कब्जा”, वन भूमि के अलावा अन्य भूमि पर किए जा रहे दावे, एक भूमि पर कई दावे, पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य की कमी वगैरह.

आंकड़ों से पता चला है कि सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights- CFR) दावों में 24.42 प्रतिशत अस्वीकृति की तुलना में इस समय अवधि में 39.29 प्रतिशत व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights- IFR) दावों को खारिज कर दिया गया था.

वहीं सरकार यह कहते हुए बिहार, गोवा और हिमाचल प्रदेश के लिए सामुदायिक वन अधिकार अस्वीकृतियों की संख्या नहीं दे सकी कि क्योंकि वे या तो ‘लागू नहीं’ थे या ‘रिपोर्ट नहीं किए गए’ थे. सरकार ने असम के लिए सभी अस्वीकृति डेटा की अनुपलब्धता के लिए भी यही कहा है.

आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (Other Traditional Forest Dwellers) के अधिकारों की सुरक्षा के बारे में लोकसभा में एक अलग प्रश्न के जवाब में जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने कहा कि FRA, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 और उचित मुआवजे का अधिकार, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में पारदर्शिता जैसे कानून आदिवासियों और ओटीएफडी के अधिकारों की मजबूत सुरक्षा के लिए पहले से ही प्रदान करता है, जिसमें सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन प्रदान करना शामिल है.

इसके अलावा सरकार ने कहा कि नौवीं अनुसूची में अधिनियमों और विनियमों के साथ-साथ अनुसूची-पांच के तहत संवैधानिक प्रावधान भी उचित सुरक्षा प्रदान करते हैं.

यह उत्तर ऐसे समय में आया है जब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) और पर्यावरण मंत्रालय के बीच नए वन संरक्षण नियम (Forest Conservation Rules), 2022 को लेकर टकराव है.

दरअसल, एनसीएसटी ने वन संरक्षण नियम, 2022 को लेकर मुद्दा उठाया था कि यह एफआरए के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के भूमि अधिकारों को अनिवार्य रूप से प्रभावित करेगा. साथ ही कहा था कि एफसीआर, 2022 ने गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के डायवर्जन से जुड़ी परियोजना के लिए स्टेज 1 मंजूरी के लिए आगे बढ़ने से पहले ग्राम सभा के माध्यम से स्थानीय लोगों की अनिवार्य सहमति की आवश्यकता वाले खंड को खत्म कर दिया है.

एनसीएसटी ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर एफसीआर, 2022 पर रोक लगाने की मांग की थी. हालांकि, भूपेंद्र यादव ने आयोग की चिंताओं को खारिज करते हुए एनसीएसटी को वापस लिखा और जोर देकर कहा कि एफसीआर, 2022 एफआरए दावों को प्रभावित नहीं करेगा.

इसके बाद एनसीएसटी ने पहली बार सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दायर सभी दस्तावेजों और एफआरए रिपोर्ट की मांग की. जिसके बाद 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को यह आदेश दिया कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले एक मामले में अदालत में राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की प्रतियां अनुसूचित जनजाति आयोग को सौंप दी जाएं.

ऐसे में आखिरकार अनुसूचित जनजाति आयोग ने अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से वनाधिकार अधिनियम 2006 के लागू किये जाने से जुड़े ये जरूरी दस्तावेज़ हासिल किए हैं.

केंद्र सरकार आदिवासी समुदायों के विकास और अधिकार की बातें लगातार कर रही है. लेकिन जब भी सरकार के दावों को आँकड़ों की तराज़ू पर तौला जाता है तो उसके दावों में वज़न नहीं मिलता है.

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