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उत्तर प्रदेश के इन ज़िलों में गोंड समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के लिए संसद ने विधेयक को दी मंजूरी

बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह मुद्दा 1980 के दशक से लंबित है और कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार पर समुदाय की दुर्दशा की अनदेखी करने और उन्हें अनुसूचित जनजाति श्रेणी के माध्यम से उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का आरोप लगाया.

संसद ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के चार ज़िलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में शामिल करने वाला विधेयक पारित किया. राज्यसभा ने संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 को ध्वनि मत से पारित कर दिया. जिसे मंगलवार को जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने पेश किया था. लोकसभा ने इस साल अप्रैल में ये बिल पारित किया था.

बिल संविधान (अनुसूचित जनजाति) (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1967 (एसटी आदेश) और संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (एससी आदेश) को उत्तर प्रदेश में इसके आवेदन के संबंध में संशोधित करने के लिए है.

यह उत्तर प्रदेश के चार ज़िलों: चंदौली, कुशीनगर, संत कबीर नगर, और संत रविदास नगर में गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में अनुसूचित जाति के आदेश में संशोधन करने वाला है. यह इन चार जिलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता देने के लिए अनुसूचित जनजाति के आदेश में संशोधन करता है.

विधेयक में कुछ संशोधन होने के कारण इसे अब दोबारा लोकसभा भेजा जाएगा. यह बिल 28 मार्च 2022 को लोकसभा में पेश किया गया था. इसे एक अप्रैल 2022 को लोकसभा से पारित कर दिया गया था.

बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह मुद्दा 1980 के दशक से लंबित है और कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार पर समुदाय की दुर्दशा की अनदेखी करने और उन्हें अनुसूचित जनजाति श्रेणी के माध्यम से उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल 1981 को उत्तर प्रदेश सरकार ने गोंड समुदाय से संबंधित एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि वे अपनी जीवन शैली, संस्कृति और हर दृष्टि से अनुसूचित जनजाति के चरित्रों का प्रदर्शन करते हैं. उन दिनों गोंड समुदाय को अन्य राज्यों में एसटी के तहत शामिल किया गया था.

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि तब केंद्र में समुदाय के लोग अपनी आवाज उठाने में असमर्थ थे जिस कारण यह मुद्दा अब तक अनसुलझा है. उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन सरकार ने आदिवासियों के उत्थान, उनकी संस्कृति, जीवन शैली, प्रकृति से निकटता और पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए लोकुर समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया और उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार दिए.

अर्जुन मुंडा ने कहा कि जिसके परिणामस्वरुप देश विकास में आदिवासियों को पीछे छोड़े जाने के मुद्दे का सामना कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पिछले आठ सालों से आदिवासियों की बेहतरी के लिए काम कर रही है और आगे भी करती रहेगी.

आदिवासियों के प्रति विपक्ष के रवैये पर कटाक्ष करते हुए मुंडा ने कहा कि अगर उन्होंने परवाह की होती तो आदिवासी समुदाय की पहली महिला अध्यक्ष द्रौपदी मुर्मू सर्वसम्मति से शीर्ष संवैधानिक पद पर चुनी जातीं और अब उनमें से कुछ ने उनकी आलोचना भी शुरू कर दी है.

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